जिस तरह से हम सब लोग रोजमर्रा की जिंदगी में अपने खर्चों और आमदनी के बीच संतुलन बनाने के साथ साथ इस बात की कोशिश करते हैं कि हमारा बजय सही रहे। ठीक वैसे ही भारत सरकार भी अपने खर्चों और आमदनी के बारे में गुणा गणित करती रहती है। जैसे हम सब आमदनी के तरीकों पर विचार करते हैं ठीक वैसे ही भारत सरकार भी आमदनी बढ़ाने के तरीकों पर विचार करती है। भारत सरकार अपने खजाने को कई तरह के टैक्स के जरिए भरती हैं। यहां हम बताएंगे कि भारत सरकार के खजाने में किसकी हिस्सेदारी करीब करीब कितनी होती है।
पर्सनल इनकम टैक्स में इजाफा
भारत सरकार को 2016-17 में सबसे ज्यादा राजस्व 51.3 फीसद पर्सनल इंकम टैक्स और कार्पोरेट टैक्स से मिला जबकि शेष अप्रत्यक्ष कर से मिला। लेकिन जीएसटी के बाद सरकार के राजस्व हासिल करने के तरीके में बदलाव हुआ। अगर बात पर्सनल इंकम टैक्स की करें तो 1998 से 2020-21 के दौरान सरकार के खजाने में इसकी भागीदारी में बदलाव होता रहा है। 2015-16 से लेकर 2020-21 तक पर्सनल इंकम टैक्स में इजाफा हुआ।
जीएसटी- 28.5 %
कारपोरेट टैक्स- 28.1
व्यक्तिगत इंकम टैक्स- 26.3
एक्साइज- 11
कस्ट्मस- 5.7
कार्पोरेट टैक्स में आई कमी
अगर कार्पोरेट टैक्स (कंपनियों की मुनाफे से इस टैक्स की वसूली होती है) की बात करें तो 1998 से 2020-21 के दौरान काफी उतार चढ़ाव हुआ बै। कार्पोरेट टैक्स में बढ़ोतरी का सिलसिला एनडीए सरकार के तीसरे कार्यकाल से हुआ है और 2009-10 में यह अपने पीक पर पहुंचा। लेकिन अगर मौजूदा सरकार की बात करें तो इस दौरान कार्पोरेट टैक्स में कमी आई है।
सर्विस टैक्स का ट्रेंड
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि सर्विस टैक्स क्या होता है। दरअसल जब हम किसी तरह की सर्विस लेते हैं जैसे रेस्टोरेंट में खानपानस मोबाइल फोन बिल्स या अन्य सेवाएं तो हमें टैक्स देना पड़ता है और टैक्स के रूप में मिलने वाली रकम सरकारी खजाने में जमा होता है। 1998-99 से लेकर 2004-05 तक इसका ग्राफ फ्लैट ही रहा। लेकिन अलग अलग सरकारों में सरकारी खजाने में इसकी भागीदारी में बदलाव होता रहा है।
एक्साइज का ट्रेंड
विनिर्माण के दौर लगने वाले टैक्स को एक्साइज टैक्स कहा जाता है। अगर बीजेपी और कांग्रेस के शासन को देखें तो कांग्रेस शासन के दौरान इसमें ज्यादा गिरावद देखी गई। मोदी सरकार के दौरान यह अपने सर्वोच्च बिंदु पर 2016-17 में पहुंचा। लेकिन अब इसमें गिरावट दर्ज की गई है।
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