मौजूदा कोविड-19 वैश्विक-महामारी ने आपके परिवार के लिए हेल्थ इंश्योरेंस प्रोटेक्शन लेने की जरूरत को बढ़ा दिया है। तेजी से बढ़ते हॉस्पिटलाइजेशन के खर्च के कारण किसी भी तरह की गंभीर मेडिकल इमरजेंसी आपके फाइनेंस को आसानी से बर्बाद कर सकती है जिससे हम अपने और अपने डिपेंडेंट फैमिली मेम्बर्स के लिए पर्याप्त मेडिकल इंश्योरेंस कवर लेकर बच सकते हैं। लेकिन, कई लोग नहीं जानते कि कितने कवरेज को, ख़ास तौर पर लॉन्ग-टर्म में, “पर्याप्त" माना जा सकता है। आज जो "पर्याप्त" लग रहा है वह कुछ साल बाद अपर्याप्त हो सकता है और आपका मौजूदा इंश्योरेंस अमाउंट, भविष्य में आपके परिवार के सभी इंश्योर्ड लोगों की हॉस्पिटलाइजेशन सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं भी हो सकता है। एक सुपर टॉप-अप हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी, भावी मेडिकल जरूरतों को पूरा करने और मेडिकल महंगाई को मात देने का लागत-प्रभावी तरीका है। आइए इससे हमें हो सकने वाले फायदों को समझने की कोशिश करते हैं।
हॉस्पिटलाइजेशन बिल और मेडिकल खर्च कवर करने जैसे कई मामलों में यह एक रेगुलर हेल्थ प्रोडक्ट की तरह होता है लेकिन इसके कवरेज की शुरुआत अलग ढंग से होती है। सुपर टॉप-अप कवरेज तब शुरू होता है जब आपका क्यूमुलेटिव मेडिकल खर्च, पॉलिसी में दर्ज डिडक्टिबल लिमिट को पार कर जाता है। इसका मतलब है कि अपनी रेगुलर हेल्थ पॉलिसी के माध्यम से या अपनी जेब से एक ख़ास लिमिट (यानी, पूर्वनिर्धारित डिडक्टिबल लिमिट) तक मेडिकल/हॉस्पिटलाइजेशन बिल का पेमेंट करने के बाद सुपर टॉप-अप पॉलिसी, एक्टिवेट होती है और पॉलिसी कवरेज लिमिट तक एक्स्ट्रा अमाउंट को कवर करती है।
उदाहरण के लिए, मान लीजिए, आपने 5 लाख रु. के डिडक्टिबल के साथ 10 लाख रु. वाली एक सुपर टॉप-अप हेल्थ पॉलिसी ली है। आपने 5 लाख रु. की एक रेगुलर हेल्थ पॉलिसी भी ले रखी है। मान लीजिए, पॉलिसी इयर के दौरान आप तीन बार हॉस्पिटलाइज्ड हुए हैं और पहली बार 4 लाख रु., दूसरी बार 3 लाख रु. और तीसरी बार 4 लाख रु. का बिल बना था। आपकी रेगुलर हेल्थ पॉलिसी (5 लाख रु. वाली), आपके पहले हॉस्पिटलाइजेशन को कवर करेगी लेकिन वह दूसरे हॉस्पिटलाइजेशन को पूरी तरह कवर नहीं करेगी क्योंकि आप पहले हॉस्पिटलाइजेशन के लिए पहले ही 4 लाख रु. क्लेम कर चुके हैं। इस बार, आपकी रेगुलर पॉलिसी सिर्फ 1 लाख रु. कवर करेगी और बाकी का 2 लाख रु. आपकी सुपर टॉप-अप पॉलिसी कवर करेगी। 4 लाख रु. वाला तीसरा हॉस्पिटलाइजेशन बिल, सिर्फ सुपर टॉप-अप पॉलिसी कवर करेगी क्योंकि आप रेगुलर पॉलिसी का पूरा कवरेज ले चुके हैं।
डिडक्टिबल क्लॉज के कारण सुपर टॉप-अप पॉलिसी का प्रीमियम काफी कम होता है और दिए गए प्रीमियम पर इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80D के तहत टैक्स बेनिफिट भी मिलता है। इसमें ख़ास बीमारियों के कवरेज के लिए पहले से मौजूद बीमारियों और सीमाओं से जुड़े नियम और वेटिंग पीरियड, रेगुलर हेल्थ पॉलिसी के समान होते हैं। अधिकांश हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां, अपनी सुपर टॉप-अप पॉलिसियों पर कैशलेस क्लेम बेनिफिट देती हैं। इसके अलावा, इन पॉलिसियों में आपकी पॉलिसी और इंश्योरेंस कंपनी के आधार पर अलग-अलग डिडक्टिबल लिमिट ऑप्शंस भी होते हैं और ये इंडिविजुअल के साथ-साथ फ्लोटर वेरिएन्ट्स में भी मिलते हैं।
