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प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्रा के बीच यूरोपियन देशों की उम्मीदें और भारत केंद्रित विश्व जीओपोलिटिक्स के मायने

Updated May 02, 2022 | 23:58 IST

PM Modi's Europe visit: पीएम कार्यालय की सूचना के मुताबिक भारत जर्मनी के डिप्लोमैटिक संबंधों को कुल 70 साल हो गए है साथ ही कुल 22 सालों से जर्मनी हमारा स्ट्रेटेजिक पार्टनर भी है आगे प्रधानमंत्री का कार्यक्रम डेनमार्क और फ़्रांस मे भी है।

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तस्वीर साभार:&nbspTwitter
PM मोदी की विदेश यात्रा: भारत केंद्रित विश्व जीयोपोलिटिक्स के मायने

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन यूरोपियन देशों की यात्रा का 2 मई को पहला पड़ाव जर्मनी है, यूरोपियन देशों की यह यात्रा कई मायनो में अहम है। यूरोप के देशों में अंतर्राष्ट्रीय राजनिति के नजरिये से जो देश ज्यादा सक्रिय हैं वो आज के यूरोपियन परिदृश्य में लाचार पड़े हुए नज़र आते हैं इनमे जर्मनी फ़्रांस और ब्रिटेन जैसे देश हैं।चाहे वो ज्वलंत यूक्रेन रूस युद्ध का मामला हो या जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर एकमत हो कर काम न कर पाने की विवशता हो या एशिया केंद्रित होती ट्रेड और बिजनेस व्यवस्था जिनमे चीन और भारत लगातार अपना दबदबा बनाते चले जा रहे हैं, का मसला हो। ऐसे हालत में आज का यूरोप और भी विवश दिख रहा है।

अगर हम नजर डाले हाल में यूरोपियन नेताओं के बयानों पर तो भारत विश्व के लिए कितना महत्वपूर्ण हो गया है इसका एक छोटा सा नजारा हमे मिल जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी के यात्रा के ठीक पहले जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्तस ने एक इंडियन अंगेजी अखबार से कहा की उन्हें भरोसा है कि, भारत और जर्मनी के बीच रूस के कार्रवाइयों को लेकर जो समझौता है वो सयुक्त राष्ट्र यानि UN चार्टर के सिद्धांतों का उलंघन करता है और हममे इस मुद्दे पर बात होगी और दोनों देश एकमत होंगे कि वार में जो सिविलियन किलिंग्स हो रहे है उनकी जिम्मेदारी तय की जाय।

'रूस के खिलाफ इस अघोषित जंग में भारत की मौखिक सहमति चाहते हैं'

जाहिर है जर्मन चांसलर ये बात सीधे तौर पर रूस को निशाना बनाते हुए कह रहे हैं पर रूस के खिलाफ इस अघोषित जंग में भारत की मौखिक सहमति चाहते हैं, दरअसल रूस का यूक्रेन के खिलाफ युद्ध से नाटो (अटलांटिक से सटे देशों का सैन्य संगठन) के देश सीधे तो नहीं जुड़े हैं पर ब्रिटेन के प्रधनमंत्री बोरिस जॉनसन का उक्रेन दौरा,अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी, यूरोपियन कमिशन अध्यक्ष उर्सुला वॉन देर लियेन का यूक्रेन जाना या अन्य यूरोपियन देशों के प्रतिनिधियों का दौरा स्पष्ट बताता है कि नाटो के साथ साथ पूरा यूरोपियन यूनियन यूक्रेन के साथ खड़ा है और इसमें अन्य देशों का रूस के विरूद्ध समर्थन जुटाया जा रहा है।

रायसीना डायलॉग 2022 के माध्यम से भारत ने विश्व को दो टूक बोलने में कोई कसर न छोड़ी

वहीं भारत में हुए रायसीना डायलॉग 2022 के माध्यम से भारत ने अपनी बढ़ती हुई अहमियत को समझते हुए विश्व को दो टूक बोलने में कोई कसर न छोड़ी, यूरोपियन कमिशन अध्यक्ष उर्सुला वॉन देर लियेन को जवाब देते हुए कहा कि रूस के युद्ध पर वैश्विक प्रतिक्रिया, इंडो पैसिफिक में या कहीं भी इंटरनेशनल कानूनों के उलंघन के खिलाफ करवाई की दिशा तय करेगी जिसके उत्तर में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कड़ा रुख अपनाते हुए दो सन्देश दिया कि आप यूक्रेन पर भारत का रुख जानना चाहते है पर एक साल से भी कम समय पहले अफगानिस्तान में क्या हुआ था जहां नागरिकों को दुनियां ने एक संकट की तरफ धकेल दिया। 

"अमेरिका सहित यूरोपियन देशों में अंतराष्ट्रीय समस्याओं पर स्पष्टता नहीं है"

सदेश साफ़ था भारत भी देख रहा है दुनिया की बड़ी छोटी घटनाओं को विश्व कैसे देख रहा है और क्या प्रतिक्रिया दे रहा है।इसमें कोई दो राय नहीं कि अमेरिका सहित यूरोपियन देशों में अंतराष्ट्रीय समस्याओं पर स्पष्टता नहीं है जैसे भारतीय विदेश मंत्री की बात का विश्लेषण करें तो यही समझ आता है। भारत इस बात को लेकर सचेत है कि अमेरिकन या यूरोपियन नेतृत्व विश्व की घटनाओं पर कैसे प्रतिक्रिया देता है उस हिसाब से भारत भी अपनी प्रतिक्रिया देने का हक़ रखता है।

अमेरिका समेत यूरोपियन देशों का भारत के तरफ देखना इसलिए भी मज़बूरी बनती जा रहा है कि चीन लगातार अपनी बेल्ट रोड जैसी परियोजनाओं से एशिया के छोटे छोटे देशों  या अफ्रीका के कई देशों में आक्रामक निवेशः कर पश्चिमी निवेश को कम्पटीशन दे रहा है, ताईवान का मुद्दा हो या  इंडो पैसिफ़िक में चीन की बढ़ती एक्टिविज्म विस्तारवाद या चीन-रूस सैन्य साझेदारी की सम्भावना ये सब किसी न किसी रूप में यूरोप के बॉर्डर्स पर और हितो पर भी ख़तरा पैदा कर रहे हैं।

भारत ने हर एक चुनौती को अपने मूल इंडियन फिलोसोफी के साथ मुकाबला किया है

भारत की तरफ देखने और सहमति प्रपत्र हासिल करने का कारण ये भी है कि बीते कुछ सालों में भारत ने हर एक चुनौती को अपने मूल इंडियन फिलोसोफी के साथ मुकाबला किया है चाहे वो लद्दाख के पैन्गसोंग पर आक्रामक रुख का हो या पाकिस्तान के विरूद्ध आतंकवाद की चुनौती हो या फिर वैक्सीन पर "वन वर्ल्ड" का कांसेप्ट वही भारत ने श्रीलंका समेत कई देशों में आर्थिक मदद दे कर वेस्टर्न देशों को भारत की तरफ देखने को मजबूर कर दिया है।

भारत चीन जैसे देशो के जैसे विस्तारवाद और आर्थिक मदद दे कर ठग लेने की नियत नहीं रखते हैं। जाहिर है भारत का कद बढ़ा है और वैश्विक निर्णयों पर भारत की सहमति आवश्यक हो गयी है इस क्रम मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कि अगुवाई मे भारत इस अंतराष्ट्रीय खेल को बखूबी खेल रहा है।