लाख सुधार के प्रयास और दावों के बावजूद भारतीय रेलवे में ट्रेनों की पंच्युअल्टी 100 फीसदी नहीं रही हैं। हालांकि हाल के दिनों में हालात में सुधार जरूर हुआ है। इसके पीछे लॉक डाउन के दौरान ट्रेनों का कम संचालन और पिछले कुछ सालों में रेलवे के इंफ्रास्ट्रक्चर और सिगलिंग सिस्टम में बदलाव रहा हैं। पर इसके बावजूद ये सवाल आये दिन उठता रहता हैं कि क्या रेलवे को ट्रेनों की हुई परेशानी और नुकसान की भरपाई नहीं करनी चाहिए। हाल ही में अलवर निवासी संजय शुक्ला के मामले में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा रेलवे पर की गई टिप्पणी इस बहस को और तेज कर देती हैं।
अलवर राजस्थान के रहने वाले संजय शुक्ला जिनकी फ्लाइट ट्रेन लेट होने की वजह से छूट गई। शुक्ला ने कंज्यूमर कोर्ट में रेलवे से मुआवजे के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मामला देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंचा। कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालत के फैसले में में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। जजों की पीठ ने कहा कि प्रतिस्पर्धा और जवाबदेही के हित में सार्वजनिक परिवहन को जीवित रहने के लिए सुधार करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में ये भी कहा कि अगर सार्वजनिक परिवहन को जीवित रखना है और निजी कर्ताओं के साथ प्रतिस्पर्धा करना है, तो उन्हें सिस्टम और उनकी कार्य संस्कृति में सुधार करना होगा। नागरिक/यात्री अधिकारियों/प्रशासन की दया पर निर्भर नहीं हो सकते। किसी को जिम्मेदारी स्वीकार करनी होगी।
शिकायत कर्ता संजय शुक्ला को उपभोक्ता अदालत ने फ्लाइट छूटने के हालात में टैक्सी खर्च के लिए 15,000 रुपये, बुकिंग खर्च के लिए 10,000 रुपये और मानसिक पीड़ा तथा मुकदमेबाजी खर्च के लिए 10,000 रुपये सहित कुल 35000 भुगतान करने का निर्देश दिया था। इस फैसले को रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर रेलवे ने कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं आई। रेलवे के रूल्स मैनुअल के मुताबिक ट्रेन लेट होने पर मुआवजा देने का कोई प्रावधान नहीं है। यात्री के पास टिकट रिफंड करने का विकल्प जरूर है अगर ट्रेन निर्धारित समय से 4 घंटे से ज्यादा देरी से आपके स्टेशन पर आती है। ऐसे में यात्री टिकट रद्द कर के पूरे पैसे रिफंड करवा सकता हैं। एक बार आपने ट्रैन बोर्ड कर लिया फिर अगर ट्रेन देरी से आपके फाइनल डेस्टिनेशन पर देरी से पहुंचती है तो आप किसी प्रकार के रिफंड या मुआवजा के हकदार नहीं हैं। ऐसे मामले जरूर आते हैं जहां यात्री कई बार उपभोक्ता अदालतों से लेकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं। जहां अदालत के आदेश के बाद रेलवे यात्रियों को मुआवजा देती हैं।
निजी ऑपरेटर के तौर पर ट्रेन चलाने वाली रेलवे की पीएसयू IRCTC ने जरूर मुआवजा का एलान किया था। यात्रियों को अपने तरफ आकर्षित करने के लिए दिल्ली - लखनऊ और अहमदाबाद - मुंबई के बीच चलाने वाली तेजस एक्सप्रेस में देरी होने पर मुआवजा देने का नियम शुरू किये थे। बीते 21 अगस्त 2021तेज बारिश की वजह से हुई 2 घंटे देरी की वजह से पहली बार 2135 यात्रियों को आइआरसीटीसी ने करीब 4.58 लाख रुपये मुआवजा दिया। इनमें एक घण्टे देरी होने पर 100 रुपये और 2 घंटे से ज्यादा देरी होने पर 250 रुपए मुआवजा देने का प्रावधान हैं।
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