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पाकिस्तान में पनौती है PM की कुर्सी, इमरान खान भी पूरा नहीं कर पाए अपना कार्यकाल

Updated Apr 10, 2022 | 08:11 IST

Imran Khan : पाकिस्तान में लोकतंत्र कभी भी अपने पैर जमा नहीं पाया। बीते 75 सालों में वहां का लोकतंत्र हिचकोलें खाते रहा है। कभी सेना ने चुनी हुई सरकार को सत्ता से बेदखल किया तो कभी राजनीतिक पार्टियों की अपनी आंतरिक गुटबाजी ने उन्हें बीच चौराहे पर लाकर खड़ा किया। इमरान खान का भी हश्र अपने पूर्ववर्तियों की तरह हुआ है।

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पाकिस्तान में लोकतंत्र कभी जड़े नहीं जमा पाया। -सभी फोटो AP

Imran Khan : क्रिकेट के कप्तान एवं खिलाड़ी के रूप में इमरान खान का करियर शानदार रहा और इस खेल की बुलंदियां छूने के बाद उन्होंने सियासत की पारी खेलनी शुरू की। साल 2018 में वह पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री बन गए। सेना के साथ उनकी करीबी देखकर लगता था कि वह अपना पांच वर्षों का कार्यकाल पूरा कर लेंगे। जानकारों का कहना है कि बीते कुछ महीनों से सेना के साथ जारी टकराव इमरान को भारी पड़ गया। इमरान की सियासी पारी का अंत करने के लिए सेना और विपक्ष ने मिलकर जो पास फेंका उसमें वह फंस गए। नेशनल असेंबली में शनिवार को अविश्वास प्रस्ताव पर हुई वोटिंग में उन्हें हार का सामना करना पड़ा है। इस हार ने पीएम के रूप में उनके कार्यकाल का अंत कर दिया है। 

पाकिस्तान को आजादी भारत के साथ 1947 में मिली लेकिन यहां लोकतंत्र कभी अपनी जड़ें जमा नहीं पाया। वह हमेशा डवांडोल एवं सेना के कुटिल चाल का शिकार होता रहा। चुनी हुईं सरकारें या तो बर्खास्त होती रहीं या मार्शल लॉ की वजह से प्रधानमंत्रियों को अपना पद छोड़ना पड़ा। पाकिस्तान बनने के बाद मोहम्मद अली जिन्ना ने गवर्नर-जनरल के रूप में देश का कार्यभार संभाला था। 1948 में जिन्ना की मौत हो गई। साल 1948 में लियाकत अली खान पहले प्रधानमंत्री बने लेकिन वह भी इस पद पर ज्यादा समय तक नहीं टिक पाए। खान की 1951 में हत्या कर दी गई। पाकिस्तान की सियासत में प्रधानमंत्री पद के साथ जो पनौती जुड़ी है उसने इमरान का भी पीछा नहीं छोड़ा। आइए यहां हम एक नजर डालते हैं पाकिस्तान के उन प्रधानमंत्रियों पर जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। 

लियाकत अली खान (चार साल 63 दिन)
लियाकत अली खान पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री थे। वह 1947 से 1951 तक चार साल 63 दिनों तक पीएम पद पर रहे। 1951 में उनकी हत्या कर दी गई। लियाकत का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ और इनकी शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एवं ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में हुई। वह जिन्ना के विचारों से प्रभावित होकर मुस्लिम लीग में शामिल हो गए। भारत से अलग होने के लिए जिन्ना के देश विभाजन अभियान में लियाकत ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया।  साल 1951 में लियाकत रावलपिंडी में एक चुनावी रैली कर रहे थे इसी दौरान सईद अकबर नाम के व्यक्ति ने उनकी हत्या कर दी। 

सर ख्वाजा नजीमुद्दीन (एक साल 182 दिन) 
लियाकत अली खान की हत्या के बाद सर ख्वाजा नजीमुद्दीन पाकिस्तान के पीएम बने। वह इस पद पर 17 अक्टूबर 1951 से 17 अप्रैल 1953 तक रहे। इनका कार्यकाल एक साल 182 दिनों तक रहा। यह भी मुस्लिम लीग के नेता थे। गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मोहम्मद ने 1953 में इनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया। इसके बाद नजीमुद्दीन को पीएम पद से हटना पड़ा। नजीमुद्दीन का जन्म बंगाल में हुआ था और वह  पाकिस्तान के पीएम पद पर आसीन होने वाले पहले बंगाली थे। इन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एवं कैम्ब्रिज से पढ़ाई की। 

