बैंकों ने बढ़ाई MCLR, लोन लेने वालों पर क्या होगा असर 

हाल ही में अनेक प्रमुख 3 बैंकों ने मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट्स (एमसीएलआर) में बढ़ोतरी की है। इससे, एमसीएलआर से जुड़े लोन मंहगे हो जाएंगे। उनकी ईएमआई और ब्याज खर्च (आउटगो) में बढ़ोतरी होगी।

Banks increased MCLR, what will be its effect on borrowers
एमसीएलआर बढ़ोतरी का लोन लेने वाले पर क्या असर होगा? 

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई), भारत के सबसे बड़े सार्वजनिक बैंक ने भी इस हफ्ते की शुरुआत में एमएलसीआर को बढ़ा दिया है। उम्मीद की जा सकती है कि ऐसा ही कदम दूसरे बैंक भी उठाएंगे। बैंक ऑफ बड़ौदा और एक्सिस बैंक ने सभी अवधियों के लिए अपनी एमएलसीआर को पांच बीपीएस बढ़ा दिया है। इन बैंकों द्वारा इस बढ़ोतरी का अर्थ यह है कि ब्याज दरें अब अपने न्यूनतम स्तर तक पहुंच चुकी हैं। यदि आपने एमएलसीआर लिंक्ड लोन लिया है, तो निम्नलिखित पांच महत्वपूर्ण बातों को आपके लिए जानना बहुत जरूरी है।

एमएलसीआर को समझना

एमसीएलआर, या मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स-बेस्ड लैंडिंग रेट, सरल शब्दों में, वह बेंचमार्क लेंडिंग रेट है जिस पर बैंक विभिन्न प्रकार के कर्जों के लिए उधारकर्ताओं को उधार देते हैं। बेंचमार्क दर वह न्यूनतम दर है जिस पर किसी बैंक द्वारा उधार दी जा सकती है। एमसीएलआर की अवधि एक रात से लेकर तीन साल तक होती है। केंद्रीय बैंक या जमाकर्ताओं से लिए गए धन की लागत को ध्यान में रखते हुए बैंक अपने एमसीएलआर की गणना करते हैं। टेन्योर (अवधि) प्रीमियम, ऑपरेटिंग खर्चों से लागतें प्रभावित होती हैं, और कैश रिजर्व रेशो बनाए रखने की लागत पर भी विचार किया जाता है। आरबीआई ने अप्रैल 2016 में एमसीएलआर व्यवस्था की शुरुआत की थी।

एमएलसीआर और लोन की दरें

खुदरा दर (रिटेल रेट), वह दर जिस पर आप उधार लेते हैं- वह उधारदाता की बैंचमार्क दर होती है जिसमें मार्क-अप को जोड़ा जाता है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि बैंक की एक वर्ष की एमसीएलआर 7.10 की है, जिसके बाद वह 40 बेसिस प्वाइंट का मार्क-अप जोड़ता है, जिससे खुदरा दर 7.50 की हो जाती है। मार्क-अप का फैसला-उधारकर्ता की आय, क्रेडिट स्कोर, तथा उसके द्वारा उधार ली जाने वाली राशि के निश्चित आधार कारक पर किया जाता है। खासतौर पर बैंकों द्वारा उनके होम लोन दरों को उनके एक-वर्ष एमसीएलआर पर बैंचमार्क किया जाता है। एमसीएलआर में समय-समय पर संशोधन किए जा सकते हैं। बढ़ती ब्याज दरों की स्थिति, जैसी की आजकल है, उसकी वजह से फंड्स की लागत बढ़ जाती है। इससे एमसीएलआर में बढ़ोतरी होती है, जिससे लोन दरों में बढ़ोतरी होती है, और वे मंहगे हो जाते हैं।

