- FATF की बैठक में पाकिस्तान को लेकर अहम फैसला हो सकता है
- पाकिस्तान जून 2018 से ही FATF की ग्रे लिस्ट में बना हुआ है
- उस पर ग्रे लिस्ट में बने रहने या ब्लैकलिस्ट होने का खतरा मंडरा रहा है
नई दिल्ली : फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की बैठक 21 से 25 जून के बीच होने जा रही है, जिसमें पाकिस्तान को लेकर बड़ा फैसला हो सकता है। आतंकवाद के वित्त पोषण और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं करने को लेकर पाकिस्तान को जून 2018 में FATF की ग्रे लिस्ट में रखा गया था, जिसके बाद से वह अब तक उस लिस्ट में बना हुआ है। आतंकी फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के केस में FATF ने पाकिस्तान से 27 प्रमुख बिंदुओं पर काम करने के लिए कहा था, लेकिन अब तक उसने कई शर्तों को पूरा नहीं किया है।
इससे पहले FATF की बैठक फरवरी में हुई थी, जिसमें पाकिस्तान को इसकी ग्रे लिस्ट में बरकरार रखने का फैसला लिया गया था। एफएटीएफ की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि पाकिस्तान आतंकवाद के वित्तपोषण पर रोक लगाने के लिए ठोस कदम उठाने में विफल रहा और उसने तीन महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा नहीं किया। इसके लिए उसे जून तक का समय दिया गया था। अब जब एक बार फिर एफएटीएफ की बैठक हो रही है तो पाकिस्तान पर इन शर्तों को पूरा नहीं करने की स्थिति में ग्रे लिस्ट में बरकरार रखने या ब्लैक लिस्ट किए जाने का खतरा मंडरा रहा है।
क्या कर रहा भारत?
आतंकवाद के वित्त पोषण और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ पाकिस्तान ने 27 प्रमुख बिंदुओं पर कितना काम किया है, इसे लेकर एफएटीएफ के इंटरनेशनल कोऑपरेशन रिव्यू ग्रुप (ICRG) ने एक रिपोर्ट तैयार की है। कोरोना संकट के बीच आईसीआरजी की बीते सप्ताह हुई एक वर्चुअल बैठक में इन बिंदुओं पर पाकिस्तान की कार्रवाइयों की समीक्षा की गई थी, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और फ्रांस के साथ-साथ भारत भी है।
भारत, जो पाकिस्तान की धरती से संचालित होने वाली आतंकी गतिविधियों का भुक्तभोगी रहा है, इस मसले पर करीब से नजर बनाए हुए है। कूटनीतिक मोर्चे पर भारत लगातार पाकिस्तान के खिलाफ लामबंदी करने में जुटा है, ताकि इस मसले पर उसे किसी तरह की रियायत न मिल सके। भारत ने एफएटीएफ के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को पुख्ता तौर पर यह बताने की कोशिश की है कि पाकिस्तान ने आखिर आतंकवाद के संबंध में अब तक क्या 'ठोस कार्रवाई' की है।
भारत ने कई वारदातों और साक्ष्यों के आधार पर दुनिया को बताया है कि पाकिस्तान की धरती से किस तरह आतंकी गतिवधियां बेरोक-टोक संचालित होती हैं और वह भले ही आतंकी तंजीमों के खिलाफ कार्रवाई की बात करता है, लेकिन बात जब संयुक्त द्वारा प्रतिबंधित मसूद अजहर, दाऊद इब्राहिम, जकुउर रहमान लखवी जैसे आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई की बात आती है तो वो कन्नी काट जाता है। खुद को 'आतंकवाद से पीड़ित' देश बताकर वह अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की नजरों में धूल झोंकने की कोशिश करता है।
फ्रांस, अमेरिका की नजरें भी सकती हैं टेढ़ी
भारत सहित दुनिया के कई देश हैं, जो आतंकी फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई चाहते रहे हैं। मौजूदा वक्त में पाकिस्तान को भारत के साथ-साथ अमेरिका और फ्रांस की टेढ़ी नजर का भी सामना करना पड़ सकता है। FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर आने के लिए पाकिस्तान को 39 में से कम से कम 12 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता है, लेकिन विभिन्न मुद्दों पर फ्रांस और अमेरिका की नाराजगी उसे भारी पड़ सकती है।
