- स्कॉटलैंड के ग्लासगो में कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टी (COP) के 26वें शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया
- सम्मेलन के दौरान दुनिया के नेताओं ने कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन के खतरों को लेकर आगाह किया
- COP26 में सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जक देश चीन, अमेरिका के साथ-साथ भारत को लेकर भी खूब चर्चा रही है
ग्लासगो: स्कॉटलैंड के ग्लासगो में कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (COP26) के लिए दुनियाभर के दिग्गज नेता जुटे हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यहां पहुंचे हुए हैं, जिस दौरान उनकी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, इजरायल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट सहित दुनिया के कई देशों के नेताओं से मुलाकात हुई है। प्रधानमंत्री ने यहां भारतीय समुदाय के लोगों से भी मुलाकात की।
COP के 26वें शिखर सम्मेलन का मकसद जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कार्बन गैसों के उत्सर्जन में इस हद तक कटौती करने पर दुनिया के नेताओं में सहमति बनाना है कि वैश्विक ताप औद्योगिकीकरण से पूर्व के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस कम रहे। इस सम्मेलन में दुनिया के देशों ने जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरों को लेकर दुनिया को आगाह किया।
भारत के लिए बड़ी चुनौती : पीएम मोदी
ग्लासगो में आयोजित इस संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन कॉन्फ्रेंस में सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जक देश चीन दूसरे सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जक देश अमेरिका के साथ-साथ भारत को लेकर भी खूब चर्चा रही है। इन सबके बीच सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत सहित ज्यादातर विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र के लिए जलवायु एक बड़ी चुनौती है।
उन्होंने कहा, 'दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन को लेकर हो रही चर्चा में एडेप्टेशन को उतना महत्व नहीं मिला है, जितना मिटिगेशन को मिला है। यह उन विकासशील देशों के साथ अन्याय है जो जलवायु परिवर्तन से अधिक प्रभावित हैं। भारत सहित ज्यादातर विकासशील देशों में जलवायु परितर्वन कृषि क्षेत्र के लिए एक बड़ी चुनौती है। फसल से जुड़े पैटर्न में बदलाव आ रहा है। असमय बारिश और बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है।
पीएम मोदी ने रखे 3 अहम विचार
कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, 'इस संबंध में मेरे तीन विचार हैं : पहला, एडेप्टेशन को हमें अपनी विकास नीतियों और परियोजनाओं का एक अभिन्न अंग बनाना होगा। भारत में नल से जल, स्वच्छ भारत मिशन और उज्जवला जैसी परियोजनाओं से हमारे जरूरतमंद नागरिकों को अनुकूलन लाभ तो मिले ही हैं, उनके जीवन स्तर में भी सुधार हुआ है। दूसरा, कई पारंपरिक समुदायों में प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहने का ज्ञान है। हमारी अनुकूलन नीतियों में इन्हें उचित महत्व मिलना चाहिए। ज्ञान का ये प्रवाह नई पीढ़ी तक भी जाए, इसलिए इसे स्कूल के पाठ्यक्रम में भी इसे जोड़ा जाना चाहिए। तीसरा, एडेप्टेशन के तरीके चाहे लोकल हों पिछड़े देशों को इसके लिए ग्लोबल सपोर्ट मिलना चाहिए। लोकल एडेप्टेशन के लिए ग्लोबल सपोर्ट की सोच के साथ ही भारत ने कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिस्टेंस इंफ्रास्ट्रक्चर पहल की थी। मैं सभी देशों को इस पहल के साथ जुड़ने का अनुरोध करता हूं।'
अब नहीं चेते तो कोई नहीं बचा पाएगा : जो बाइडेन
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि हम खतरे की स्थिति में हैं, जो लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, 'हममें से कोई भी उन बुरे हालातों से अपने आपको नहीं बचा पाएगा, अगर हम इस मौके का फायदा नहीं उठा सके।' उन्होंने कहा कि कार्बन उत्सर्जन रोकने और भविष्य के लिए एक बेहतर दुनिया के निर्माण के लिए आज सभी के लिए एक असाधारण अवसर है। उन्होंने कहा कि अमेरिका 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में एक गीगा-टन से भी ज्यादा की कमी लाएगा।
अपनी कब्र खोदने जैसा : UN महासचिव
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनिओ गुटेरेस ने दुनियाभर में जीवाश्म ईंधन से व्यापक पैमाने पर हो रहे कार्बन उत्सर्जन को मानव विनाश का कारण बताया। उन्होंने कहा कि यह मानवता को विनाश की तरफ धकेल रही है। अब वक्त आ गया है कि या तो इसे रोक दिया जाएगा। गहरे माइनिंग व ड्रिलिंग को लेकर भी उन्होंने आगाह किया और कहा कि यह अपनी कब्र खोदने जैसा है।