मोहम्मद अली बोगरा (दो वर्ष 117 दिन)
मोहम्मद अली बोगरा 17 अप्रैल 1953 से 12 अगस्त 1955 तक पाकिस्तान के पीएम रहे। बोगरा का कार्यकाल दो वर्ष 117 दिनों तक रहा। यह भी मुस्लिम लीग के नेता थे।  पाकिस्तान की राजनीति में यह जाना-माना नाम नहीं थे। बोगरा एक राजनयिक थे। 1954 के चुनावों के बाद गर्वनर जनरल ने इनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया। इन्होंने कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से पढ़ाई की। इसके बाद मुस्लिम लीग से जुड़ गए। बोगरा बर्मा, कनाडा और अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे। एक राजनयिक के रूप में इन्होंने अमेरिका के साथ पाकिस्तान के रिश्तों को मजबूत किया। 

चौधरी मोहम्मद अली (एक साल 31 दिन)
मुस्लिम लीग के नेता अली का कार्यकाल बहुत कम समय तक रहा। वह 12 अगस्त 1955 से 12 सितंबर 1956 तक एक साल 31 दिन तक देश के प्रधानमंत्री रहे। मुस्लिम लीग, अवामी लीग एवं रिपब्लिकन पार्टी की गठबंधन सरकार के वह पीएम थे। खुद इनकी पार्टी मुस्लिम लीग ने अविश्वास प्रस्ताव के बाद इन्हें पीएम पद से हटा दिया। अशरफ की गिनती पीपीपी के निष्ठावान एवं वरिष्ठ नेताओं में होती है। 

हुसैन शाहिद सुहारावर्दी (एक वर्ष 35 दिन)
अवामी लीग के नेता सुहारावर्दी भी ज्यादा दिनों तक प्रधानमंत्री पद पर नहीं रह पाए। वह 12 सितंबर 1956 को पीएम बने और 17 अक्टूबर 1957 को इनका कार्यकाल समाप्त हो गया। सुहारावर्दी पीएम पद पर एक वर्ष 35 दिनों तक रहे। वह अपने समय के एक मशहूर विधिवेत्ता थे। हालांकि, इनकी अपनी पार्टी पर मजबूत पकड़ नहीं रही। सरकार में शामिल सहयोगी दलों का समर्थन एवं अपनी पार्टी में गुटबाजी की वजह से सुहारावर्दी ने पीएम पद से इस्तीफा दे दिया। 

इब्राहिम इस्माइल चुंदरीगर (60 दिन)
मुस्लिम लीग के नेता चुंदरीगर बेहद कम दिनों तक पाकिस्तान के पीएम रहे। इन्होंने 17 अक्टूबर 1957 को पीएम पद की कुर्सी संभाली और 16 दिसंबर 1957 को इन्हें पद से हटना पड़ा। पीएम पद पर चुंदरीगर मात्रा 60 दिनों तक रहे। अवामी लीग और रिपब्लिकन पार्टी की ओर से पेश अविश्वास प्रस्ताव पर हुई वोटिंग में इन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद चुंदरीगर को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी।  

सर फिरोज खान नून (295 दिन)
नून रिपब्लिकन पार्टी के नेता थे। नून 16 दिसंबर 1957 से सात अक्टूबर 1958 तक (295 दिन) पाकिस्तान के पीएम रहे। नून पेशे से वकील थे। पीएम के रूप में नून अपना कार्यकाल पूरा कर पाते कि इन्हीं की पार्टी के राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने देश में मार्शल ला लागू कर दिया। इसके बाद नून को पीएम पद से हटना पड़ा। नून ने ब्रिटेन से कानून की पढ़ाई की। वह अविभाजित भारत में ब्रिटेन में हाई कमिश्नर एवं ब्रिटिश इंडियन आर्मी के लिए सैन्य सलाहकार भी रहे। 

