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दमनकारी नीतियां, साझा हित: दो अहम बातें, जहां चीन और तालिबान एक ही जगह आते हैं नजर

Updated Aug 20, 2021 | 09:18 IST

अफगानिस्‍तान में तालिबान के आधिकारिक कब्‍जे से पहले ही चीन अपना रुख साफ कर चुका था। चीन कई मौकों पर तालिबान के प्रति समर्थन जता चुका है। आखिर वो कौन सी बातें हैं, जो दोनों को करीब लाती हैं।

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तस्वीर साभार:&nbspAP
चीन के विदेशमंत्री वांग यी (दाएं) ने 28 जुलाई को तिआंजिन में तालिबान प्रतिनिधि मुल्ला अब्‍दुल गनी बरादर (बाएं) से मुलाकात की थी
मुख्य बातें
  • अफगानिस्‍तान पर तालिबान के कब्‍जे के बाद से चीन का नरम रुख जाहिर है
  • तालिबान प्रतिनिधि से मिलकर चीन पहले ही अपनी नीति स्‍पष्‍ट कर चुका था
  • तालिबान की हुकूमत के साथ ही दुनिया की नजरें चीन के रुख पर भी टिकी हैं

काबुल : अफगानिस्‍तान पर कब्‍जे के तालिबान के कब्‍जे के बाद पूरी दुनिया और यहां तक कि अफगान नागरिक अधिकारों, जानमाल की सुरक्षा को लेकर डरे और चिंता में डूबे हैं तो वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं, जिनका तालिबान को लेकर नरम रुख साफ तौर पर सामने आ रहा है। इनमें चीन और पाकिस्‍तान भी शामिल हैं। काबुल पर आधिकारिक कब्‍जे से भी पहले तालिबान के एक प्रतिनिधिमंडल ने चीन जाकर अफगानिस्‍तान में समर्थन के लिए मदद मांगी थी।

चीन ने तब तालिबान से उइगर चरमपंथियों के खिलाफ अभियान में मदद मांग ली थी। अब जब तालिबान अफगानिस्‍तान की सत्‍ता पर काब‍िज हो चुका है, चीन का नरम रुख तब भी सामने आया है। आखिर वो कौन सी बातें हैं, जो चीन और तालिबान को इतना करीब लाती हैं। इस बारे में एक जर्मन मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है, 'चाहे मानवाधिकारों के उल्‍लंघन का मसला हो या अभिव्‍यक्ति की आजादी के दमन की बात चीन और तालिबान इस मामले में एक ही जगह खड़े नजर आते हैं।'

दोहरा रवैया

रिपोर्ट में चीन और तालिबान की आलोचना करते हुए कहा गया है, विकास का लंबा इतिहास होने के बावजूद चीन का कम्‍युनिस्‍ट शासन जहां आज भी अपने नागरिकों के साथ 'गुलामों' जैसा व्‍यवहार करता है, वहीं तालिबान अपनी सोच से ही उग्र और दकियानूसी है। जो तालिबान खुद को इस्‍लाम का झंडाबरदार कहता है, वह चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों के साथ चीनी कम्‍युनिस्‍ट शासन के दमनकारी रवैये पर चुप है, जिसे लेकर दुनियाभर में चीन पर उंगली उठती रही है।

तालिबान के कब्‍जे वाले अफगानिस्‍तान में चीन के अपने व्‍यावसायिक हित हैं, जहां उसकी नजर खरबों की खनिज संपदा पर है तो उसने यहां बड़े निवेश की घोषणा भी कर रखी है। DW की रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने जुलाई में ही अफगानिस्‍तान में बड़े पैमाने पर निवेश की घोषणा की थी, जिसके साथ उसकी लगभग 76 किलोमीटर की सीमा मिलती है। चीनी कंपनियों ने यहां पहले ही तेल के खनन का अधिकार हासिल कर लिया है।

चीन-तालिबान दोस्‍ती

अफगानिस्‍तान की राजधानी काबुल में राष्‍ट्रपति भवन पर कब्‍जे से पहले जुलाई के आखिर में तालिबान के नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर की चीनी विदेश मंत्री वांग यी की मुलाकत की पृष्‍ठभूमि में इन सबको आसानी से समझा जा सकता है, जिसमें चीन ने अफगानिस्तान में तालिबान को 'अहम सैन्य और राजनीतिक ताकत' करार दिया तो तालिबान ने चीन को एक 'भरोसेमंद दोस्‍त' बताया और एक-दूसरे के प्रति समर्थन जताया।

बहरहाल, दुनिया की नजरें अफगानिस्‍तान में तालिबान की हुकूमत के साथ-साथ चीन के रुख पर भी टिकी हैं।