अधिक जोखिम उठाने वाले कई निवेशकों को सीधे इक्विटीज में निवेश करना अच्छा लगता है। मौजूदा समय में भारतीय स्टॉक मार्केट अपने सबसे ऊंचे स्तर पर है, लेकिन निवेशकों को इस बात का अंदाजा नहीं है कि क्या उन्हें निवेश को जारी रखना चाहिए अथवा उन्हें शेयरों में अपने मौजूदा निवेश से निकल जाना चाहिए। उन्हें डर है कि यदि इस स्तर से अगर मार्केट नीचे गिरती है, तो उन्हें शायद नुकसान हो सकता है। और साथ ही, यदि आने वाले दिनों में मार्केट इसी तरह से नई ऊंचाईयां छूती रहती है, तो वे संभावित लाभ को भी नहीं गंवाना चाहेंगे। इसलिए, अब उन्हें क्या करना चाहिए? जब शेयर मार्केट अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर हो तो उनकी निवेश रणनीति क्या होनी चाहिए? मैंने इस संबंध में कुछ उपयोगी बातों पर चर्चा की है।
आपको स्टॉक्स में किए गए अपने निवेश पर दो तरह से रिटर्न मिल सकता है: पहला पूंजीगत लाभ (कैपिटल गेन) के ज़रिए, या डिविडेंट आय जिसके माध्यम से कंपनियां अपने लाभ को शेयरधारकों के साथ साझा करती हैं। यदि आप जिस कंपनी में निवेश करते हैं, वह कैश-रिच कंपनी है, वह नियमित रूप से आय अर्जित करती है, और जिसका कर्जा कम है, तो इस बात की संभावना है कि वह डिविडेंट का भुगतान जारी रखेगी। आमतौर पर, ऐसी कंपनियां जो नियमित रूप से उच्च डिविडेंट का भुगतान करती हैं, वे बाजार के उतार-चढ़ाव से कम प्रभावित होती हैं। इसलिए, हालांकि स्टॉक-मार्केट इस समय अपने सबसे ऊंचे स्तर पर ट्रेड कर रही है, आप ऐसे स्टॉक्स को लेने पर विचार कर सकते हैं जो फंडामेंटली स्ट्रॉंग रहे हैं, उनका डिविडेंट का भुगतान करने का इतिहास बहुत अच्छा रहा है, जिनकी भविष्य में भी लगातार डिविडेंट का भुगतान करने की संभावना है। लेकिन, डिविडेंट का भुगतान करने वाली कंपनियों में निवेश पर विचार करने से पहले, यह महत्वपूर्ण है कि आप टैक्स से जुड़ी बातों को भी समझ लें। निवेशक को डिविडेंट आय पर टैक्स देना होता है। इसलिए, यदि आपको डिविडेंट आय मिलती है, तो आपको अपने लागू कर स्लैब रेट के अनुसार उस आमदनी पर टैक्स देना होता है।
आप अधिक पैसा कमा सकें, ऐसा करने हेतु कम समय के लिए स्टॉक में निवेश करना और फिर बाहर निकल जाना, आमतौर पर स्पेकुलेशन कहलाता है। निवेश और स्पेकुलेशन में मुख्य अंतर यह है कि निवेश में संभावित रिटर्न को कमाने के लिए पूर्व विश्लेषण और जोखिम प्रबंधन पर फोकस किया जाता है, जबकि स्पेकुलेशन में रिसर्च पर भरोसा नहीं किया जाता है- इसकी बजाए इसमें आय कमाने के लिए ‘संभावना’ पर भरोसा किया जाता है। जब मार्केट अपने चरम पर हो, तो आपको संबंधित जोखिमों को कम करने के लिए सभी रणनीतियों के साथ तैयार रहना पड़ता है। गहन रिसर्च करने के बाद निवेश करने से आपको गैर-ज़रूरी जोखिमों से बचने में सहायता मिल सकती है और हानि की संभावना भी कम हो सकती है।
जैसाकि नाम से ही पता लगता है, ‘स्टॉप लॉस’ निवेशक द्वारा पहले से ही तय की गई सीमा है, जिस सीमा तक पहुंचते ही निवेश पोज़िशन से बाहर निकल जाते हैं ताकि और अधिक हानि को रोका जा सके। उदाहरण के लिए, यदि आपने 1000/- रूपये प्रति शेयर के हिसाब से “XYZ” के 100 शेयरों में निवेश किया है। कुछ दिनों के बाद “XYZ” के शेयरों की कीमत में गिरावट होनी शुरू हो जाती है। जब यह 900/- रूपये पर पहुंच जाती है, तो आप 850/- रूपये स्टॉप-लॉस तय कर देते हैं। इसका मतलब है कि आप अपनी निवेश पोज़िशन से निकलने के लिए इसकी कीमत के 850/- रूपये तक गिरने का इंतजार करेंगे। अगले दिन, स्टॉक का भाव 840/- रुपये के निचले स्तर पर खुलता है, जिसके कारण स्टॉप-लॉस ट्रिगर हो जाता है तथा आप “XYZ” के शेयरों को 840/- के भाव से बेच देते हैं और आप 16,000/- रूपये (1 लाख रूपये – 84,000/- रूपये) की हानि वहन करते हैं। लेकिन बाद में “XYZ” के शेयरों की कीमत गिर कर 600/- रूपये हो जाती है। क्योंकि आपके पास अब “XYZ” के शेयर नहीं हैं, तो आप स्टॉप-लॉस के कारण अधिक हानि से बच गए।
इसलिए, जब आप शेयरों में निवेश करते हैं, तो आपको स्टॉप-लॉस का कड़ाई से पालन करना चाहिए। इससे आपको अपने नुकसान को कम से कम रखने में मदद मिलेगी। जब आपके स्टॉक की कीमत बढ़ती है, तो आपको स्टॉप-लॉस को ऊपर की ओर या स्टॉक की कीमत के पूर्वनिर्धारित प्रतिशत के अनुसार एक ही समय पर शिफ्ट करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आप लाभ को लॉक कर सकते हैं। स्टॉक की कीमत के अनुसार ही धीरे धीरे स्टॉप-लॉस को शिफ्ट करने की प्रक्रिया को ट्रेलिंग स्टॉप-लॉस कहा जाता है।
फंडामेंटली स्ट्रॉंग शेयरों को चुनने से स्टॉक मार्केट में गिरावट होने के बाद तेजी से रिकवरी के लाभ के साथ अनेक दूसरे भी लाभ होते हैं। इसलिए, अपने पोर्टफोलियों के लिए स्टॉक को चुनते समय, सॉलिड ट्रैक रिकॉर्ड, खातों में निम्न या शून्य कर्ज, बेहतर कैश-फ्लो स्तर, रेवेन्यू में उच्च वृद्धि, आकर्षक प्रोफिटेबिलिटी और एक आशाजनक विकास योजना वाले शेयरों सहित फंडामेंटली स्ट्रॉंग शेयरों पर फोकस करना चाहिए। आपका लक्ष्य, अलग-अलग सेक्टर में अपने निवेश को डायवर्सिफाई करने के साथ-साथ, दूसरी कंपनियों के शेयरों में भी निवेश करने का होना चाहिए ताकि आप जोखिम को कम से कम कर सकें। यदि कोई खास सेक्टर या स्टॉक अंडर-परफार्म करता है, तो किसी एक सेक्टर में ज़रूरत से ज्यादा निवेश करने और कुछ कंपनियों में ही निवेश करने से आपका जोखिम बढ़ सकता है।
स्टॉक मार्केट में निवेश करने से पहले आपको अपनी जोखिम को उठाने की क्षमता का अंदाजा ज़रूर लगा लेना चाहिए। आपको हमेशा उतना ही निवेश करना चाहिए जितनी आप हानि उठाने की क्षमता रखते हैं। स्टॉक मार्केट में बहुत ही उतार-चढ़ाव होते रहते हैं और आपको केवल तभी निवेश करना चाहिए जब हर रोज़ होने वाले उतार-चढ़ाव से आपके फाइनेंस प्रभावित नहीं होते हैं। यदि आप में स्टॉक मार्केट विश्लेषण करने की योग्यता है, तो स्टॉक मार्केट में डायरेक्ट निवेश से लंबे समय में बहुत अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है बशर्ते कि आप जोखिमों को भी समझते हैं। ज़रूरत से ज्यादा निवेश से बचना बहुत ही मायने रखता है यानि अपनी जोखिम उठाने की क्षमता और वित्तीय क्षमता से अधिक निवेश करना। यदि मार्केट में गिरावट आ जाती है, तो शेयरों में निवेश से बहुत अधिक हानि उठानी पड़ सकती है। बिगनर्स के लिए, सिस्टेमिक निवेश योजना (एसआईपी), टॉप-रेटेड म्यूचुअल फंड्स में निवेश लंबे समय में अच्छा रिटर्न पाने के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है।
(इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।) ( ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)
Times Now Navbharat पर पढ़ें Business News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।