मुंबई : केंद्र एवं राज्य सरकारों का संयुक्त रूप से कर्ज चालू वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 91% के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है। एक ब्रोकरेज कंपनी ने अपनी रिपोर्ट में यह कहा है। अगर यह होता है तो 1980 के बाद सामान्य सकारी कर्ज का सबसे ऊंचा स्तर होगा। उसी समय से यह आंकड़ा रखा जाना शुरू हुआ था। ब्रोकरेज कंपनी मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के अर्थशास्त्रिों की रिपोर्ट के अनुसार पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में केंद्र एवं राज्यों का संयुक्त रूप से कर्ज-जीडीपी अनुपात 75% था। रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्ज-जीडीपी अनुपात 2029-30 तक 80% के उच्च सतर पर बना रह सकता है और इसके 2039-40 से पहले इसको 60% से नीचे लाने का लक्ष्य पूरा होने की संभावना नहीं दिखती।
सरकारी कर्ज का स्तर ऊंचा होने से आर्थिक वृद्धि की संभावनाएं प्रभावित होती हैं। पिछले कुछ साल से आर्थिक वृद्धि को गति देने में सरकार के पूंजी व्यय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। साथ ही वित्त वर्ष 2015-16 से सरकार का कर्ज भी लगातार बढ़ रहा है। वित्त वर्ष 1999-2000 में सरकार का जीडीपी के अनुपात के रूप में कर्ज 66.4% था। 2014-15 में यह 66.6% रहा। उसके बाद से इसमें लगातार वृद्धि हो रही और 2019-20 में 75% के स्तर पर पहुंच गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जबतक निजी व्यय में ठोस रूप में तेजी नहीं आती, वास्तविक जीडीपी वृद्धि अगले दशक में धीमी रहेगी और इसके औसतन 5 से 6% रहने का अनुमान है जबकि 2010 के दशक में यह औसत 7% थी।
इसमें कहा गया है कि संयुक्त रूप से सामान्य सरकार (केंद्र एवं राज्यों का संयुक्त रूप से) का कर्ज बढ़कर 2019-20 में जीडीपी का 75% हो गया जो 2017-18 में 70% था। इसके 2020-21 में 91% के स्तर पर पहुंच जाने की आशंका है। यह 1980 से आंकड़े की उपलब्धता के बाद से सर्वाधिक है। यह 2022-23 तक जीडीपी का 90% बना रहेगा और धीरे-धीरे कम होकर 2029-30 तक 80% के स्तर पर पहुंच जाएगा। ब्रोकरेज कंपनी के अनुसार सार्वजिनक कर्ज में वृद्धि से सरकार के खर्च की क्षमता प्रभावित होगी।
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