टीडीएस का मतलब टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स होता है। जिसका अर्थ है किसी व्यक्ति की आय का स्रोत क्या है उस पर से जो टैक्स कलेक्ट किया जाता है उसे ही टीडीएस कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी व्यक्ति की आय सीमा से अधिक है तो उसकी आय में से एक तय राशि काट ली जाती है जो टैक्स के रुप में होती है। टैक्स के रुप में काटी गई इसी राशि को टीडीएस कहते हैं।
इसमें वेतन, निवेश पर मिला ब्याज, कमीशन, ब्रोकरेज पर भी टीडीएस कटता है। काटा गया टीडीएस सरकार के पास जमा किया जाता है जिसके बदले में प्रमाणपत्र भी मिलता है। इस प्रमाण पत्र में ब्योरा होता है कि अमुक व्यक्ति से किटना टीडीएस काटा गया और सरकार के खाते में कितनी राशि गई।
सरकार सीधे तौर पर टीडीएस नहीं काटती है ये पेमेंट करने वाले व्यक्ति या फिर उस संस्था की जिम्मेदारी होती है जिसे डिडक्टर कहते हैं। अलग-अलग प्रकार की सेवाओं पर अलग-अलग टीडीएस की दरें तय है। जैसे कि वेतन पर टैक्स स्लैब के अनुसार टीडीएस काटा जाता है वहीं बिल्डिंग पर या अन्य ऐसे ही किसी किराया वसूलने पर 5 फीसदी टीडीएस काटा जाता है जबकि ब्याज पर 10 फीसदी टीडीएस काटा जाता है। इसके अलावा बेसिक जरूरतों के अलावा खरीदे जाने वाले सामान जिन पर तय सीमा से ज्यादा पेमेंट किया जाता हो उस पर भी टीडीएस कटता है।
अगर आप भारतीय हैं और अगर आपने म्युचुअल फंड में निवेश किए हैं तो उस पर से आने वाले ब्याज पर आपको डीटीएस नहीं लगेगा लेकिन अगर आप एनआईआई हैं तो इस फंड से हुई आय पर आपको टीडीएस देना होगा। इनकम टैक्स के अंतर्गत फॉर्म 26ए एस एक टैक्स स्टेटमेंट है जिसमें यह बताया गया है कि काटा गया टैक्स व्यक्ति के पैन में जमा कर दिया जाता है।
वह व्यक्ति जो पेमेंट कर रहा है वह टीडीएस भरने का उत्तरदायी है उसे डिडक्टर कहा जाता है। उसी जिम्मेदारी बनती है कि वह टीडीएस सरकार को जमा करे जब यह राशि जमा कर दी जाती है तो यह उस व्यक्ति के फॉर्म 16 ए एस में दिखती है।
अगर एक साल में आपके एफडी से अगर 10 हजार से कम की आय हो रही है तो आपको इस पर टीडीएस नहीं देना पड़ेगा। वहीं आय के मामले में अगर आपकी निश्चित रकम से ज्यादा भुगतान नहीं है तो आपको टीडीएस नहीं लगता है।
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