- वामन का जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को हुआ था।
- इस बार वामन जयंती का पावन पर्व 17 सितंबर 2021, शुक्रवार को है।
- श्रीमद भगवत गीता में उल्लेखित है भगवान विष्णु के पांचवे अवतार की कथा।
vaman jayanti katha on vamana dwadashi 2021 : भगवान वामन का जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को हुआ था, इसे वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है। वामन भगवान विष्णु के दशावतार में से पांचवे और त्रेता युग के पहले अवतार थे। साथ ही वह भगवान विष्णु के पहले ऐसे अवतार थे जो मनुष्य के रूप में प्रकट हुए। पौराणिक कथाओं के अनुसार वामन ने राजा बलि का घमंड तोड़ने के लिए तीन कदमो में तीनों लोक नाप दिया था। इस बार वामन जयंती का पावन पर्व 17 सितंबर 2021, शुक्रवार को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वामन जयंती के दिन वामन अवतार की कथा ना सुनने से यह व्रत पूर्ण नहीं माना जाता। ऐसे में इस दिन वामन अवतार की कथा अवश्य पढ़ें।
vamana avatar story in hindi, vaman jayanti katha, vamana dwadashi 2021 date
वामन अवतार को लेकर श्रीमद भगवत गीता में एक कथा काफी प्रचलित है। जिसके अनुसार एक बार देवताओं और दैत्यों के बीच भीषण युद्ध हुआ। जिसमें दैत्य पराजित हुए तथा जीवित दैत्य मृत दैत्यों को लेकर अस्ताचल की ओर चले गए। दैत्यराज बलि इंद्र वज्र से मृत्यु को प्राप्त हो गए। तब दैत्यराज गुरु ने अपनी मृत संजीवनी विद्या से दैत्यराज बलि को जीवित कर दिया। साथ ही अन्य दैत्यों को भी जीवित और स्वस्थ कर दिया। इसके बाद गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया और अग्नि से एक दिव्य बाण और कवच प्राप्त किया।
दिव्य बाण की प्राप्ति के बाद राजा बलि स्वर्ग लोक पर एक बार फिर आक्रमण करने के लिए चल दिए। असुर सेना को आते हुए देख इंद्रराज समझ गए कि इस बार देवतागंण असुरों का सामना नहीं कर पाएंगे। ऐसे में देवराज इंद्र सभी देवताओं के साथ स्वर्ग छोड़कर चले गए। परिणास्वरूप स्वर्ग पर राजा बलि का अधिपत्य स्थापित हो गया और दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि के स्वर्ग पर अचल राज के लिए अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करवाया।
देवराज इंद्र को राजा बलि की इच्छा के बारे में पहले से ही ज्ञात था और यह भी पता था कि यदि राजा बलि का यज्ञ पूरा हो गया तो दैत्यों को स्वर्ग से कोई नहीं निकाल सकता। ऐसे में सभी देवी देवता काफी चिंतित हो गए और श्री हरि भगवान विष्णु के शरंण में जा पहुंचे। इंद्र देव ने अपनी पीड़ा बताते हुए श्री हरि से सहायता के लिए विनती की। देवताओं को परेशान देख भगवान विष्णु ने सहायता का आश्वासन दिया और कहा कि मैं वामन रूप में देवराज इंद्र की माता अदिति के गर्भ से जन्म लूंगा। जिसके बाद भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को श्री हरि भगवान विष्णु ने माता अदिति के गर्भ से धरती पर पांचवा अवतार लिया।
उनके ब्रह्मचारी रूप को देखकर सभी ऋषि मुनि व देवी देवता प्रसन्न हो गए। तथा सभी ऋषि मुनियों ने अपना आशीर्वाद दिया और वामन एक बौने ब्राम्हण का वेष धारण कर राजा बलि के पास जा पहुंचे। उनके तेज से यज्ञशाला प्रकाशित हो उठी। यह देख बलि ने उन्हें आसन पर बिठाकर आदर सत्कार किया और भेंट मांगने को कहा। इसे सुन वामन ने अपने रहने के लिए तीन पग भूमि देने का आग्रह किया। हालांकि दैत्यराज गुरु शुक्रचार्य को पहले ही आभास हो गया था और उन्होंने राजा बलि को वचन ना देने के लिए कहा था। लेकिन राजा बलि नहीं माने और उन्होंने ब्राह्मण को वचन दिया कि तुम्हारी यह मनोकामना जरूर पूरी करेंगे। बलि ने हाथ में गंगा जल लेकर तीन पग भूमि देने का संकल्प ले लिया।
संकल्प पूरा होते ही वामन का आकार बढ़ने लगा और विकराल रूप धारण कर लिया। उन्होंने एक पग में पृथ्वी, दूसरे पग में स्वर्ग तथा तीसरे पग में दैत्यराज बलि ने अपना मस्तक प्रभु के चरणों के आगे रख दिया। अपना सबकुछ गंवा चुके बलि को अपने वचन से ना हटते देख भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंने दैत्यराज को पाताल का अधिपति बना दिया।