एक असरदार टैक्स सेविंग स्ट्रेटेजी अपनाने से आपको सिर्फ अपने टैक्स के बोझ को कम करने में ही नहीं बल्कि अपने इन्वेस्टमेंट रिटर्न को अनुकूल बनाने, लिक्विडिटी को मैनेज करने, और जोखिम को कम करने में भी मदद मिलती है। मार्केट में कई तरह के टैक्स सेविंग प्रोडक्ट्स मिलते हैं लेकिन हर तरह का प्रोडक्ट हर टैक्सपेयर के लिए सही नहीं भी हो सकता है।
टैक्स सेविंग, टैक्सपेयर के वित्तीय लक्ष्यों के साथ बहुत करीब से जुड़ा होना चाहिए; इसलिए व्यक्ति को अपनी उम्र, जोखिम उठाने की चाहत, और अपने लक्ष्यों के आधार पर, सही टैक्स सेविंग प्रोडक्ट का चुनाव करना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक टैक्स सेविंग प्रोडक्ट जो एक नौजवान टैक्सपेयर के लिए सूटेबल है वह एक रिटायर्ड टैक्सपेयर के लिए सूटेबल नहीं भी हो सकता है, और इसके विपरीत भी हो सकता है।
इसलिए, सही टैक्स सेविंग प्रोडक्ट्स का चुनाव करते समय, टैक्सपेयर अक्सर इस उलझन में पड़ जाते हैं कि उसे कौन-सा प्रोडक्ट चुनना चाहिए और क्यों। जब दो टैक्स सेविंग प्रोडक्ट्स के बेनिफिट्स एक जैसे होते हैं या जब वे एक ही एसेट केटेगरी के होते हैं तो उलझन और बढ़ सकती है। चूंकि वित्तीय वर्ष 19-20 अब खत्म होने वाला है इसलिए आइए कुछ टैक्स सेविंग से जुड़े उलझनों पर गौर करते हैं जिनसे बचने की कोशिश करनी चाहिए।
कई लोग अक्सर यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान्स (ULIP) और इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम्स (ELSS) को लेकर उलझन में पड़ जाते हैं क्योंकि इन दोनों प्रोडक्ट्स पर इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80C के तहत 1.5 लाख रुपये तक का टैक्स बेनिफिट मिलता है। लेकिन इनकी समानता यहीं खत्म हो जाती है। यूलिप एक इंश्योरेंस-सह-इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट है जबकि ईएलएसएस एक शुद्ध इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट है।
यूलिप के चार्ज आम तौर पर ईएलएसएस से अधिक होते हैं। यूलिप और ईएलएसएस का मिनिमम लॉक-इन पीरियड क्रमशः 5 साल और 3 साल होता है। यूलिप के लिए एक लॉन्ग टर्म कमिटमेंट करना पड़ता है, यानी, इसमें इन्वेस्ट करना शुरू करने के बाद, आपको इसमें हर साल निवेश करना पड़ता है; दूसरी तरफ, आप ईएलएसएस में अपनी मनचाही अवधि के लिए एक मंथली सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) शुरू कर सकते हैं या एक बार में एक लम्प सम अमाउंट निवेश कर सकते हैं।
यूलिप में आपको इक्विटी और डेब्ट दोनों तरह के एसेट्स में निवेश करने का मौका मिलता है जबकि ईएलएसएस में आपको सिर्फ इक्विटी क्लास में ही इन्वेस्टमेंट करने की इजाजत मिलती है। इसलिए, यदि आप एक इंश्योरेंस प्लस इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट की तलाश कर रहे हैं और आप एक लॉन्ग टर्म कमिटमेंट के लिए तैयार हैं, तो आप यूलिप का चुनाव कर सकते हैं, लेकिन यदि आप अधिक रिस्क और रिटर्न की उम्मीद के साथ एक शुद्ध इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट की तलाश कर रहे हैं तो ईएलएसएस आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है।
नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) और पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF) दोनों लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स हैं लेकिन ये अपने इन्वेस्टरों को अलग-अलग प्रकार के बेनिफिट्स देते हैं। एनपीएस एक ऐसा प्रोडक्ट है जो रिटायरमेंट प्लानिंग पर फोकस करता है। एनपीएस फंड तब मैच्योर होता है जब इन्वेस्टर, रिटायर होने की उम्र तक पहुंच जाता है, और रिटायरमेंट के समय, मिलने वाले फंड का 60% अमाउंट टैक्स फ्री होता है जबकि बाकी का 40% अमाउंट एक एन्युटी प्लान खरीदने के लिए निवेश करना पड़ता है।
बाद में एन्युटी इनकम पर उस इनकम के मिलने वाले साल में लाभार्थी पर लागू होने वाले टैक्स स्लैब रेट के हिसाब से टैक्स लिया जाता है। इस तरह देखा जा सकता है कि एनपीएस से होने वाला इनकम पूरी तरह टैक्स फ्री नहीं होता है। दूसरी तरफ, पीपीएफ आपको ईईई बेनिफिट देता है, कहने का मतलब है कि सेक्शन 80C के तहत 1.5 लाख रुपये तक का इन्वेस्टमेंट, मैच्योरिटी अमाउंट और ऐसे इन्वेस्टमेंट पर मिलने वाला इंटरेस्ट तीनों टैक्स फ्री होता है। पीपीएफ इन्वेस्टमेंट पर मिलने वाले इंटरेस्ट की दर हर तीन महीने में बदलती रहती है और इसमें 15 साल का लॉक-इन पीरियड भी होता है।
दूसरी तरफ, एनपीएस आपको सेक्शन 80CCD के तहत 50,000 रुपये तक का एक्स्ट्रा टैक्स बेनिफिट देता है, इसलिए यदि आप 80C लिमिट के अलावा एक्स्ट्रा टैक्स बेनिफिट का लाभ उठाना चाहते हैं तो आप इसमें निवेश कर सकते हैं। लेकिन, यदि आप एक पेंशन प्रोडक्ट की तलाश में हैं, एक सुरक्षित रिटर्न पाना चाहते हैं, और एक लम्बे लॉक-इन पीरियड तक इंतजार करने के लिए तैयार हैं तो पीपीएफ एक बहुत आकर्षक टैक्स सेविंग इन्वेस्टमेंट है जिसे आप छोड़ना नहीं चाहेंगे।
यदि आप एक ऐसे टैक्स सेविंग प्रोडक्ट की तलाश कर रहे हैं जिसमें कम से कम लॉक-इन पीरियड के साथ सुरक्षित रिटर्न मिलता हो तो आप नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (NSC) और 5-इयर टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपोजिट के तहत मिलने वाले लाभों का पता लगा सकते हैं। एनएससी और 5-इयर टैक्स सेविंग एफडी दोनों में 5 साल का लॉक-इन होता है। आप एनएससी या टैक्स सेविंग एफडी में निवेश करके सेक्शन 80C के तहत टैक्स बेनिफिट के लिए क्लेम कर सकते हैं।
एनएससी पर मिलने वाले इंटरेस्ट का रेट सरकार द्वारा हर तीन महीने में बदल दिया जाता है, जबकि टैक्स सेविंग एफडी का इंटरेस्ट रेट तरह-तरह के आर्थिक कारकों को ध्यान में रखते हुए बैंकों द्वारा तय किया जाता है। वर्तमान में, एनएससी के तहत दिए जाने वाले इंटरेस्ट का रेट 7.9% है जबकि टैक्स सेविंग एफडी का इंटरेस्ट रेट 6.7% से 7% प्रति वर्ष के आसपास है। एनएससी में किए जाने वाले इन्वेस्टमेंट पर टीडीएस नहीं कटता है जबकि बैंक एफडी पर टीडीएस कट सकता है।
एनएससी में किए गए इन्वेस्टमेंट को लोन के लिए गिरवी रखा जा सकता है, लेकिन टैक्स सेविंग एफडी का इस्तेमाल किसी लोन के लिए जमानत के तौर पर करने की इजाजत नहीं है। इसलिए, आखिरी समय में टैक्स सेविंग उपायों को अंतिम रूप देते समय, अपने वित्तीय सलाहकार से बात करने में संकोच न करें यदि आप यह तय करने में असमर्थ हैं कि आपके लिए कौन-सा प्रोडक्ट बेहतर है। एक टैक्स सेविंग प्रोडक्ट में इन्वेस्ट करने से पहले पूरी जानकारी हासिल करना और पूरी सावधानी बरतना जरूरी है, क्योंकि बाद में आपको अपने पैसे वापस पाने के लिए लॉक-इन पीरियड के पूरा होने तक इंतजार करना पड़ सकता है।
अंत में, वित्तीय वर्ष 20-21 से टैक्सपेयरों को मौजूदा टैक्स सिस्टम को चालू रखने या नए डिस्काउंटेड टैक्स स्लैब रेट्स को चुनने का विकल्प मिलेगा। डिस्काउंटेड टैक्स स्लैब रेट्स का लाभ तभी मिल सकता है यदि आप अधिकांश मौजूदा टैक्स डिडक्शन बेनिफिट्स को छोड़ने के इच्छुक हैं। यह ऑप्शनल टैक्स सिस्टम, फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण द्वारा अपने बजट 2020 के भाषण में प्रस्तावित किया गया है।
एक टैक्सपेयर होने के नाते, आपको अगले साल से अपने टैक्स सेविंग उपायों का हिसाब लगाना चाहिए और उसी सिस्टम को चुनना चाहिए जिससे आपकी टैक्स देनदारी कम होती हो। इसके अलावा, यदि आप नए सिस्टम को चुनना चाहते हैं तो यह जरूर देख लें कि कहीं आप सिर्फ इसलिए अपने इन्वेस्टमेंट और जरूरी इंश्योरेंस खरीद को बंद तो नहीं कर रहे हैं क्योंकि अब उस पर आपको कोई टैक्स बेनिफिट मिलने वाला नहीं है। असल में, इस नए सिस्टम से आपको अपने वित्तीय लक्ष्यों और जिम्मेदारियों के अनुसार निवेश करने और इंश्योरेंस लेने की ज्यादा आजादी मिलनी चाहिए।
(इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।)
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