नूरुल अमीन (मात्र 13 दिन)
नूरुल अमीन पाकिस्तान के आंठवें पीएम थे। प्रधानमंत्री पद पर अमीन का कार्यकाल मात्र 13 दिनों तक रहा। पाकिस्तान मुस्लिम लीग के नेता अमीन 7 दिसंबर 1971 से 20 दिसंबर 1971 तक पीएम पद पर हे। पाकिस्तान में सबसे कम समय तक अमीन का कार्यकाल रहा। साल 1971 के आम चुनाव के बाद याहया खान प्रशासन ने इन्हें पीएम नियुक्त किया। अमीन 1970 से 1972 तक देश के एक मात्र उप राष्ट्रपति भी रहे। यह भी बंगाल से थे। अमीन पूर्वी बंगाल के मुख्यमंत्री भी रहे। वह युद्ध के हमेशा खिलाफ रहे और नहीं चाहते थे कि पाकिस्तान का विभाजन हो।

(तस्वीर सौजन्य-पीपीपी वेबसाइट)

जुल्फिकार अली भुट्टो (तीन साल 325 दिन)
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता जुल्फिकार अली भुट्टो तीन साल 325 दिनों तक प्रधानमंत्री के रूप में अपनी सेवा दी। वह इस पद पर 14 अगस्त 1973 से पांच जुलाई 1977 तक रहे। संविधान में संशोधन होने के बाद भुट्टो ने राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया और प्रधानमंत्री बने। भुट्टो की ओर से नियुक्त सेना प्रमुख जनरल जिआ ने इनके खिलाफ बगावत कर दी। जुलाई 1977 में जिआ ने देश में मार्शल कानून लागू कर दिया। भुट्टो ने ही पीपीपी की स्थापना की। इन्होंने कैलिफोर्निया एवं ऑक्सफोर्ड से अपनी पढ़ाई पूरी की। कश्मीर में ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू करने में भुट्टो की अहम भूमिका रही। यह ऑपरेशन 1965 के युद्ध का एक प्रमुख कारण रहा। 18 मार्च 1978 को भुट्टो हत्या का दोषी पाया गया और इन्हें फांसी की सजा दी गई।   

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मुहम्मद खान जुनेजो (तीन वर्ष 66 दिन)
जुनेजो पीएम पद पर तीन वर्ष 66 दिनों तक रहे। 1985 के चुनाव में जुनेजो ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की। बाद में वह पाकिस्तान मुस्लिम लीग के साथ जुड़ गए। जुनेजो 24 मार्च 1985 को पीएम पद पर आसीन हुए और इस पद पर 29 मई 1988 तक रहे। संविधान  के आठवें संशोधन के बाद राष्ट्रपति ने इन्हें पीएम पद से बर्खास्त कर दिया। इन्होंने ब्रिटेन के कृषि संस्थान से पढ़ाई की। जुनेजो जमीदार परिवार से आते थे। 

बेनजीर भुट्टो ( दो बार पीएम, अधूरा कार्यकाल)
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की नेता बेनजीर भुट्टो दो दिसंबर 1988 को पहली बार देश की पीएम बनी। पहली बार का इनका कार्यकाल एक वर्ष 247 दिनों तक रहा। बेनजीर को देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला। पीएम पद पर बेनजीर दो बार 1988 से 1990 और 1993 से 1996 तक देश की प्रधानमंत्री रहीं। अपने पिता जुल्फिकार अली भुट्टो की मौत के बाद पीपीपी की कमान बेनजीर के हाथों में रही। साल 2007 में एक चुनावी सभा के दौरान बेनजीर की हत्या कर दी गई। इन्होंने हारवर्ड एवं ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। इनके पति आसिफ अली जरदारी पाकिस्तान के राष्ट्रपति रह चुके हैं। पीपीपी की कमान अब बेनजीर के बेटे बिलावल भुट्टो के हाथ में है।  

नवाज शरीफ (तीन बार पीएम, अधूरा कार्यकाल)
नवाज शरीफ तीन बार 1990 से 1993, 1997 से 1999 तक और 2013 से 2017 तक पीएम रहे लेकिन वह तीनों बार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उन्हें देश छोड़कर लंदन में शरण लेनी पड़ी। वह बीच में पाकिस्तान लौटे लेकिन जेल में तबीयत खराब होने के बाद उन्हें फिर विदेश जाने की इजाजत दे दी गई। पीएमएल-एन की बागडोर उनके भाई शहबाज शरीफ के हाथों में है। पाकिस्तान में विपक्ष की अगुवाई अभी शहबाज कर रहे हैं। चुनाव तक अगर कोई अंतरिम सरकार बनती है तो शहबाज उसके पीएम बन सकते हैं। 

