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करवा चौथ और तीज की तरह पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है वट सावित्री व्रत, जानें पूजा विधि और महत्व

Updated May 25, 2022 | 00:10 IST

Vat Savitri Vrat 2022: तीज और करवा चौथ की तरह ही वट सावित्री का व्रत भी पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर वट यानी बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं।

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वट सावित्री व्रत
मुख्य बातें
  • वट सावित्री व्रत करने से वैवाहिक जीवन में आती है मधुरता
  • पति की दीर्घायु के लिए रखा जाता है वट सावित्री व्रत
  • वट सावित्री में जरूर सुनें देवी सावित्री और सत्यवान की कथा

Vat Savitri Vrat Puja Importance 2022: हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि के दिन वट सावित्री का त्योहार मनाया जाता है। इस साल वट सावित्री सोमवार, 30 मई को पड़ रही है। इस दिन सोमवती अमावस्या और शनि जंयती का भी खास संयोग बन रहा है। वट सावित्री का व्रत सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए रखती है। यह हिंदू धर्म का खास पर्व माना जाता है। वट सावित्री पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अराधना की जाती है और बरगद पेड़ की पूजा कर महिलाएं इसमें कच्चा सूता बांधकर परिक्रमा करती हैं और सभी महिलाएं वट सावित्री की कथा सुनती हैं।

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तीज और करवा चौथ की तरह है वट सावित्री

तीज और करवा चौथ के व्रत की तरह ही वट सावित्री का व्रत भी पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है। हालांकि सभी की पूजा विधि और नियम में अंतर होता है। लेकिन तीज और करवा चौथ की तरह वट सावित्री पर भी सुहागिन महिलाएं पूरे सोलह श्रृंगार कर दुल्हन की तरह सजती-संवरती हैं और पति की लंबी आयु के लिए उपवास रखती हैं। हालांकि इसमें निर्जला या पूरे दिन का उपवास नहीं होता। कुछ जगहों पर वट सावित्री की पूजा के बाद फलाहार रहा जाता है। लेकिन इस दिन भोजन ग्रहण करने पर मनाही होती है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट जैसे कई हिस्सों में वट सावित्री का त्योहार मनाया जाता है। दक्षिण भारत में वट सावित्री को करादाइयन नंबू के नाम से जाना जाता है।  

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वट सावित्री पूजा विधि (Vat Savitri Puja Vidhi)

वट सावित्री के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और नए वस्त्र पहनकर साज-श्रृंगार करें। पूजा की थाली या टोकरी तैयार कर लें और वट वृक्ष के पास देवी सावित्री, सत्यवान और यमराज की तस्वीर रखें। वट वृक्ष और तस्वीर पर जल, फूल, अक्षत, रोली, सिंदूर, भीगे चने, फल, मिष्टान आदि अर्पित करें और धूप-दीप जलाएं। फिर वट वृक्ष में कच्चा सूता बांधकर सात बार इसकी परिक्रमा करें। इसके बाद सभी सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष के नीचे बैठकर सावित्री-सत्यवान की कथा सुने और पढ़ें। पूजा समाप्त होने के बाद सात भीगे चने और वट वृक्ष के कोपल को पानी के साथ निगलें और व्रत खोलें। पूजा के बाद हाथ जोड़कर क्षमायाचणा करें और पति की लंबी आयु की कामना करें।

वट सावित्री का महत्व (Vat Savitri Puja Importance)

सभी सुहागिन महिलाओं के लिए वट सावित्री का व्रत बेहद खास होता है। क्योंकि हर महिला अपने वैवाहिक जीवन में प्रेम की कामना करती है। इसलिए वट सावित्री पर महिलाएं पति की रक्षा और दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। वट सावित्री का व्रत रखने से पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेम बढ़ता है और वैवाहिक जीवन में मधुरता भी आती है। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से नि:संतान दंपति को संतान की भी प्राप्ति होती है।

(डिस्क्लेमर: यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्‍स नाउ नवभारत इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।)

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