एमसीएलआर तथा रेपो रेट लिंक्ड लोन में अंतर

एमसीएलआर एक आंतरिक बैंचमार्क होता है, जिसे बैंक द्वारा तय किया जाता है। 1 अप्रैल, 2016 से दिए गए बैंक लोन, एमसीएलआर पर बैंचमार्क किये जाते हैं। इसमें अक्तूबर, 2019 से बदलाव आना शुरू हुआ जब भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों को निर्देश दिया कि वे अपनी खुदरा लोन दरों को बाह्य बैंचमार्क जैसे रेपो रेट पर बैंचमार्क करना शुरू करें। अधिकांश बैंको ने अपने होम लोन को रेपो रेट के साथ लिंक किया हुआ है। आरबीआई का यह विश्वास है कि रेपो-लिंक्ड लोन की कीमत अधिक पारदर्शिता के साथ तय की जाती है, और एमसीएलआर-लिंक्ड लोन की तुलना में रेगुलेटर से उधारकर्ता तक दरों में कटौती का ट्रांसमिशन बेहतर होता है। आरबीआई ने पिछले दो वर्षों से रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है और इसे 4% पर बनाए रखा है। इसके नतीजे में रेपो रेट्स के साथ लिंक्ड लोन के लिए उधार (ऋण) की दरों में गिरावट हुई है। परिणामस्वरूप, आज के समय में एमसीएलआर-लिंक्ड लोन की तुलना में रेपो-लिंक्ड लोन सस्ते हैं।

एमसीएलआर लोन से रेपो लोन में स्विच करना

रेपो लोन की मौजूदगी के बावजूद, वर्तमान में अधिकांश लोन आज भी पुराने बैंचमार्क जैसे एमसीएलआर से लिंक्ड हैं। इस बात की संभावना है कि ऐसे लोन, रेपो लोन से मंहगे हैं। आप रिफाईनेंस के लिए अपने बैंक को प्रोसेसिंग फीस का भुगतान करके, एमसीएलआर से रेपो लोन के लिए स्विच कर सकते हैं। आप बेहतर शर्तां (टर्म्स) को ऑफर करने वाले किसी दूसरे बैंक को बैलेंस ट्रांसफर भी कर सकते हैं। दूसरे विकल्प में लोन की प्रोसेसिंग तथा मॉर्गेज रजिस्ट्रेशन के लिए थोड़ी अधिक लागत उठानी पड़ सकती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको यह पता होना चाहिए कि बैंकों से मिलने वाले नए होम लोन, एमसीएलआर से लिंक्ड नहीं होने चाहिए। वे सभी रेपो से लिंक्ड होने चाहिए।

एमसीएलआर लोन रेट रिसेटिंग

एमसीएलआर-लिंक्ड लोन को तीन, छह या बारह महीनों में रिसेट किया जा सकता है। एग्रीमेंट उधारकर्ता और उधारदाता के बीच में होता है। यदि आपका लोन एमसीएलआर लोन है, अपने लोन एग्रीमेंट की जांच कर लें कि अगला रिसेट कब है।

अंत में

आप भी सोच रहे होंगे कि क्या एमसीएलआर के साथ बने रहें अथवा नहीं? ठीक है... यह सब बहुत सी बातों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, आपका एमसीएलआर वार्षिक आधार पर रिसेट होता है, तथा अगला रिसेट अभी 10-12 महीने दूर है। आप उस अवधि के लिए नियत दरों का लाभ उठाना जारी रख सकते हैं क्योंकि दूसरी जगह दरें बढ़ रही हैं। लेकिन आपका रिसेट जल्द ही होने वाला है, तो मार्केट की गतिविधियों के अनुसार आपकी दर भी बढ़ सकती है।

यदि आप एमसीएलआर लोन की ईएमआई के खर्च (आउटगो) को कम करना चाहते हैं, तो आप ऐसा अपने लोन की प्रिपेमेंट करके या अपने लोन की अवधि को बढ़ा कर सकते हैं। आप बैलेंस लोन ट्रांसफर का विकल्प भी चुन सकते हैं। लेकिन इससे पहले कि आप इन विकल्पो को चुनें, आपके लिए यह समझदारी होगी कि आप अपना हिसाब-किताब ठीक से कर लें तथा वह विकल्प चुनें जिससे आप अधिक बचत कर पाते हैं और जल्द ही कर्ज मुक्त हो जाते हैं।

(इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर:  ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)

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