- आदियोगी शिव है सबसे पहले योगी।
- योग का इतिहास लगभर 5 हजार साल पुराना है।
- जानिए कैसे हुई इसकी शुरुआत।
हर साल 21 जून को अंतराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है। इस साल कोरोना महामारी की वजह से छठा अंतराष्ट्रीय योग दिवस डिजिटली मनाया जाएगा। भारत में इसे व्यापक स्तर पर मनाया जाता है। यही वजह है कि भारत से उत्पन्न योग अब दुनियाभर में प्रसिद्ध है। कई योग गुरुओं ने यह साबित किया है कि नियमित रूप से योग का अभ्यास किया जाए तो किसी भी बीमारी को ठीक किया जा सकता है। वहीं भारत ने कई योग गुरु हैं, जिन्होंने दुनियाभर में यात्रा कर लाखों लोगों को योग सिखाया है। बता दें कि पश्चिमी देशों के कई लोग योग सीखने और योग सिखाने को अपना पेशा बनाने के लिए भारत के ऋषिकेश आते हैं।
आदियोगी शिव: सबसे पहले योगी
योगिक संस्कृति में भगवान शिव को भगवान के रूप में नहीं बल्कि आदियोगी (प्रथम योगी) के रूप में माना जाता है यानी भगवान शिव योग के जनक थे। यह लिखा है कि लगभग 15000 साल पहले शिव पूर्ण आत्मज्ञान के चरण तक पहुंच गए थे।(यानी अपने दिमाग को 100 प्रतिशत इस्तेमाल करना)। भगवान शिव हिमालय चले गए और इसकी वजह से उत्साह से नाचने लगे। उन्होंने लगातार नृत्य किया जिससे कि वह बहुत तेज या स्थिर हो गए। लोग इसे देखकर चकित थे और इस खुशी का रहस्य सीखना चाहते थे।
लोग इकट्ठा होने लगे, लेकिन शिव ने उनकी परवाह नहीं की। कई लोगों ने इंतजार किया और सात लोगों को छोड़कर बाद में सभी चले गए। वे बाद में सप्तऋषि बने थे(सात ऋषि)। इन सप्तऋषियों ने शिव से उन्हें उनके ज्ञान के बारे में सिखाने के लिए कहा और किस तरह एक आनंददायक राज्य को प्राप्त कर सकते हैं इस बारे में जानने की इच्छा जाहिर की। लेकिन शिव ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह बाहरी दुनिया से पूरी तरह अनजान थे।
जानिए योग का इतिहास और कैसे हुई इसकी शुरुआत
योग का इतिहास लगभर 5 हजार साल पुराना है, लेकिन भारत में इसकी शुरुआत का श्रेय महर्षि पतंजलि को दिया जाता है। 5 हजार साल पहले ऋषियों ने मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास के योग को महत्वपूर्ण बताया था। ऐसा मना जाता था कि ईश्वर और मनुष्य के बीच संबंध बनाने के लिए योग एक मुख्य साधन है। वहीं योग करीब 2700 बी.सी साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता की अमर देन है। सिंधु घाटी सभ्यता में योग साधना और उसकी मौजूदगी को दर्शाया गया है, जिससे साफ पता चलता है कि प्रचीन भारत में भी योग की मौजूदगी थी। उनकी सभ्यता में लैंगिक चिन्ह और देवी माता के मूर्ति की बनावट योग तंत्र को दर्शाता है। इसके अलावा वैदिक, उपनिषद, बौद्ध, जैन के रीति-रिवाजों और महाभारत-रामायण काव्यों में भी योग के बारे में बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि सूर्य नमस्कार भी योग साधना से प्रभावित है।
विदेशों में योग का सफर
योग की उत्पत्ति वैसे तो भारत में हुई लेकिन विदेशों में इसके प्रचार और प्रसार का श्रेय स्वामी विवेकानंद को दिया जाता है। स्वामी विवेकानंद ने अपने विदेशों में अक्सर भारत की संस्कृति और परंपराओं के बारे में लोगों को बताते रहते थे। उन्होंने लोगों को योग के प्रति न सिर्फ ज्ञान दिया बल्कि उनके इस प्रयास से कई योग गुरुओं ने पश्चिमी देशों में इसका प्रचार-प्रसार का निर्णय लिया था। बाद में 1980 तक पश्चिमी देशों में कई योग शिविर लगाए गए, जिसके बाद लोगों के जीवन में काफी परिवर्तन देखने को मिला। लोगों ने खुद महसूस किया कि शारीरिक और मानसिक मजबूती के लिए योग जरूरी है।