- इस साल तुलसी विवाह 15 नवंबर को मनाया जाएगा।
- तुलसी जी का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप से किया जाता है।
- शास्त्र के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु 4 महीने के बाद योग निद्रा से उठते हैं।
Tulsi Vivah 2021 Vrat Katha in Hindi: हिंदू धर्म में तुलसी पूजा का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि तुलसी के पेड़ में साक्षात लक्ष्मी निवास करती हैं। महिलाओं के लिए खासकर तुलसी की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है। आज तुलसी विवाह है, हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व है। इस दिन को देवउठनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार यह हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु 4 महीने के बाद योग निद्रा से उठते हैं। हिंदू धर्म में इसी दिन से मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। क्या आपको पता है भगवान विष्णु को क्यों तुलसी माता से शालिग्राम के रूप में शादी करनी पड़ी थी। अगर नहीं, तो आप इस पौराणिक कथा के माध्यम से सारी जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं।
तुलसी विवाह की कथा
कथा के अनुसार तुलसी माता का असली नाम वृंदा था। उनका जन्म राक्षस कूल में हुआ था। राक्षस कूल में जन्म लेने के बाद भी वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी। बड़े होने के बाद वृंदा की शादी जालंधर नामक असुर से हो गई। वृंदा भगवान विष्णु के भक्त होने के साथ-साथ एक पतिव्रता स्त्री भी थी। वृंदा की भक्ति के कारण जालंधर हर लड़ाई में हमेशा विजय प्राप्त करता था। इस कारण उसे अपनी शक्ति पर बहुत घमंड हो गया। अधिक घमंड होने के कारण एक बार उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर सभी देवकन्याओं को अपने अधिकार में कर लिया। जालंधर के ऐसा करने से सभी देवता बेहद क्रोधित हुए और वह तुरंत भगवान विष्णु की शरण में जाकर जालंधर को खत्म करने की प्रार्थना करने लगें।
भक्ति भंग किए बिना मारना असंभव
भगवान विष्णु जानते थे कि उसकी पत्नी वृंदा उनकी परम भक्त है। यदि वृंदा की भक्ति भंग नहीं की जाएगी तो उसे मारना असंभव है। यह सोचकर भगवान विष्णु ने अपनी माया से जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिव्रता होने को नष्ट कर दिया। इसी कारण से जालंधर की सारी शक्तियां क्षणभर में नष्ट हो गई और वह युद्ध में मारा गया। लेकिन जब वृंदा को भगवान श्री हरि के छल का पता चला, तो वृंदा ने भगवान विष्णु से कहा आपने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा क्यों किया।
वृंदा ने दिया श्राप
यह सुनकर भगवान श्रीहरि चुप रह गए। तब वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि आप हमेशा पत्थर के स्वरुप बनकर रह जाएंगे। तभी भगवान विष्णु का पूरा शरीर पत्थर के समान होने लगा और सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। यह देखकर देवताओं ने वृंदा माता से प्रार्थना कि वे अपना श्राप वापस ले लें। भगवान विष्णु को लज्जित देखकर वृंदा माता ने अपना श्राप वापस कर लिया और अपने पति जालंधर के साथ सती हो गई।
राख से निकला पौधा
वृंदा माता की राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी का नाम दिया और उसे वरदान दिया कि तुलसी के बिना मैं किसी भी प्रसाद को ग्रहण नहीं करूंगा। मेरा विवाह शालिग्राम रूप से तुलसी के साथ होगा और कालांतर इस तिथि को लोग तुलसी विवाह के नाम से जानेंगे। इसका व्रत करने से लोगों को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होगी। तभी से तुलसी विवाह पूरे संसार में विख्यात हो गई।