फ्रांस के खिलाफ पाकिस्तान के कई नेताओं ने बीते कुछ महीनों में तीखी टिप्पणियां की हैं। पाकिस्तान में फ्रांस के खिलाफ पिछले दिनों कट्टरपंथी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक की ओर से हुए हिंसक प्रदर्शन ने दुनियाभर का ध्यान अपनी ओर खींचा था। हालांकि यह ऐसा मसला नहीं नजर नहीं आता, जिसे लेकर फ्रांस, पाकिस्तान के खिलाफ कोई 'बदले की कार्रवाई' करे, लेकिन भारत से फ्रांस की बढ़ती कूटनीतिक व सामरिक करीबी उसके लिए मुश्किलों का सबब बन सकती है। फिर फ्रांस के नेतृत्व ने बीते कुछ समय में आतंकवाद के खिलाफ जो नीतियां अपनाई हैं, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि फ्रांस यह देखना चाहेगा कि आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान ने वाकई कार्रवाई की है या नहीं। अगर पाकिस्तान ने इस दिशा में ठोस कार्रवाई नहीं की है तो उसे फ्रांस की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है।
वहीं, अमेरिका भी पाकिस्तान से कई मोर्चों पर नाराज है। अमेरिका पहले ही पााकिस्तान की अदालत के उस फैसले से नाराज है, जिसमें अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या के मामले में मुख्य अभियुक्त आतंकी उमर सईद शेख सहित चार लोगों को रिहा करने का आदेश इस साल जनवरी में दिया गया था। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी पहले ही इसे लेकर पाकिस्तान को लताड़ चुकी है। इस साल फरवरी में हुई बैठक में जब FATF ने पाकिस्तान को अपनी ग्रे लिस्ट में ही रखने का फैसला किया था, तब एफएटीएफ की ओर से जारी बयान में स्पष्ट कहा गया था कि पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र द्वारा सूचीबद्ध किए गए आतंकवादियों और उसके सहयोगियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए और यह दिखनी भी चाहिए। पाकिस्तान की अदालतों को आतंकवाद में शामिल लोगों को निश्चित रूप से प्रभावी और निर्णायक सजा देनी चाहिए। एफएटीएफ की इस टिप्पणी को डेनियल पर्ल की हत्या मामले में आतंकियों को बरी करने के पाकिस्तानी अदालत के फैसले से जोड़कर देखा गया था, जिसे लेकर अमेरिका पहले ही नाखुशी जता चुका था।
आतंकवाद बना गले की फांस
FATF एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, जो दुनियाभर में होने वाली मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिए नीतियां बनाती है। 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका के न्यूयार्क शहर में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद इसके उद्देश्यों में आतंकवाद की फंडिंग को रोकना भी शामिल किया गया। पाकिस्तान को जून 2018 में वैश्विक चरमपंथ फैलाने वाले आतंकी संगठनों को बिना रोक-टोक मिलने वाली फंडिंग और इस दिशा में सरकार की ओर से ठोस कार्रवाई नहीं किए जाने के कारण ग्रे लिस्ट में शामिल किया था।
एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में उन देशों को शामिल जाता है, जहां आतंकी फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग का जोखिम सबसे अधिक होता है। जो आतंकवाद की फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए FATF के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार होते हैं, उन्हें ग्रे लिस्ट में रखा जाता है, जबकि अगर कोई देश इसके लिए तैयार नहीं होता और इस दिशा में कदम नहीं उठाता और उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता है।
किसी भी देश के FATF की ग्रे लिस्ट में होने का सीधा असर उसे मिलने वाले विदेशी निवेश पर पड़ता है। आयात, निर्यात और IMF तथा ADB जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज मिलने में भी अड़चनें आती हैं। ई-कॉमर्स और डिजिटल फाइनेंसिंग में भी इसकी वजह से मुश्किल खड़ी होती है। अब पाकिस्तान के संदर्भ में देखें तो बीते दो साल से उसकी 'तंगहाल' आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह आसानी से समझा जा सकता है कि एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में होना उसे किस कदर परेशान कर रहा है। आतंकी फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ ठोस कार्रवाई नहीं करने की स्थिति में पाकिस्तान की दुश्वारियां आने वाले वक्त में और बढ़ सकती है।