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Varanasi Research News: वाराणसी में आईआईटी बीएचयू का शोध, अब पानी से आसानी से निकाले जा सकेंगे कॉपर व जिंक

Updated May 07, 2022 | 15:12 IST

Varanasi Research News: आईआईटी बीएचयू बायोकेमिकल इंजीनियरिंग विभाग ने नई तकनीक इजाद की है। अब पानी से आसानी से कॉपर, निकल व जिंक आयन निकाले जा सकेंगे। आईआईटी बीएचयू का यह शोध इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।

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तस्वीर साभार:&nbspTwitter
आईआईटी बीएचयू को मिली शोध में सफलता
मुख्य बातें
  • अब पानी से आसानी से निकाले जा सकेंगे कॉपर, निकल व जिंक
  • आईआईटी बीएचयू बॉयोकेमिकल इंजीनियरिंग विभाग को शोध में मिली सफलता
  • काशी के सामने घाट से एकत्र किया गया नमूना

Varanasi Research News: वाराणसी में दूषित पानी से अब हानिकारक कॉपर, निकल और जिंक आयनों को आसानी से साफ किया जा सकेगा। इसके लिए आईआईटी बीएचयू में स्कूल ऑफ बॉयोकेमिकल इंजीनियरिंग में हुए शोध में सफलता मिली है। वैज्ञानिकों ने गंगा की मिट्टी और बेंटोनाइट के सांचे का उपयोग कर जलीय चरण से कॉपर, निकल और जिंक आयनों के निष्कासन में सफलता पाई है। अध्ययन के लिए वाराणसी स्थित घाट से गंगा की मिट्टी और बेंटोनाइट मिट्टी का उपयोग करके सांचा तैयार किया गया। 

तांबे, निकल और जस्ता आयनों को सोखने की क्षमता के लिए सांचे का परीक्षण किया गया था। इसके सोखने की प्रक्रिया से पता चला कि प्रक्रिया के आधे घंटे के भीतर संतुलन हासिल किया जा सकता है।

गर्मी और सर्दियों के बीच महत्वपूर्ण तापमान में रहता है अंतर 

आईआईटी बीएचयू के स्कूल ऑफ बॉयोकेमिकल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर डॉ. विशाल मिश्रा ने बताया कि इस अध्ययन के लिए इष्टतम पैरामीटर 6 का पीएच, 50 मिलीग्राम/लीटर की प्रारंभिक धातु आयन एकाग्रता, 30 मिनट का संपर्क समय और 35 एष्ट का तापमान था। यह शोध इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। वाराणसी में एक आर्द्र उपोष्णकटिबंधीय जलवायु है, जिसमें गर्मी और सर्दियों के बीच महत्वपूर्ण तापमान में अंतर रहता है। बेसिन की वार्षिक औसत वर्षा 39 से 200 सेमी, औसत 110 सेमी के बीच होती है।

सामने घाट से एकत्र किया गया नमूना

मानसून के मौसम के दौरान 80 प्रतिशत वर्षा होती है, जो जून से अक्टूबर तक चलती है। साल भर में वर्षा में बड़े अस्थायी बदलाव के कारण नदी के प्रवाह की विशेषताएं काफी भिन्न होती हैं। डॉ. विशाल मिश्रा ने बताया कि डाउन-स्ट्रीम सैंपलिंग स्टेशनों में सभी भारी धातुओं की सांद्रता बढ़ गई थी। वास्तविक समय स्टेशनों पर सीडी, नी और पीबी का स्तर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनुशंसित (डब्ल्यूएचओ) अधिकतम अनुमेय सांद्रता (मैक) से अधिक है। सामने घाट उन स्थलों में से एक था, जहां से नमूने एकत्र किए गए थे। सामने घाट का चयन करने का एकमात्र कारण इसका उच्च जनसंख्या घनत्व है, जो अनुपचारित औद्योगिक और घरेलू कचरे को जल निकायों में छोड़े जाने से जल प्रदूषण में योगदान देता है। 

अधिक मात्रा में सेवन करना हो सकता है खतरनाक

घरों और आसपास की औद्योगिक इकाइयों से प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं। अपशिष्ट जल से भारी धातुओं के सोखने की एक सस्ती तकनीक की व्यापक जांच की गई है। डॉ. मिश्रा ने बताया कि भारी धातुओं में उच्च परमाणु क्रमांक, परमाणु भार, परमाणु मनत्व होते हैं। यदि इनका सेवन अधिक मात्रा में किया जाए, तो ये जहरीली होती हैं। लंबे समय तक संपर्क में रहने से जानलेवा और दुर्बल करने वाली बीमारियां हो सकती हैं।
 

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