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सबसे पहले भगवान विष्णु ने किया थ काशी में स्नान, जानें मणिकर्णिका स्नान का क्यों है इतना महत्व

Updated Nov 29, 2020 | 08:55 IST

Manikarnika Snan: वैकुण्ड चतुर्दशी के दिन मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही भगवान शिव व विष्णु की कृपा भी मिलती है। 29 नवंबर को मणिकर्णिका स्नान का विधान है।

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Manikarnika Snan,मणिकर्णिका स्नान
मुख्य बातें
  • सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने किया था मणिकर्णिका स्नान
  • मणिकर्णिका स्नान से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है
  • देवी सती का इसी घाट पर शिव जी ने किया था अंतिम संस्कार

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चौदस तिथि वैकुण्ड चतुर्दशी होती है और इस दिन को हरिहर मिलन के रूप में भी मनाया जाता है। भगवान विष्णु ने इस दिन काशी के मर्णिकर्णिका घाट पर स्नान कर भगवान शिव की पूजा की थी। 

भगवान शिव जी आशीर्वाद दिया था कि जो भी इस घाट पर स्नान करेगा उसे जीवन के चक्र में मुक्ति मिलेगी और मोक्ष की प्राप्ति होगी। साथ ही संसार में रहते हुए उसे सभी सांसारिक सुख की प्राप्त होगी। इस घाट से कई पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हैं जो इसके महत्व का बखान करती हैं। मान्यता है कि काशी में मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने वाले को सीधे मोक्ष मिलता है।

जानें, क्यों होता है मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार
काशी स्थित गंगा नदी के तट पर बना मणिकर्णिका घाट को जीवन का अंतिम सत्य वाला स्थान माना गया है। इस घाट पर ही अन्त्येष्टि होती। इसलिए इसे मोक्षदायनी घाट माना गया है। इस घाट को महाश्मशान नाम से भी जाना जाता है।

यहां पर एक चिता की अग्नि समाप्त होने से पहले दूसरी चिता में आग लगा ही दी जाती है। यहां कभी अग्नि नहीं बुझती। इस घाट पर जिस व्यक्ति का दाह संस्कार होता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

पार्वती जी का कर्णफूल कुंड में गिरा था
माता पार्वती जी का कर्णफूल यहीं पर गिरा था और भगवान शंकर ने ही उस कर्णफूल को खोजने के लिए डुबकी लगाई थी। यही कारण है इस घाट का नाम मणिकर्णिका पड़ा। एक मान्यता के अनुसार भगवाण शिव को अपने भक्तों से छुट्टी ही नहीं मिल पाती थी।

इस कारण देवी पार्वती परेशान हो गई उन्होंने एक उपाय सोचा और भगवान शिव को अपने पास रोके रखने के लिए उन्होंने अपने कान की मणिकर्णिका छुपा दी और शिवजी से उसे ढूंढने को कह। भगवान शिव पार्वती जी की मणिकर्णिका ढूंढ नहीं पाए थे।

देवी सती के पार्थीव शरीर का अग्नि संस्कार भी इसी घाट पर हुआ
एक अन्य दंतकथा के अनुसार देवी सती ने जब अपने पिता दक्ष के यज्ञ कुंड में खुद गईं थीं तब भगवान शिव देवी सती का मृत शरीर अपने हाथों में लिए क्रोधित हो ब्रह्मांड में घूमने लगे भगवान शिवजी द्वारा माता सतीजी के पार्थीव शरीर का अग्नि संस्कार मणिकर्णिका घाट पर किया था।

सबसे पहले भगवान विष्णु ने किया था स्नान
वैकुण्ड चतुर्दशी के दिन सर्वप्रथम मणिकर्णिका घाट पर भगवान विष्णु ने स्नान किया था। चौदस की रात के तीसरे प्रहर यहां पर स्नान करने से मोक्ष प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार एक बार भगवान विष्णु बैकुंठ छोड़ देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी आए।

भगवान विष्णु ने मणिकर्णिका घाट पर स्नान करा शिव की अराधना करने के लिए उन्होंने भोलेनाथ को हजार कमल के फूल चढ़ाने के लिए पूजा करने लगे तो शिवजी ने विष्णुजी की भक्ति की परीक्षा के लिए एक कमल पुष्प छुपा दिया।

पूजा करते हुए जब विष्णु जी को एक पुष्प कम दिखा तो वह अपने नयन भगवान को चढ़ाने जा ही रहे थे कि भगवान शिव प्रकट हो गए और कहा कि उनसे बड़ा भक्त उनका कोई नहीं हो सकता। आज के बाद इस दिन पर जो भी मर्णिकर्णिका पर स्नान कर मेरी पूजा करेगा उसे समस्त सुख की प्राप्ति होगी और मृत्यु के बाद मोक्ष मिलेगा।

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