नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वन धन योजना की शुरुआत छत्तीसगढ़ के बीजापुर से की थी। वहां पर 25 लाख रुपए की लागत से वन धन विकास केंद्र की शुरुआत की थी। इस योजना को 14 अप्रैल 2018 को लॉन्च किया गया था। जनजातीय लोगों की आय बढ़ाने के लिए इस स्कीम का एलान किया गया था। जंगलों से मिलने वाली वन धन संपदा का सालाना मूल्य 2 लाख करोड़ रुपए है।
इसके तहत हर साल 30 हजार वन धन सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाने की योजना है। वहीं हर 15 सेल्फ हेल्प ग्रुप के क्लस्टर पर एक वन धन विकास केंद्र बनाया जाएगा।
वन धन विकास केंद्र के जरिए इन लोगों के बनाए प्रोडक्ट की पैकेजिंग और मार्केटिंग की जाएगी। इसे मौजूदा रिटेल नेटवर्क के जरिए किया जाएगा।
वन धन विकास केंद्र पर जनजातीय लोगों को ट्रेंड किया जाएगा। उनको जंगल से इकट्ठे किए गए अपने प्रोडक्ट की वैल्यू बढ़ाने के लिए वर्किंग कैपिटल दी जाएगी। जिला कलेक्टर के मार्गदर्शन में लोग अपने प्रोडक्ट न सिर्फ अपने राज्य में बल्कि उससे बाहर भी मार्केट कर सकेंगे। ट्रेनिंग और टेक्निकल सपोर्ट TRIFED के जरिए दी जाएगी।
हर वनधन विकास केंद्र को 15 लाख रुपए की वित्तीय सहायता दी जाएगी। इस स्कीम के जरिए देश के 27 राज्यों के 307 आदिवासी जिलों में रहने वाले 5.5 करोड़ जनजातीय लोगों को सशक्त बनाने की योजना है। वन धन योजना के जरिए जनजातीय समुदायों को 50 गैर राष्ट्रीयकृत लघु वनोपजों के लिए उचित पारिश्रमिक और न्यूनतम मूल्य दिलाने पर भी काम होगा।
अब तक 154 वन धन विकास केंद्र शुरू हो चुके हैं। सरकार चाहती है कि सभी बड़ी प्राइवेट और सरकारी कंपनियां CSR के जरिए इस स्कीम से जुड़े। सरकार ने इसके लिए 011-26569064 और 011-26968247 हेल्पलाइन भी शुरू की है।
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