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मीर जफरुल्लाह खान जमाली (एक वर्ष 216 दिन)
पाकिस्तान मुस्लिम लीग (क्यू) के नेता जमाली एक वर्ष 216 दिन तक देश के पीएम रहे। पीएम के रूप में इनका कार्यकाल 23 नवंबर 2002 से 26 जून 2004 तक रहा। पीएम बनने के बाद इन्होंने परवेज मुशर्रफ की विदेश एवं आर्थिक नीति को आगे बढ़ाते रहे लेकिन वह अपने पद को ज्यादा दिनों तक सुरक्षित नहीं रख पाए और जून 2004 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया।   

चौधरी शुजात हुसैन (मात्र 57 दिन)
पीएमएल (क्यू) के नेता हुसैन मात्र 57 दिनों तक पीएम पद की कुर्सी पर रहे। इनका कार्यकाल 30 जून 2004 से 26 अगस्त 2004 तक रहा। देस की संसद ने हुसैन को पीएम चुना और शौकत अजीज के आने तक हुसैन पीएम के रूप में अपनी सेवा देते रहे। हुसैन कारोबारी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। 
शौकत अजीज (तीन साल 79 दिन)
पीएमएल (क्यू) के नेता शौकत अजीज 28 अगस्त 2004 से 15 नवंबर 2007 तक पाकिस्तान के पीएम रहे। इन्होंने इस पद पर तीन वर्ष 79 दिनों तक अपनी सेवा दी। संसद का कार्यकाल पूरा  होने के बाद इन्हें पीएम पद से हटना पड़ा। पीएम बनने से पहले अजीज की पहचान एक बैंकर एवं वित्तीय अधिकारी के रूप में थी।  वह पाकिस्तान के वित्त मंत्री रहे। मुशर्रफ के अनुरोध पर वह अमेरिका से पाकिस्तान लौटे और पहले वित्त मंत्री और फिर पीएम बनाए गए।  

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यूसुफ रजा गिलानी (4 वर्ष 86 दिन)
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता यूसुफ रजा गिलानी चार वर्ष 86 दिनों तक पाकिस्तान के पीएम रहे। इनका कार्यकाल 25 मार्च 2008 से लेकर 19 जून 2012 तक रहा। सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें अदालत की अवमानना का दोषी पाया जिसके बाद अप्रैल 2012 में इन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। गिलानी पीपीपी के वाइस चेयरमैन और केंद्रीय कार्यसमिति के सदस्य हैं। साल 2021 में इन्हें सीनेटर चुना गया। बेनजीर भुट्टो की सरकार में गिलानी पर्यटन मंत्री भी रहे। प्रधानमंत्री रहते हुए इन्होंने अमेरिका के साथ पाकिस्तान के रिश्तों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। फोर्ब्स पत्रिका ने एक बार इन्हें दुनिया का 38वां सबसे शक्तिशाली व्यक्ति भी घोषित किया।

राजा परवेज अशरफ (275 दिन)
पीपीपी के नेता अशरफ 275 दिनों तक पाकिस्तान के पीएम रहे। इनका कार्यकाल 22 जून 2012 से लेकर 24 मार्च 2013 तक रहा। सुप्रीम कोर्ट की ओर से गिलानी को अयोग्य करार दिए जाने के बाद पीपीपी ने अशरफ को पीएम पद पर नियुक्त किया। पीएम बनने से पहले यह गिलानी सरकार में जल एवं शक्ति मंत्री थे। 

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शाहिद खकान अब्बासी (303 दिन)
पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के नेता अब्बासी 303 दिनों तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे। इनका कार्यकाल 1 अगस्त 2017 से लेकर 31 मई 2018 तक रहा। नवाज शरीफ पर महाभियोग लगने के बाद संसद ने अब्बासी को पीएम पद के लिए चुना। नेशनल असेंबली भंग होने के बाद अब्बासी का कार्यकाल खत्म हो गया। कारोबारी परिवार से आने वाले अब्बासी पाकिस्तान के 21वें पीएम थे। इन्होंने कैलिफोर्निया एवं वाशिंगटन यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। राजनीति में आने से पहले अब्बासी मध्य पूर्व के देशों एवं अमेरिका में इंजीनियर के रूप में काम किया। साल 1988 में अपने पिता की मौत के बाद इन्होंने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की।