- नेपाल ने भारतीय इलाकों कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को अपने हिस्से में दिखाया है।
- नेपाल की दक्षिणी सीमा से संबंधित भौगोलिक इलाकों को विवादित किताब में दिखाया गया, नेपाली कैबिनेट ने किताब के प्रकाशन पर रोक लगाई
- नेपाल के कई लैंड डिपार्टमेंट को थी आपत्ति, किताब में तथ्यातमक रूप से अनेकों गल्तियां
काठमांडू। नेपाल की मौजूदा सरकार यानी के पी शर्मा ओली की सरकार ने कुछ ऐसे फैसले किए हैं जिसके बाद भारत के साथ संबंधों में खटास पैदा हुआ है। जिस तरह से कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा पर नेपाल ने अपना दावा जताते हुए संसद से नक्शा पारित करा दिया उसके बाद संबंध और खराब हो गए। लेकिन अब जो जानकारी सामने आ रही है उससे पता चलता है कि नेपाल पर कहीं न कहीं भारतीय दबाव काम आया है और वो कैबिनेट के फैसले में दिखाई भी पड़ता है। ओली कैबिनेट से भारत नेपाल सीमा से जुड़ी एक किताब के प्रकाशन पर रोक लगाने का फैसला किया है। इस किताब में नेपाल के सीमाई इलाकों और भौगोलिक जगहों के बारे में जानकारी दी गई है। नेपाली कैबिनेट ने माना कि किताब में जो विषय सामाग्री है वो विवादों को जन्म देने वाली है।
विवादित किताब के प्रकाशन पर रोक
काठमांडू पोस्ट के मुताबिक नेपाल के कानून और संसदीय मंत्री शिव माया तुमबाहांग्फे ने बताया कि इस समय इस तरह की किताब का प्रकाशन सही नहीं होगा जिसमें तथ्यात्म गलतियां हों। बता दें कि नेपाल के शिक्षा मंत्री गिरिराज मणि पोखरल ने 115 पेज वाली किताब जिसका टाइटल सेल्फ स्टडी मैटिरियल ऑफ नेपाल टेरिटरी एंड बॉर्डर को जारी किया था। इस किताब में खासतौर से नेपाल की दक्षिणी सीमा के बारे में जानकारी दी गई है जो भारत से लगती है।
किताब में तथ्यात्मक खामियों का जिक्र
इस किताब के संबंध में कैबिनेट बैठक से पहले चीफ सेक्रेटरी लोक दर्शन रेग्मी से मुलाकात की थी और बताया कि किताब में दर्जनों गलतियां हैं। लैंड मैनेजमेंट मंत्रालय के प्रवक्ता जनक राज जोशी ने कहा कि किताब में तरह तरह की खामी हैं और उसे जिस रूप में पेश किया गया है कि उसकी वजह से संबंध और खराब होंगे। किताब में नेपाल का भौगोलिक क्षेत्रफल 1, 46, 641.78 वर्ग किमी है, जिसमें कालापानी इलाके का 460.28 वर्ग किमी है। सर्वेक्षण विभाग के पूर्व महानिदेशक बुद्ध नारायण श्रेष्ठ ने कहा कि उन्हें शिक्षा मंत्रालय द्वारा केवल कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा से संबंधित मानचित्र और अन्य तथ्यों की जांच करने के लिए परामर्श दिया गया था।उन्होंने कहा कि उन्होंने विवादित क्षेत्र और नेपाल के नक्शे में कुल क्षेत्रफल के बारे में कुछ गलतियाँ पाई हैं।
नेपाल के लैंड डिपार्टमेंट को भी थी आपत्ति
नई पीढ़ी को वास्तविकता के बारे में सूचित करने के लिए पुस्तक प्रकाशित करने के शिक्षा मंत्रालय के फैसले में कुछ भी गलत नहीं है।" "मैं सुझाव दूंगा कि मंत्रालय इसे सही करे और एक नया संस्करण प्रकाशित करे।"प्रस्तावना के अनुसार, पुस्तक का प्रकाशन, भारत सरकार द्वारा पिछले साल 2 नवंबर को भारतीय सीमाओं के भीतर कालापानी क्षेत्र को दर्शाते हुए अपने राजनीतिक मानचित्र को प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया गया था।लेकिन न केवल विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय की कमी के लिए पुस्तक के प्रकाशन पर आपत्तियां आई हैं, बल्कि यह नेपाल-भारत संबंधों को भी प्रभावित कर सकता है, जो क्षेत्र के विवाद के कारण अपने सबसे अच्छे आकार में नहीं हैं। यह भारत के साथ बातचीत की संभावनाओं को और कम कर सकता है,