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Pitradosh: जानें कुंडली में कब बनता है पितृ दोष, इससे क्या-क्या परेशानियां हो सकती हैं?

Updated Jul 26, 2020 | 12:51 IST

Causes of Pitrodh: पितृ दोष के बारे में आपने कई बार सुना होगा लेकिन बहुत कम लोग इस दोष और इससे मिलने वाले कष्टों को जानते हैं। पितृदोष कुंडली में होना बहुत ही कष्टकारी होता है।

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What is Pitradosh and how to get rid of it, पितृदोष से मुक्ति के उपाय
मुख्य बातें
  • पितृदोष से मुक्ति के लिए पूर्वजों की उपेक्षा न करें
  • पूर्वजों का श्राद्ध करें और उन्हें प्रसन्न रखें
  • माता-पिता की सेवा करने से दोष दूर होता है

पितृदोष किसी जातक की कुंडली में तब होता है जब सूर्य नीच राशिगत, शत्रुक्षेत्रीय या राहु केतु के साथ होता है। साथ ही बारहवें भाव में सूर्य और राहु का योग होने पर या राहु-शनि के साथ होने पर भी पितृ दोष लगता है। यदि किसी की कुंडली में पितृ दोष हो तो उस जातक को मानसिक तनाव, धन हानि, हर कार्य में असफलता, पूजा-पाठ में ध्यान न लगना, शारीरिक समस्याएं, रोजगार में दिक्क्त, दाम्पत्य जीवन में कष्ट, संतान कष्ट, समाज में प्रतिष्ठा का कम होना जैसी समस्याओं से दो चार होना पड़ता है।

जानें, क्यों होता है पितृ दोष?

पितृदोष जरूरी नहीं कि जातक के इसी जन्म के कर्मो से हो बल्कि जातक के पूर्व जन्म या पूर्वजों के बुरे कर्म के कारण भी मिलते हैं। यदि जातक भूल और अज्ञानता वश भी अपने पूर्वजों को कष्ट देता है अथवा उनका अपमान करता है तो उसे पितृ दोष लगता है।

पितृ दोष दूर करने के विशेष उपाय

  1. यदि आपकी कुंडली में पितृ दोष हो तो आपको अपने पूर्वजों को कभी उपेक्षित नहीं करना चाहिए। इसके लिए आप अपनी घर के दक्षिणी दीवार पर उनकी तस्वीर लगाएं और माला चढ़ाएं। साथ ही पितृपक्ष में उनके लिए श्राद्ध करें और उनकी मृत्यु तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र एवं दक्षिणा आदि जरूर दें।
  2. जिस किसी की कुंडली में पितृ दोष हो उसे अपने माता-पिता की खूब सेवा करनी चाहिए और अपने बड़े भाई-बहनों का आशीर्वाद लेना चाहिए और उनसे अपने संबंध मधुर रखने चाहिए।
  3. पितृदोष निवारण के लिए हर महीने की अमावस्या को अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल पर दही, गंगाजल, काले तिल, चीनी, चावल, जल और फूल आदि चढ़ाना चाहिए। साथ ही “ॐ पितृभ्यः नमः” मंत्र का जाप करना चाहिए और पितृ सूक्त का पाठ करें।
  4. हर अमावस्या पर दक्षिणी की ओर मुख कर आपको दिवंगत पितरों को तर्पण देना चाहिए और अमावस्या को पितृ स्तोत्र या पितृ सूक्त का पाठ जरूर करना चाहिए। साथ ही त्रयोदशी के दिन नीलकंठ स्तोत्र का पाठ करें। पूर्णिमा के दिन श्री नारायण कवच का पाठ करके ब्राह्मणों को मीठा खिलाएं और दान दें।
  5. हर संक्रांति, अमावस्या और रविवार को सूर्यदेव को तांबे के लोटे में लाल चन्दन, गंगाजल, शुद्ध जल डालकर बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्घ्य दें। अर्घ्य देते हुए इस मंत्र का जाप करें :
  6. “एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते ।
  7. अनुकम्पय मां देवी गृहाणार्घ्यं दिवाकर II”
  8. यदि पितृदोष मुक्ति के लिए आप बहुत कुछ न भी कर पाएं तो जब हो सके तब गाय, कौए, कुत्ते और भूखों को खाना खिलाएं।
  9. सोमवार के दिन आक के 21 पुष्पों, दही, बेलपत्र के साथ शिव जी की पूजा करें। पितृ दोष कष्ट दूर होगा।
  10. पितृदोष मुक्ति के लिए कुल देवता और इष्ट देव की सदैव पूजा करते रहें। किसी गरीब कन्या के विवाह में मदद करें या किसी की बिमारी में सहायता करें।

पितृदोष के निवारण के लिए जातक को खुद प्रयास करना होगा, किसी और के किए प्रयास से कष्ट दूर नहीं होगा।

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