नई दिल्ली: पाकिस्तान की लाहौर हाई कोर्ट ने बलात्कार पीड़ितों के वर्जिनिटी टेस्ट पर प्रतिबंध लगा दिया है। लाहौर उच्च न्यायालय ने सोमवार को ये फैसला सुनाया, जिसका मानवाधिकार समर्थकों ने स्वागत किया है। इस फैसले के बाद पंजाब प्रांत में 'टू-फिंगर टेस्ट' के अभ्यास पर रोक लग जाएगी। लाहौर हाई कोर्ट की जज आयशा मलिक ने कहा कि ये परीक्षण अपमानजनक है और इसका कोई फोरेंसिक मूल्य नहीं था।
इस प्रैक्टिस के खिलाफ पंजाब प्रांत में दो याचिकाएं दायर की गई थीं, जिन पर सुनवाई के बाद ये फैसला सुनाया गया है। लंबे समय से मांग रही थी कि बलात्कार के मामलों में कौमार्य परीक्षण को समाप्त किया जाए। उनका कहना था कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। सोमवार का फैसला पंजाब में लागू होता है लेकिन अन्य प्रांत के हाई कोर्ट में दायर याचिकाओं के लिए ये एक मिसाल के रूप में काम कर सकता है। ऐसी ही एक याचिका फिलहाल सिंध उच्च न्यायालय में लंबित है।
क्या है टू फिंगर टेस्ट
'टू-फिंगर टेस्ट' महिला की योनि में एक या दो उंगलियां डालकर किया जाता है। इससे जानने की कोशिश की जाती है कि हायमन की उपस्थिति है या नहीं। सिद्धांत रूप में यह निर्धारित करने के लिए ये टेस्ट किया जाता है कि महिला यौन रूप से सक्रिय है या नहीं। कुछ डॉक्टरों का दावा है कि परीक्षण यह निर्धारित कर सकता है कि क्या किसी महिला के साथ पहली बार शारीरिक संबंध बनाए गए हैं। अगर कोई महिला यौन संबंधों को लेकर सक्रिय है तो इस टेस्ट के आधार पर उसके बयान को नकारा जा सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने स्पष्ट रूप से इस टेस्ट को खारिज कर दिया है। इसमें कहा गया है कि इसकी कोई वैज्ञानिक योग्यता नहीं है और यह मानव अधिकारों का उल्लंघन है। भारत में पहले ही इस टेस्ट पर रोक लगा दी गई है।