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Ravivar Vrat Katha, Puja Vidhi: रविवार को करें सूर्य देव की आराधना, जानें व्रत कथा, पूजा विधि, आरती और महत्व

Updated Dec 19, 2021 | 06:27 IST

Ravivar Vrat Katha, Puja Vidhi, Aarti in Hindi (रविवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती): मान्यताओं के अनुसार, रविवार के दिन सूर्य देव की पूजा करने से भक्तों को लाभ मिलता है। अगर आप रविवार का व्रत रख रहे हैं तो यहां जानें पूजा विधि, कथा, आरती और महत्व। 

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रविवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती
मुख्य बातें
  • सूर्यदेव करते हैं भक्तों की हर मनोकामनाएं पूरी। 
  • दुख और दर्द से मुक्ति पाने के लिए करें सूर्य देव की पूजा।
  • रविवार का व्रत रख रहे हैं तो सूर्य देव को जरूर दें अर्घ्य। 

Ravivar Vrat Katha, Puja Vidhi, Aarti in Hindi (रविवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती): सनातन धर्म में सूर्य देव प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वैदिक काल से सूर्य भगवान की पूजा चली आ रही है। माना जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से सूर्य देव की पूजा उपासना करता है उसकी सभी इच्छाएं सूर्यदेव अवश्य पूरी करते हैं। सूर्य देव एक ऐसे देवता हैं जिनके हम हर दिन साक्षात दर्शन करते हैं। ऐसे में सूर्य देव को रोजाना अर्घ्य देना लाभदायक माना गया है। लेकिन रविवार के दिन विशेष रूप से सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए। सूर्य देव की पूजा करने से सुख-समृद्धि धन-संपत्ति बनी रहती है और सूर्य देव भक्तों को दुश्मनों से दूर रखते हैं। ‌मान्यताओं के अनुसार, रविवार के दिन व्रत रखने से तथा कथा का पाठ करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। अगर आप भी रविवार का व्रत रख रहे हैं तो यहां जानें रविवार व्रत की पूजा विधि, आरती, महत्व और कथा। 

Ravivar Vrat Puja Vidhi (रविवार व्रत पूजा विधि) 

रविवार के दिन स्नान करके भक्तों को साफ कपड़े पहन लेना चाहिए फिर सूर्य देव को स्मरण करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प लेने के बाद मंदिर में भगवान सूर्य की मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए। इसके बाद भगवान सूर्य को स्नान करवाएं और उन्हें सुगंध, पुष्प अर्पित करें। इसके बाद कथा का पाठ करें और धूप-दीप के साथ सूर्य देव की आरती करें। एक तांबे के कलश में जल ले लें और उसमें फूल और चावल डाल दें। इतना करने के बाद सूर्य देव के मंत्रों का उच्चारण करें और सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद भोजन ग्रहण करें। 

Ravivar Vrat Puja Aarti (रविवार व्रत पूजा आरती) 

ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान...।।

सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी। तुम चार भुजाधारी।।
अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे। तुम हो देव महान।।

।।ॐ जय सूर्य भगवान...।।

ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते। सब तब दर्शन पाते।।
फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा। करे सब तब गुणगान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान...।।

संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते। गोधन तब घर आते।।
गोधूलि बेला में, हर घर हर आंगन में। हो तव महिमा गान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान...।।

देव-दनुज नर-नारी, ऋषि-मुनिवर भजते। आदित्य हृदय जपते।।
स्तोत्र ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी। दे नव जीवनदान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान...।।

तुम हो त्रिकाल रचयिता, तुम जग के आधार। महिमा तब अपरम्पार।।
प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते। बल, बुद्धि और ज्ञान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान...।।

भूचर जलचर खेचर, सबके हों प्राण तुम्हीं। सब जीवों के प्राण तुम्हीं।।
वेद-पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने। तुम ही सर्वशक्तिमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान...।।

पूजन करतीं दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल। तुम भुवनों के प्रतिपाल।।
ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी। शुभकारी अंशुमान।।
।।ॐ जय सूर्य भगवान...।।

ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।
जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।स्वरूपा।।
धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।

Ravivar Vrat Importance (रविवार व्रत महत्व)

मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त रविवार के दिन सूर्य देव की पूजा-आराधना करता है उसका स्वास्थ्य हमेशा ठीक रहता है। रविवार का व्रत करने से आयु लंबी होती है और सौभाग्य में वृद्धि होती है। सूर्यदेव अपने भक्तों के शारीरिक कष्ट दूर करते हैं और उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। रविवार का व्रत रखने से मान, सम्मान, बुद्धि और विद्या भी बढ़ती है।

Ravivar Vrat Katha (रविवार व्रत कथा) 

एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी जो हर सुबह अपने घर को गोबर से लीपकर भगवान सूर्य के लिए भोजन तैयार करती थी और उन्हें भोग लगाने के बाद खुद भोजन ग्रहण करती थी। भगवान सूर्य की कृपा से उसके घर में किसी चीज की कमी नहीं थी। बुढ़िया की पड़ोसन यह सब देखकर काफी गुस्सा होती थी। उसने अगली सुबह से अपनी गाय को अंदर बांधना शुरू कर दिया ताकि बुढ़िया उसकी गाय का गोबर ना ले जा सके। अगली सुबह जब बुढ़िया गोबर लेने गई और उसे गोबर नहीं मिला तब वह परेशान हो गई। गोबर ना मिलने की वजह से वह अपना घर नहीं लीप पाई और भगवान के लिए भोग भी नहीं तैयार कर पाई। इसलिए वह दिन भर खुद भी भूखी रही और ऐसे उसने निराहार व्रत पूरा कर लिया। 

सपने में आए सूर्य देव

रात को बुढ़िया के सपने में सूर्य देव आए और उन्होंने बुढ़िया से पूछा कि आज उसने ना तो अपने घर को लीपा और ना ही भोग तैयार किया। बुढ़िया ने भगवान को सारी बात बता दी। इसके बाद सूर्य देव ने बुढ़िया को एक गाय और उसका बछड़ा दिया जो हर एक मनोकामना पूरी करती थी। सुबह जब बुढ़िया उठी तब उसने अपने घर के बाहर एक सुंदर सी गाय और बछड़ा देखा। गाय और बछड़े को देखकर वह बहुत खुश हो गई और दोनों को अपने आंगन में बांधकर चारा खिलाने लगी। जब पड़ोसन ने बुढ़िया की गाय और बछड़ा देखा तब उसे बहुत गुस्सा आया। 

गाय ने दिया सोने का गोबर

अगली सुबह बढ़िया के जागने से पहले पड़ोसन जाग गई और जब वह बाहर गई तब उसने देखा कि गाय ने सोने का गोबर दिया था। वह यह गोबर चुरा कर अपने घर को लीपने लगी। कई दिन तक ऐसा ही करती रही। जब सूर्य देव को इस बात का पता चला तब उन्होंने शाम को एक जोरदार आंधी चलाई जिसकी वजह से बुढ़िया ने गाय और उसके बछड़े को अपने घर में बांध दिया। अगली सुबह जब गुड़िया उठी तब उसने देखा कि उसके गाय ने सोने का गोबर दिया है। तबसे बुढ़िया हर रोज गाय को अपने घर के अंदर बांधने लगी। 

राजा से पड़ोसन ने की शिकायत

यह देखकर पड़ोसन हमेशा गुस्से में रहती थी एक दिन उसने यह बात जाकर राजा को बता दिया। राजा ने अपने सैनिकों को वह गाय और उसका बछड़ा लाने के लिए भेजा। सूर्य देव को भोग लगाने के बाद जैसे ही बुढ़िया अपना खाना खाने लगी वैसे ही सैनिक आए और उसके गाय और बछड़े को लेकर चले गए। यह देखकर बुढ़िया काफी नाराज हो गई और रोती रही। उसने अपना भोजन ग्रहण नहीं किया और सूर्यदेव से गाय को वापस मांगने की प्रार्थना करती रही। 

गोबर से भर गया राजा का महल

गाय को देख कर आजा बहुत खुश हुआ। अगली सुबह जब राजा और उसके सेवकों की आंख खुली तब सब ने देखा कि महल पूरा गोबर से भर गया है। रात में जब राजा सो रहा था तब राजा को सपने में भगवान ने यह कहा कि वह जल्द से जल्द गाय बुढ़िया को वापस कर दे। अगली सुबह उठते ही राजा ने गाय और उसका बछड़ा बुढ़िया को वापस लौटा दिया। जैसे की बुढ़िया को उसकी गाय और बछड़ा मिल गया वैसे ही महल से गोबर गायब हो गया। इसके बाद हर एक नगरवासी रविवार को सूर्य देव की पूजा करने लगा। 

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