लाइव टीवी

1928 ओलंपिक : जब हॉकी को ध्यानचंद के रूप में मिला कोहिनूर, भारत के दबदबे की शुरूआत

Updated Jun 26, 2021 | 19:20 IST

Major Dhyanchand: ओलंपिक में सबसे ज्यादा आठ गोल्‍ड मेडल जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सफर की शुरूआत एम्सटरडम से ही हुई। ध्यानचंद ने एम्सटरडम ओलंपिक में सबसे ज्यादा 14 गोल किये।

Loading ...
भारतीय हॉकी टीम
मुख्य बातें
  • मेजर ध्‍यानचंद के रूप में 1928 ओलंपिक से दुनिया को हॉकी का कोहिनूर मिला
  • भारत ने ओलंपिक में 8 गोल्‍ड मेडल जीते, जिसकी शुरूआत 1928 से हुई थी
  • मेजर ध्‍यानचंद ने 1928 एम्‍सटरडम ओलंपिक में सबसे ज्‍यादा 14 गोल किए थे

नई दिल्ली: यूं तो हॉकी 1908 और 1920 ओलंपिक में भी खेली गई थी, लेकिन 1928 में एम्सटरडम में हुए खेलों में इसे ओलंपिक खेल का दर्जा मिला और इन्ही खेलों से दुनिया ने भारतीय हॉकी का लोहा माना और ध्यानचंद के रूप में भारतीय हॉकी के सबसे दैदीप्यमान सितारे ने पहली बार अपनी चमक बिखेरी। ओलंपिक में सबसे ज्यादा आठ गोल्‍ड मेडल जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सफर की शुरूआत एम्सटरडम से ही हुई। 

इससे पहले भारत में हॉकी के इतिहास के नाम पर कलकत्ता में बेटन कप और बांबे (मुंबई) में आगा खान कप खेला जाता था। भारतीय हॉकी महासंघ का 1925 में गठन हुआ और 1928 ओलंपिक में जयपाल सिंह मुंडा की कप्तानी में भारतीय टीम उतरी। भारतीय टीम जब लंदन के रास्ते एम्सटरडम रवाना हो रही थी तो किसी को उसके पदक जीतने की उम्मीद नहीं थी और तीन लोग उसे विदाई देने आये थे। मगर गोल्‍ड मेडल के साथ लौटने पर बांबे पोर्ट पर हजारों की संख्या में लोग उसका स्वागत करने के लिये जमा थे। 

भारतीयों पर हॉकी का खुमार अब चढ़ना शुरू हुआ था और इसके बाद लगातार छह ओलंपिक में गोल्‍ड के साथ ओलंपिक में भारत के प्रदर्शन का सबसे सुनहरा अध्याय हॉकी ने लिखा। ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार ने भाषा से कहा, 'दरअसल, ओलंपिक में हॉकी को शामिल करने की नींव 1926 में भारतीय सेना की टीम के न्यूजीलैंड दौरे से पड़ी। दर्शकों का उत्साह और भारतीयों के खेल की खबरें यूरोपीय देशों तक पहुंची और इसने अहम भूमिका निभाई।' ध्यानचंद ने एम्सटरडम ओलंपिक में सबसे ज्यादा 14 गोल किये, जिनमें फाइनल में नीदरलैंड के खिलाफ दो गोल शामिल थे। 

ध्‍यानचंद को जादूगर यहीं से माना गया

भारत ने टूर्नामेंट में एक भी गोल नहीं गंवाया। ध्यानचंद के कौशल ने विरोधी टीमों को भी मुरीद बना लिया था और खेल खत्म होने के बाद हर किसी की जबां पर इस दुबले पतले भारतीय खिलाड़ी का नाम था। अशोक ने कहा, 'पहला मैच देखने महज 100-150 लोग जमा थे, लेकिन फाइनल में 20,000 से ज्यादा दर्शक स्टेडियम में थे। ध्यानचंद को हॉकी के जादूगर की संज्ञा, लोगों का उनकी हॉकी स्टिक को छूना और भारतीय हॉकी के दबदबे की शुरूआत वहीं से हुई।'

नौ देशों ने 1928 ओलंपिक हॉकी स्पर्धा में भाग लिया था जिन्हें दो समूहों में बांटा गया था। समूह के विजेता को फाइनल और उपविजेता को कांस्य पदक के मुकाबले में जगह मिली । भारत ने ग्रुप चरण में सारे मैच जीते ।

पहले मैच में भारत का सामना ऑस्ट्रिया से था, जिसमें ध्यानचंद ने चार, शौकत अली ने एक और मौरिस गेटली ने एक गोल किया। भारत ने वह मैच 6-0 से जीता। इसके बाद बेल्जियम को 9-0 से मात दी, जिसमें फिरोज खान ने पांच और ध्यानचंद ने एक गोल किया। तीसरे मैच में सामना डेनमार्क से था और ध्यानचंद के चार गोल से भारत ने 5-0 से जीत दर्ज की। आखिरी मैच में स्विटजरलैंड को छह गोल से हराया जिसमें से आधे गोल ध्यानचंद के थे।

भारतीय टीम ने फाइनल में मेजबान नीदरलैंड को 3-0 से शिकस्त दी जिनमें से दो गोल ध्यानचंद ने और एक जार्ज मार्टिंस ने किया।

भारतीय हॉकी के गौरवशाली इतिहास का पहला पन्ना लिखने वाली टीम :

जयपाल सिंह (कप्तान) , ब्रूम एरिक पिन्निंजेर (उपकप्तान), सैयद एम युसूफ, रिचर्ड जे एलेन, माइकल ई रोके, लेसली सी हैमंड, रेक्स ए नौरिस, विलियम जॉन गुडसर कुलेन, केहार सिंह गिल, मौरिस ए गेटली, शौकत अली, जॉर्ज ई मार्टिंस, ध्यानचंद, फिरोज खान, फ्रेडरिक एस सीमैन, संतोष मंगलानी, खेर सिंह गिल।