नई दिल्ली: सरकार ने एयर इंडिया में अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए रुचि पत्र मांगे हैं। यह दूसरा मौका है जब सरकार एयर इंडिया में अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए रुचि पत्र मंगाया है। एयर इंडिया में अपनी 100 फीसदी हिस्सेदारी के साथ साथ सरकार एयर इंडिया एक्सप्रेस की 100 फीसदी हिस्सेदारी और संयुक्त उद्यम एआईएसएटीएस की 50 फीसदी हिस्सेदारी भी बेच रही है।
लेकिन सवाल ये आता है कि सरकार एयर इंडिया में अपनी हिस्सेदारी क्यों बेच रही है। सरकारी थिंक टैंक नीति आयोग ने एयरलाइंस की परिसंपत्तियों और विनिवेश की रूपरेखा तैयार की है। घाटे में चल रही इस एयरलाइन में सरकार ने अपनी हिस्सेदारी बेचने का ऐलान किया है। इसके लिए सरकार ने 17 मार्च तक रुचि पत्र दायर करने की समयसीमा रखी है।
एयर इंडिया के पतन की कहानी साल 2007 में शुरू हुई थी। जब इसका विलय इंडियन एयरलाइंस के साथ शुरू हुआ था। रिपोर्ट्स के मुताबिक नौकरशाही के खराब फैसले और कर्ज में होने के बाद भी बोइंग विमानों की खरीद के कारण एयर इंडिया की हालत खराब हुई। एयर इंडिया का कुल घाटा वित्त वर्ष 2018-19 में 8,556.35 करोड़ रुपये पहुंच गया है।
वहीं साल 2017-18 में एयर इंडिया का कुल घाटा 5348.18 करोड़ रुपये था। उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने दिसंबर में संसद में बताया था कि एयर इंडिया को पिछले एक दशक में लगभग 69,575.64 करोड़ रुपये का घाटा हुआ, जिसके बाद सरकार ने इसमें अपनी हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया। एयर इंडिया की खराब हालत के पीछे रुपये में गिरावट और विमान तेल की कीमतों में तेजी भी कारण है।
पाकिस्तान द्वारा हवाई रूट बंद कर दिए जाने के बाद एयर लाइन को हर दिन 3 से 4 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। जेआरडी टाटा ने साल 1948 में एयर इंडिया लॉन्च किया था और 5 साल बाद ही भारत सरकार ने उसका नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया था। साल 2005 में एयर इंडिया ने कुल 111 नए प्लेन खरीदे थे, उस वक्त कंपनी की हालत काफी अच्छी नहीं थी। इस डील के कारण कंपनी पर 70 हजार करोड़ रुपए का बड़ा खर्च आया था। इसके अतिरिक्त एयर इंडिया के प्लेन को घाटे के साथ बेचा गया।
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