नई दिल्ली. कुमकुम का धार्मिक मान्यताओं में एक विशेष स्थान हैं। मंदिरों से लेकर स्त्रियों के माथे तक पर कुमकुम और विभूति जैसी चीजों का इस्तेमाल होता हैं। मंदिरों में भी इन्हें बांटा जाता है। लेकिन क्या आपको मालूम है कि इस परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारण क्या है? दरअसल कुमकुम और विभूती बहुत ही संवेदनशील पदार्थ है। इन दोनों को आप आसानी से उसे ऊर्जावान बनाकर किसी को दे सकते हैं।
हमारे सहयोगी स्पीकिंग ट्री में लिखे ब्लॉग में सदगुरु जग्गी वासुदेव लिखते हैं- कुछ चीजें, दूसरी चीजों के मुकाबले अधिक तेजी से ऊर्जा को समेट पती हैं। अगर मेरे बगल में एक स्टील की रॉड, थोड़ी विभूति और एक इंसान खड़ा हो, तो वे मुझसे कितनी ऊर्जा ग्रहण करेंगे, वह अलग-अलग होगा। उन सभी के पास बराबर अवसर होता है, लेकिन वे सभी समान रूप से ऊर्जा को सोखते और कायम नहीं रखते। कुमकुम भी इसी तरह है। चंदन का लेप भी कुछ हद तक ऐसा ही है, लेकिन इनमें से विभूति सबसे ऊपर है।
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महिलाएं क्यों लगाती कुमकुम
सदगुरु जग्गी के मुताबिक कुमकुम में हल्दी होती है। उसे लगाने से सेहत संबंधी और अन्य फायदे हैं। इसके अलावा अगर किसी स्त्री ने कुमकुम लगाया हुआ है, तो वह विवाहित है यह सिर्फ एक संकेत है ताकि आपको हर किसी को यह बात बतानी न पड़े। पश्चिमी देशों में किसी को अंगूठी पहने देखकर आप जान जाते हैं कि वह शादीशुदा है। कई मंदिरों में अब भी बहुत शक्तिशाली ऊर्जा का कम्पन है। इन चीज़ों को कुछ देर के लिए वहां रखा जाता है ताकि वे खुद में थोड़ी ऊर्जा समेट लें। इसके बाद वहां आने वाले लोगों को वह दिया जाता है।
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कैसे बनाया जाता है कुमकुम
सदगुरु के मुताबिक कुमकुम के रंग से धोखा न खाएं। कुमकुम हल्दी और चूने के मिश्रण से बनाया जाता है। जैसा कि लिंगभैरवी का कुमकुम बनाया जाता है। दुर्भाग्यवश, कई स्थानों पर यह सिर्फ एक कैमिकल पाउडर होता है। हल्दी में बहुत जबरदस्त गुण होते हैं। अब अधिकांश महिलाएं कुमकुम के बदले प्लास्टिक का इस्तेमाल करने लगी हैं। कुछ न लगाने में कोई बुराई नहीं है, मगर प्लास्टिक मत लगाइए। प्लास्टिक लगाना ऐसा ही है जैसे आपने अपनी तीसरी आंख बंद कर ली हो और उसे खोलना नहीं चाहते!
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