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Dr. Kamal Ranadive: डॉक्टर कमल रणदिवे को Google ने समर्पित किया आज का Doodle, कैंसर पर किया था बेहतरीन काम

Updated Nov 08, 2021 | 15:27 IST

Dr. Kamal Ranadive (कमल राणादीव) Google Doodle: डॉक्टर कमल रणदिवे का जन्म 8 नवंबर 1917 में महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। कहा जाता है कि कमल के पिता ने उन्हें मेडिकल शिक्षा के लिए प्रेरित किया, लेकिन उनका मन जीवविज्ञान में लगा रहता था।

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गूगल डूडल...
मुख्य बातें
  • डॉक्टर कमल रणदिवे पर गूगल ने बनाया आज का डूडल
  • कैंसर पर किया था अभूतपूर्व रिसर्च
  • 1982 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया

Dr. Kamal Ranadive (कमल राणादीव) Google Doodle: अक्सर गूगल किसी ना किसी का डूडल बनाकर उन्हें अलग अंदाज में याद करता है। चाहे किसी की जयंती हो, पुण्यतिथी हो या फिर किसी को कोई कामयाबी मिली हो, गूगल जरूर डूडल बनाकर उनका सम्मान करता है। इसी कड़ी में आज गूगल ने भारतीय बायोमेडिकल रिसर्चर डॉ कमल रणदिवे का डूडल बनाया है। उनकी 104वीं जयंती पर शानदार डूडल बनाकर गूगल ने उनका जन्मदिन सेलिब्रेट किया है।

रणदिवे को कैंसर और वायरस के बीच संबंधों के बारे में रिसर्च के लिए जाना जाता है। डूडल में गूगल ने डॉ. रणदिवे को माइक्रोस्कोप की ओर देखते हुए दिखाया। जानेमाने इस डॉक्टर कमल रणदिवे का जन्म 8 नवंबर 1917 में महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। कहा जाता है कि कमल के पिता ने उन्हें मेडिकल शिक्षा के लिए प्रेरित किया, लेकिन उनका मन जीवविज्ञान में लगा रहता था। जानकारी के मुताबिक, साल 1949 में  डॉक्टर कमल ने भारतीय कैंसर अनुसंधान केंद्र में शोधकर्ता के रूप में काम करते हुए, कोशिका विज्ञान, कोशिकाओं के अध्ययन में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। बताया जाता है कि डॉक्टर कमल को बाल्टीमोर, मैरीलैंड, यूएसए में जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में फेलोशिप मिला था। इसके बाद वह मुंबई लौट आईं और देश में पहली प्रयोगशाला की स्थापना की। 

पद्म भूषण से सम्मानित थीं डॉक्टर कमल

डॉक्टर कमल ICRC के निदेशक भी रही थीं। वह देश की पहले शोधकर्ताओं में से थीं, जिन्होंने स्तन कैंसर और आनुवंशिकता के बीच एक लिंक का प्रस्ताव दिया। साथ ही कैंसर के वायरस की पहचान भी की। इसके अलावा उन्होंने माइकोबैक्टीरियम लेप्राई का अध्ययन किया, जो जीवाणु कुष्ठ रोग का कारण बनता है। 1973 में कमल ने भारतीय महिला वैज्ञानिक संघ की स्थापना की। साथ ही विदेशों में छात्रों और भारतीय विद्वानों को भारत लौटने और अपने ज्ञान को अपने समुदायों के लिए काम करने के लिए प्रोत्साहित किया था। चिकित्सा के लिए 1982 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। साल 2001 में उनका निधन हो गया था।