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Navratri 2020 4th day: संतान सुख के लिए नवरात्र के चौथे द‍िन करें मां कूष्माण्डा की पूजा, जानें मंत्र व आरती

Updated Oct 20, 2020 | 06:05 IST

Maa Kushmanda Puja Importance: नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्माण्डा की पूजा का विधान है। देवी की पूजा से मनुष्य को सुखद दांपत्य और संतान सुख की प्राप्ति होती। देवी की संपूर्ण पूजा विधि क्या है, आइए आपको बताएं।

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Navratri Day 4, Maa Kushmanda
मुख्य बातें
  • देवी संतान सुख और निरोगी काया देने वाली हैं
  • देवी की पूजा में हरे रंग का प्रयोग करना चाहिए
  • देवी ब्रह्मांड की रचयिता और सूर्य के मध्य निवास करती हैं

देवी कुष्माण्डा की पूजा गृहस्थ जीवन में रहने वालों को जरूर करना चाहिए। देवी देवी संतान सुख के साथ वैवाहिक जीवन सुखी बनाने का आशीर्वाद देती हैं। रोग और शोक को हरने वाली देवी ने ही ब्राह्माण्ड की रचना की है। नवरात्रि में देवी की पूजा करने से मनुष्य को समस्त सांसारिक सुख की प्राप्ति होती है। देवी का निवास स्थान सूर्यमंडल के मध्य में माना जाता है। यह वह स्थान है, जहां कोई भी निवास नहीं कर सकता। देवी की पूजा करने की विधि क्या है और देवी के सिद्ध मंत्र, आरती और कथा के बारे में आइए आपको पूरी जानकारी दें।

मां कुष्माण्डा का स्वरूप ( Maa Kushmanda Ka Swaroop)

मां को सृष्टि की निर्माता हैं और उनका शरीर सूर्य के समान ही है।  देवी सूर्य के मध्य में निवास करती हैं और सूर्य को नियंत्रित करती हैं। मां के शरीर की कांति सूर्य के समान ही तेज है। इसलिए इन्हें दैदिप्यमान के नाम से भी पुकारा जाता है। देवी कूष्माण्डा की आठ भुजाएं हैं और इन भुजाओं में उन्होंने कमण्डल, धनुष- बाण, कमल का फूल, अमृत कलश, चक्र, गदा व माला थामा है। देवी सभी तरह कि सिद्धियों से लैस हैं और सूर्यदेव को ऊर्जा और दिशा देती हैं। मां के तेज के कारण ही जगत में प्रकाश फैला हुआ है।

मां कुष्माण्डा की पूजा का महत्व ( Maa Kushmanda Ki Puja Ka Mahatva)

देवी की मंद मुस्कान और सृष्टि निर्माता है और इसी कारण वह कुष्माण्डा कहलाती हैं। देवी की पूजा सारे ही शोक को हर लेती है। रोग और संताप को दूर कर देवी आरोग्यता का वरदान देती हैं। मां की पूजा से आयु, यश और बल भी प्राप्त होता है। साथ ही संतान और दांपत्य सुख का भी वरदान मिलता है। होते हैं। मां की वर मुद्र मनुष्य को सभी प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं। मां कुष्माण्डा की पूजा से सभी प्रकार के कष्टों का अंत होता है और मनुष्य को अपने जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति भी होती है।

मां कुष्माण्डा की पूजा विधि (Maa Kushmanda Ki Puja Vidhi)

सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और इसके बाद चौकी पर हरे रंग का आसान बिछा कर मां कुषमाण्डा की तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद देवी को वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान आदि अर्पित करें। जब देवी को पुष्प अर्पित करें तो इस मंत्र का जाप करें।

सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु।।

इसके बाद मां कि विधिवत पूजा करने के बाद आरती उतारें और त्रिदेवों और मां लक्ष्मी की पूजा भी इस दिन जरूर करें। अंत में मां को फल और मिष्ठान का भोग लगा कर प्रसाद बांटे।

देवी को फूल और भोग आर्पित करें (Offer yellow flowers and Bhog to Goddess)

देवी का प्रिय रंग हरा होता है और इस दिन फूल के साथ पत्तियों को भी देवी को चढ़ाना चाहिए। साथ ही हरे रंग की मिठाईयां, अमरूद आदि का भोग देवी को लगाना चाहिए। आप चाहे तो देवी को हरे रंग का वस्त्र और आसान भी अर्पित कर सकते हैं।

मां कुष्माण्डा की कथा (Maa Kushmanda Ki Katha)

जिस समय सृष्टि नहीं थी और चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था तब देवी ने अपनी हंसी से ही ब्राह्माण्ड की रचना की। इसलिए सृष्टि की आदि-स्वरूपा आदि शक्ति मां कुष्माण्डा मानी गई हैं। देवी के सात हाथों में कमण्डल, धनुष बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा विराजित है और देवी के आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को प्रदान करने वाली जपमाला है। मां का शरीर सूर्य के समान ही कांतिवान है। मां के इस स्वरूप की पूजा से आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।

मां कुष्माण्डा के मंत्र ( Maa Kushmanda Ke Mantra)

1.या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

2.वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥

3.सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्मा याम कुष्मांडा शुभदास्तु मे।।

4.ॐ कूष्माण्डायै नम:।।

मां कुष्मांडा की आरती (Maa Kushmanda Ki Aarti)

कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥

पिगंला ज्वालामुखी निराली। शाकंबरी माँ भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे । भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा पर्वत पर है डेरा। स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदंबे। सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

माँ के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥

तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो माँ संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो। मेरे तुम भंडारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

नवरात्रि में देवी की विशेष पूजा करने से दोगुना फल प्राप्त होता है। हर गृहस्थ को देवी की पूजा पूरे परिवार के साथ जरूर करनी चाहिए।

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