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Golden Temple History: किसने बनवाया था अमृतसर का स्वर्ण मंदिर? जानिए हरमंदिर साहिब से जुड़ी रोचक बातें

Updated Jan 24, 2021 | 18:18 IST

अमृतसर में हरमंदिर साहिब, या स्वर्ण मंदिर, सिखों के लिए सबसे पूजनीय स्थलों में से एक है। इसे किसने बनवाया और गुरुद्वारा क्या है? यहां जानिए कुछ दिलचस्प तथ्य।

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अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का इतिहास
मुख्य बातें
  • सिखों की धार्मिक आस्था का प्रतीक है अमृतसर का स्वर्ण मंदिर
  • 1577 में चौथे सिख गुरु ने पहली बार शुरु कराया था निर्माण
  • जानिए क्या होता है गुरुद्वारा और क्यों है इसका इतना महत्व?

भारत और पूरी दुनिया में स्वर्ण मंदिर के रूप में जाना जाने वाले हरमंदिर साहिब पंजाब में अमृतसर स्थित प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह सिक्ख धर्म में सबसे प्रतिष्ठित आध्यात्मिक स्थलों में से एक माना जाता है। बीते समय में मंदिर मरम्मत के काम को लेकर सुर्खियों में रह चुका है जोकि पर्यावरण के प्रति सचेत रहने का एक प्रयास था। दुनिया भर से करोड़ो सैलानी इस मंदिर को देखने के लिए अमृतसर पहुंचते हैं।

स्वर्ण मंदिर किसने बनवाया?
दरबार साहिब के नाम से भी मशहूर मंदिर को अमृतसर में 1577 में चौथे सिख गुरु गुरु राम दास ने इसकी शुरुआत की थी और पांचवें गुरु अर्जन ने मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर का निर्माण 1581 में शुरू हुआ था, मंदिर के पहले संस्करण को पूरा करने में आठ साल लगे थे।

गुरु अर्जन ने परिसर में प्रवेश करने से पहले विनम्रता पर जोर देने के लिए मंदिर को शहर की जमीन से कुछ निचले स्तर पर रखने की योजना बनाई। उन्होंने यह भी मांग की कि मंदिर परिसर हर तरफ खुला हो, इस बात पर जोर दिया जाए कि यह सभी के लिए खुला था।

सिखों और मुलिमों के बीच लंबे समय से चले विवाद के बाद 1762 में मंदिर ध्वस्त हो गया था। 1776 में एक नया मुख्य प्रवेश द्वार, मार्ग और गर्भगृह का निर्माण पूरा हुआ, जबकि तालाब के चारों ओर पूल का काम 1784 में समाप्त हो गया।

रणजीत सिंह ने घोषणा की कि वह संगमरमर और सोने के साथ इसका पुनर्निर्माण करेंगे। मंदिर को 1809 में संगमरमर और तांबे में पुनर्निर्मित किया गया था, और 1830 में रणजीत सिंह ने सोने की पर्त के साथ गर्भगृह को सुसज्जित करने के लिए सोना दान किया।

स्वर्ण मंदिर इतना पूजनीय क्यों है?
इसके निर्माण के बाद गुरु अर्जन ने सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ आदि ग्रंथ को स्थापित किया था। आदि ग्रंथ, सिखों द्वारा दस मानव गुरुओं के वंश के बाद अंतिम, संप्रभु और अनंत जीवित गुरु का रूप माना जाता है। इसमें 1,430 पृष्ठ हैं, जिनमें से अधिकांश को 31 रागों में विभाजित किया गया है।

मंदिर में अकाल तख्त भी मौजूद है जो 'छठे गुरु का सिंहासन कहा जाता है। छठे गुरु गुरु हरगोबिंद द्वारा इसे बनवाया गया था। यह सिखों के लिए - सत्ता की पांच सीटों में से एक है। अकाल तख्त राजनीतिक संप्रभुता का प्रतीक है और ऐसी जगह है जहां सिख लोगों के आध्यात्मिक और लौकिक सरोकारों को संबोधित किया जा सकता है।

क्या होता है गुरुद्वारा?
गुरुद्वारा का शाब्दिक अर्थ है 'गुरु का द्वार'- जहां सभी धर्मों के लोगों का स्वागत है। प्रत्येक गुरुद्वारे में एक दरबार साहिब होते हैं, जहां पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब, एक ऊंचे सिंहासन पर रखा गया है।

सभी गुरुद्वारों में एक लंगर हॉल होता है, जहां लोग मुफ्त में शाकाहारी भोजन कर सकते हैं। गुरुद्वारे की पहचान दूर से इसके खास झंडे को देखकर की जा सकती है, जहां निशान साहिब का सिख ध्वज होता है।

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