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Afghanistan:अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा : क्या हुआ और क्या हो सकता है

Updated Aug 17, 2021 | 06:31 IST

Taliban occupation of Afghanistan: तालिबान का 1990 के दशक के अंत में देश पर कब्जा था और अब एक बार फिर उसका कब्जा हो गया है।

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लोगों को पूर्व में 1996 से 2001 तक तालिबान द्वारा की गई बर्बरता की बुरी यादें डरा रही हैं

काबुल: दो दशक तक चले युद्ध के बाद अमेरिका के सैनिकों की पूर्ण वापसी से दो सप्ताह पहले तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है।विद्रोहियों ने पूरे देश में कोहराम मचा दिया और कुछ ही दिनों में सभी बड़े शहरों पर कब्जा कर लिया क्योंकि अमेरिका और इसके सहयोगियों द्वारा प्रशिक्षित अफगान सुरक्षाबलों ने घुटने टेक दिए।

अमेरिका में 11 सितंबर 2001 को हुए भीषण आतंकी हमलों के बाद वाशिंगटन ने ओसामा बिन लादेन और उसे शरण देने वाले तालिबान को सबक सिखाने के लिए धावा बोला तथा विद्रोहियों को सत्ता से अपदस्थ कर दिया। बाद में, अमेरिका ने पाकिस्तान के ऐबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को भी मार गिराया।

तालिबान ने देश में फिर से अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया

अमेरिकी सैनिकों की अब वापसी शुरू होने के बाद तालिबान ने देश में फिर से अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया और कुछ ही दिनों में पूरे देश पर कब्जा कर पश्चिम समर्थित अफगान सरकार को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया।विगत में तालिबान की बर्बरता देख चुके अफगानिस्तान के लोग खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। काबुल हवाईअड्डे पर देश छोड़ने के लिए उमड़ रही भारी भीड़ से यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि लोग किस हद तक तालिबान से भयभीत हैं।

तालिबान द्वारा की गई बर्बरता की बुरी यादें डरा रही हैं

लोगों को पूर्व में 1996 से 2001 तक तालिबान द्वारा की गई बर्बरता की बुरी यादें डरा रही हैं। सबसे अधिक चिंतित महिलाएं हैं जिन्हें तालिबान ने विगत में घरों में कैद रहने को मजबूर कर दिया था।अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले साल अपने कार्यकाल में अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने की योजना की घोषणा की थी। वहीं, अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति जो. बाइडन ने इस योजना को वास्तव में ही अंजाम दे दिया और 31 अगस्त तक अंतिम सैनिक की वापसी की समयसीमा तय कर दी।

सुरक्षाबलों को प्रशिक्षित करने के लिए अरबों डॉलर खर्च

अमेरिका और नाटो सहयोगियों ने अफगान सुरक्षाबलों को प्रशिक्षित करने के लिए अरबों डॉलर खर्च कर दिए, लेकिन पश्चिम समर्थित अफगान सरकार भ्रष्टाचार में डूबी थी। अफगान कमांडरों ने संसाधनों में हेरफेर करने के लिए सैनिकों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर दिखाई और जब युद्ध की नौबत आई तो सैनिकों के पास गोला-बारूद और खाने-पीने तक की चीजों की कमी हो गई। नतीजा उनकी हार के रूप में निकला।

राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश से भाग जाने की खबर भी आई

रविवार को तालिबान काबुल में भी घुस गया और इस बीच, राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश से भाग जाने की खबर भी आई। देश की जनता को निराश और भयभीत करने के लिए यह काफी था। स्त्री-पुरुष और बच्चे सभी भयभीत हैं और वे यही सोच रहे हैं कि आगे क्या होगा। रोते-बिलखते लोगों को देखकर समझ आ सकता है कि अफगानिस्तान किस अंधकार की तरफ जाता दिख रहा है।