होली का त्योहार मना रहे हैं तो इससे जुड़ी कथाएं भी जानना चाहेंगे। भगवान कृष्ण की नगरी के अलावा होली का त्योहार प्रक्त प्रह्लाद से भी जुड़ा है जिनकी रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया था। होलिका दहन की कथा भी इन्हीं से जुड़ी है। नरसिंह यानी कि नर और सिंह का अवतार। इनको भगवान विष्णु का चौथा अवतार माना जाता है। इनका सिर एवं धड़ तो मानव का था लेकिन चेहरा एवं पंजे सिंह की तरह थे।
विष्णु जी के नरसिंह अवतार भारत में, खासकर दक्षिण भारत में वैष्णव संप्रदाय के लोगों द्वारा एक देवता के रूप में पूजे जाते हैं जो विपत्ति के समय अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रकट होते हैं।
कहां से शुरू हुई नरसिंह अवतार की कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में कश्यप नामक एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम दिति था। उन्हें अपनी पत्नी से दो पुत्रों की प्राप्ति हुई, जिनका नाम हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु रखा गया। राजा कश्यप के पहले पुत्र हिरण्याक्ष को भगवान श्रीविष्णु ने वराह रूप धरकर तब मार दिया था, जब वह पृथ्वी को पाताल लोक में ले गया था। अपनी भाई की मृत्यु से हिरण्यकशिपु बेहद क्रोधित हुआ, और उसने इसका बदला लेने की ठान ली। उसने प्रतिशोध लेने के लिए कठिन तपस्या करके ब्रह्माजी व शिवजी को प्रसन्न किया। ब्रह्माजी ने उसे 'अजेय' होने का वरदान दिया।
अहंकारी हो गया हिरण्यकशिपु
यह वरदान पाकर उसकी मति मलीन हो गई और अहंकार में भरकर वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा। हिरण्यकशिपु को अपनी पत्नी से एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी, जिसका नाम था प्रह्लाद। वह अपने पिता से बिलकुल अलग था, एक राक्षस के घर में जन्म लेने वाले प्रह्लाद में अच्छे गुण थे। वह भगवान को बहुत मानता था और हमेशा प्रभु की भक्ति में लीना रहता। प्रह्लाद अपने पिता का विरोध भी करता था।
प्रह्लाद को मारना चाहता था हिरण्यकशिपु
भगवान भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बड़ी चालें चलीं। लेकिन जब राक्षस राजा को यह ज्ञात हो गया कि वह अपने भक्ति मार्ग से नहीं हटेगा तो उसने अपने पुत्र प्रह्लाद की हत्या करने का षडयंत्र रचा। इसके लिए हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका की मदद भी ली।
होलिका दहन से जुड़ा है ये हिस्सा
उसने होलिका, जिसे वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी, उसकी गोद में बैठाकर प्रह्लाद को जिंदा ही चिता में जलवाने का प्रयास किया, किंतु उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई और प्रह्लाद जस का तस रहा। इस पर हिरण्यकशिपु दंग रह गया और क्रोध में आकर उसने अपने ही हाथों प्रह्लाद को मारने की कोशिश की।
प्रकट हुए नरसिंह भगवान
वह अपनी तलवार लेकर प्रह्लाद की ओर वार करने के लिए जैसे ही बढ़ा, तो खंभे को चीरकर श्री नरसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़ कर उसे अपनी जांघों पर डाल कर उसकी छाती अपने नखों से फाड़ डाली।
इस तरह श्री विष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा की। प्रह्लाद के ही कहने पर उन्होंने हिरण्यकशिपु को मोक्ष प्रदान किया।