सुपर टॉप-अप और टॉप-अप दोनों प्लान्स, कम लागत पर एक्स्ट्रा कवरेज देकर एक पूर्वनिर्धारित डिडक्टिबल लिमिट से अधिक क्लेम को सेटल करते हैं। लेकिन, उनके डिडक्टिबल लिमिट के अधिक क्लेम को सेटल करने के तरीके अलग होते हैं। टॉप-अप प्लान्स, सिंगल-केस बेसिस पर क्लेम को सेटल करते हैं लेकिन सुपर टॉप-अप प्लान्स, क्यूमुलेटिव बेसिस पर ऐसा करते हैं। आइए इसे एक और उदाहरण की मदद से समझने की कोशिश करते हैं।
मान लीजिए, आपने 5 लाख रु. का एक रेगुलर हेल्थ इंश्योरेंस प्लान (जो डिडक्टिबल लिमिट भी है) और 10 लाख रु. का एक टॉप-अप या सुपर टॉप-अप प्लान ले रखा है। पॉलिसी इयर के दौरान एक बार हॉस्पिटलाइज्ड होने और 8 लाख रु. (जो कि आपके 5 लाख रु. के रेगुलर मेडिकल इंश्योरेंस कवरेज से 3 लाख रु. अधिक है) का बिल बनने पर, आपका टॉप-अप प्लान बाकी का 3 लाख रु. कवर करेगा। लेकिन, पॉलिसी इयर के दौरान दो बार हॉस्पिटलाइज्ड होने और हर बार 4 लाख रु. का बिल बनने पर, पहले क्लेम का सेटलमेंट आपके 5 लाख रु. वाले रेगुलर हेल्थ इंश्योरेंस प्लान से हो सकता है लेकिन आपका टॉप-अप प्लान दूसरे क्लेम का सेटलमेंट नहीं कर पाएगा क्योंकि बिल, डिडक्टिबल लिमिट से कम है। यदि आपके पास एक सुपर टॉप-अप प्लान है तो वह दूसरे बिल का बाकी का 3 लाख रु. कवर करेगा क्योंकि आपका क्यूमुलेटिव हॉस्पिटलाइजेशन खर्च (8 लाख रु.), डिडक्टिबल लिमिट (5 लाख रु.) से अधिक लेकिन सुपर टॉप-अप इंश्योरेंस अमाउंट (10 लाख रु.) से कम है।
सुपर टॉप-अप पॉलिसी लेते समय, सही डिडक्टिबल लिमिट चुनना जरूरी है जो आपके रेगुलर हेल्थ इंश्योरेंस कवर के लिमिट के बराबर होना चाहिए। इसके अलावा, आपको सुपर टॉप-अप पॉलिसी से जुड़े अस्पतालों की लिस्ट भी देखनी चाहिए जो आपकी रेगुलर पॉलिसी से अलग हो सकती है यदि आपने उसे किसी दूसरी इंश्योरेंस कंपनी से ख़रीदा है।
यह भी जान लें कि कुछ बेनिफिट्स ऐसे भी होते हैं जो एक रेगुलर हेल्थ पॉलिसी, कवरेज अमाउंट बहुत कम होने पर, नहीं भी दे सकती हैं। उदाहरण के लिए, कम-कवरेज वाली रेगुलर पॉलिसी में एयर एम्बुलेंस सुविधा और अनकैप्ड रूम रेंट कवरेज नहीं भी मिल सकता है। इसलिए, आपका बेसिक हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी साइज़, हॉस्पिटलाइजेशन के समय आपको जरूरत पड़ सकने वाली सुविधाओं को कवर करने के लिए पर्याप्त होना चाहिए। अपना बेसिक हेल्थ पॉलिसी साइज़ मालूम होने पर, आप अपनी बेसिक पॉलिसी लिमिट के अनुसार डिडक्टिबल सेट करके पर्याप्त आकार का सुपर टॉप-अप प्लान ले सकते हैं। एक सुपर टॉप-अप प्लान लेते समय रिलोड/रेस्टोरेशन फैसिलिटी, नो-क्लेम बेनिफिट, मैक्सिमम प्री- और पोस्ट-हॉस्पिटलाइजेशन कवरेज, ऑर्गन डोनर का कवरेज और जिंदगी भर पॉलिसी को रिन्यू करने का ऑप्शन, इत्यादि पर भी ध्यान देना चाहिए। कोई भी पॉलिसी लेते समय, सिर्फ प्रीमियम कॉस्ट पर ध्यान देने के बजाय अपने सभी ऑप्शंस की अच्छी तरह तुलना भी करनी चाहिए।
इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।) ( ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)
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