वंदे भारत एक्सप्रेस के व्हील्स के बाद अब रेल में CCTV लगाने की दौड़ में सबसे आगे हैं चीनी कंपनी

बिजनेस
कुंदन सिंह
कुंदन सिंह | Special Correspondent
Updated May 24, 2022 | 12:26 IST

गलवान घाटी घटना के बाद चीनी कम्पनियों का बहिष्कार हुआ था। इस बीच सीसीटीवी कैमरों को लेकर चीन की कंपनी हिकविजन फ्रंट रनर बन कर सामने आई हैं ।

 Chinese company to install CCTV in indian rail
सीसीटीवी लगाने को लेकर रेलटेल ने बीते अगस्त 2021 से मई 2022 के बीच 9 महीने में 8 बार टेंडर निकाले पर अभी तक किसी को आर्डर नहीं दिया गया है।  

नई दिल्ली : गलवान घाटी विवाद के बाद देश में चीनी कम्पनियों का बहिष्कार और विकल्प में मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने में की बात का असर अब रेलवे में कम होने लगा हैं।  भारतीय रेलवे एक बार फिर अपनी जरूरतों के लिए चीनी कम्पनियों पर निर्भरता बढ़ानी शुरू कर चुकी हैं। हॉल ही में वंदे भारत एक्सप्रेस की 39 हज़ार ट्रेन पहियों की आपूर्ति के लिए चीनी  कंपनी, TZ (Taizhong) हांगकांग इंटरनेशनल लिमिटेड को अनुबंध दिया था। ट्रेन के पहिये के बाद चीनी कंपनी को देने के बाद अब बारी हैं सीसीटीवी कैमरों की। निर्भया फंड की मदद से रेलवे में यात्रियों की सुरक्षा के लिए लगाई जाने वाली सीसीटीवी कैमरों के लिए जारी किए गए टेंडर में एक बार फिर चीन की कंपनी हिकविजन फ्रंट रनर बन कर सामने आई हैं।

गौरतलब हैं कि निर्भया फंड के मदद से देशभर के रेलवे स्टेशनों के अलावा ट्रेनो के अंदर साथ में कॉमन एरिया में सीसीटीवी लगाने का काम भारतीय रेलवे की पीएसयू रेलटेल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के पास है। रेलवे एस्टेब्लिशमेंट और यात्रियों की सुरक्षा की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण योजना हैं ऐसे में चीन की कम्पनियों का आना सेफ्टी और सिक्युरिटी के लिहाज से एक गम्भीर विषय हैं।

रेलटेल के तरफ से आधिकारिक कोई बयान नहीं आया हैं पर उनके तरफ से इस मामले में कहा गया हैं कि टेंडर की तकनीकी मूल्यांकन की जा रही हैं इसके बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा। ओ भारत सरकार के नियमों के तहत की होगा। सूत्रों की माने तो चीन की हिकविजन ने क्लोज-सर्किट टेलीविजन (सीसीटीवी) कैमरों के लिए रेलटेल द्वारा जारी कई टेंडर  पर बोली लगाई है।  हालांकि, इन टेंडरों का मूल्यांकन किया जा रहा है और अभी तक अवार्ड नहीं किया गया है। सीसीटीवी लगाने को लेकर रेलटेल ने बीते अगस्त 2021 से मई 2022 के बीच 9 महीने में 8 बार टेंडर निकाले पर अभी तक किसी को आर्डर नहीं दिया गया है। टेंडर की अनुमति लागत  738 करोड़ हैं।

मौजूदा समय के नियमों की बात करे तो भारत के पड़ोसी देशों के वेंडर या कम्पनी देश में सर्विसेज या सप्लाई तभी कर सकती हैं जब तक कमपीटेंट अथॉरिटी से रजिस्टर्ड हो। इसके लिए भारत सरकार ने एक रजिस्ट्रेशन कमेटी बना रखी हैं जिससे ये सुनिश्चित किया जा सके कि बिना उसके क्लेरेंस से कोई टेंडर अवार्ड ना हो। इस कमेटी के साथ ही गृह और विदेश मंत्रालय से भी मंजूरी लेना जरूरी होता हैं।

इससे पहले भी चीन की कम्पनियों पर समय समय पर देश के इंफ्रास्ट्रक्चर में गैरकानूनी तरीके के दखल देकर सुरक्षा से खिलवाड़ का आरोप लगते रहे है।लद्दाख में पॉवर ग्रिड मामले में भी चीनी कम्पनियों के नाम सामने आए थे।  2021 में  मेजर जनरल पीके मल्लिक की एक स्टडी में कहा गया था कि चीनी हैकरों के द्वारा पूरे भारत में बिजली की आपूर्ति को प्रभावित करने की कोशिश लगातार जारी है। मुंबई ग्रिड फेल के मामले में भी इन्हीं कम्पनियो के नाम सामने आया था।

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