पिछली कुछ तिमाहियों में शेयर बाजार में काफी अस्थिरता दिखाई दी है। लेकिन निफ्टी में बहुत ज्यादा गिरावट देखने को नहीं मिली है, इसका कारण यह है कि अधिक बाजार पूंजी वाले कुछ शेयर अभी भी अपने ज्यादा वैल्यूएशन को बनाए रखने में कामयाब हैं।
इस बात पर भी बहस चल रही है कि यह मंदी, स्वभाव से चक्रीय है या संरचनात्मक। खैर जो भी हो, सच बात तो यही है कि इससे इन्वेस्टर्स को बड़ी तकलीफ हो रही है। हम मोटर वाहनों की बिक्री में पहले ही 30% की गिरावट देख चुके हैं, GDP की विकास दर घटकर 5% हो गई है और खपत में भी 15% या उससे अधिक की गिरावट आ गई है।
तो, इस सप्ताह के आर्थिक दृष्टिकोण और एक अस्थिर शेयर बाजार को देखते हुए, आपको अपने म्यूच्यूअल फंड्स को कैसे मैनेज करना चाहिए? इसके लिए हमने यहाँ कुछ टिप्स दिए हैं जो आपके लिए काफी मददगार साबित हो सकते हैं।
आपको अपने इन्वेस्टमेंट पर अच्छा रिटर्न तभी मिलता है जब बाजार नई ऊंचाई पर पहुँचता है। लेकिन, जब बाजार में गिरावट आती है, जैसा वर्तमान समय में हो रहा है, तो यह अपने फंड पोर्टफोलियो का मूल्यांकन करने और जरूरत पड़ने पर अपने इन्वेस्टमेंट में फेरबदल करने के लिए एक अच्छा समय होता है।
अपने पोर्टफोलियो में म्यूच्यूअल फंड्स के प्रकार पर नजर डालें और पिछले 3 साल में उनके रिटर्न का विश्लेषण करें। यदि आपके मौजूदा म्यूच्यूअल फंड्स, अन्य कंपनियों के अपने जैसे स्कीम्स से ज्यादा नुकसान दे रहे हैं तो यह शायद अपनी इक्विटी म्यूच्यूअल फंड होल्डिंग पर एक गंभीर नजर डालने और अपनी होल्डिंग को एडजस्ट करने का समय है।
जब बाजार में मंदी जाती है तब आपके इक्विटी म्यूच्यूअल फंड्स के रिटर्न का एक हिस्सा नष्ट भी हो सकता है। लेकिन, आम तौर पर डेब्ट फंड्स को रिटर्न के मामले में इस तरह के भयानक उतार-चढ़ाव का सामना करना नहीं पड़ता है। यहाँ तक कि जब बाजार में मंदी आती है तब भी कुछ डेब्ट फंड्स जैसे लिक्विडी फंड्स लगभग 6% से 7% प्रति वर्ष की दर से रिटर्न दे सकते हैं जबकि लम्बी अवधि वाले डेब्ट फंड्स उस अवधि में भी डबल-डिजिट में रिटर्न दे सकते हैं जिस अवधि में इंटरेस्ट रेट्स कम हो जाते हैं।
इसके अलावा, गोल्ड फंड्स का वैल्यू बढ़ जाता है क्योंकि जब बाजार अस्थिर हो जाता है तब इन्वेस्टर्स, सुरक्षित एसेट्स की तलाश में लग जाते हैं। इसलिए, मंदी से निपटने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि आपको अपने इक्विटी इन्वेस्टमेंट को घटाकर और अपने डेब्ट इन्वेस्टमेंट को बढ़ाकर अपने पोर्टफोलियो को रिबैलेंस करने की कोशिश करनी चाहिए। कई मामलों में शेयर के दाम को 30% से ज्यादा तक की मात मिलती है। आपके इक्विटी म्यूच्यूअल फंड्स के रिटर्न पर इसका सीधा असर पड़ता है।
डेब्ट फंड इन्वेस्टमेंट्स के मामले में, रिटर्न अधिक पूर्व-अनुमान योग्य होता है। कंपनी के लाभ पर डेब्ट होल्डर्स का पहला अधिकार होता है। इसलिए, लाभ कम होने पर भी, कंपनियां आम तौर पर डेब्ट होल्डर्स को पेमेंट करती ही हैं। इसके अलावा, गवर्नमेंट बॉन्ड्स, फिक्स्ड डिपोजिट्स और हाई-ग्रेड कॉर्पोरेट बॉन्ड्स आम तौर पर पेमेंट करने से नहीं चूकते हैं।
अपनी सेविंग्स का एक हिस्सा, कैश या लिक्विड फॉर्म (जैसे सेविंग अकाउंट्स) में रखना चाहिए जिसे कोई इमरजेंसी आने पर जरूरत पड़ने पर आसानी से निकालकर इस्तेमाल किया जा सके। इस बात को हमेशा याद रखना चाहिए कि कभी भी "पूरा पैसा" इन्वेस्ट नहीं करना चाहिए।
गिरते बाजार में अपना सारा पैसा इन्वेस्ट कर देने से सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि आपको कोई इमरजेंसी आने पर सबसे अनुचित समय में भी मजबूरी में उन्हें निकालना ही पड़ेगा। इससे आपको भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।
डायनामिक फंड्स वे म्यूच्यूअल फंड्स हैं जो आपके पैसे को अलग-अलग अनुपात में अलग-अलग एसेट्स (डेब्ट और इक्विटी) में इन्वेस्ट करते हैं। बाजार के वैल्यूएशन के आधार पर पोर्टफोलियो एसेट्स का हिस्सा तय होता है।
इसलिए, जब बाजार ऊंचाई पर होता है और बाजार के बढ़ने की ज्यादा गुंजाइश नहीं होती है तब डायनामिक फंड्स अपने आप इक्विटी फंड्स होल्डिंग को घटाकर डेब्ट फंड्स होल्डिंग को बढ़ा देते हैं। इसी तरह, जब बाजार, इक्विटी में इन्वेस्ट करने के लिए आकर्षक हो जाता है तब डायनामिक फंड्स, इक्विटी फंड्स होल्डिंग को बढ़ाकर उसी हिसाब से डेब्ट फंड्स होल्डिंग को घटा देते हैं।
सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान्स (SIP), अनुशासन के साथ इन्वेस्ट करने का एक बहुत बढ़िया तरीका है। ये रूपया लागत औसत सिद्धांत पर भी काम करते हैं जो शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव के प्रभाव को बैलेंस करता है। इसलिए, जब तक आपको एक बेहतर ऑप्शन नहीं मिल जाता तब तक उन फंड्स में अपने SIP को चालू रखने में ही भलाई है जो आपके पोर्टफोलियो में लम्बे समय से मौजूद हैं।
जब बाजार में गिरावट आती है तब उसी SIP अमाउंट में म्यूच्यूअल फंड्स की अधिक यूनिटें खरीदी जा सकती हैं। इस तरह, गिरावट के दौर में आपके यूनिटों की संख्या तेजी से बढ़ती चली जाएगी। जब बाजार सुधरने लगेगा और ऊपर जाने लगेगा तब आपके इन्वेस्टमेंट का वैल्यू भी बढ़ने लगेगा।
आर्थिक मंदी एक हकीकत है, और वर्तमान समय में कई देशों को इस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव का दौर चलता रहता है। इसलिए, बिज़नस भी एक सायकल या चक्र में चलता है। जब बाजार बहुत ऊंचाई पर होता है उस समय उनका समय बहुत अच्छा चल रहा होता है और जब बाजार बहुत नीचे गिर जाता है तब उनका समय भी बुरा चलने लगता है। एक इन्वेस्टर इस बिज़नस सायकल को प्रभावित नहीं कर सकता है। लेकिन, वे अपने इन्वेस्टमेंट पर आर्थिक मंदी के प्रभाव को कम करने के लिए कुछ कदम उठा सकते हैं, जैसा कि हमने ऊपर बताया है।
इसके लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं। (डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं।)
Times Now Navbharat पर पढ़ें Business News in Hindi, साथ ही ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें ।