Why Nirmala Sitharaman compares Indian Companies To Hanuman: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को उद्योग जगत की तुलना भगवान हनुमान से कर दी। उन्होंने कहा कि मुझे समझ में नहीं आ रहा है, कि उद्योग जगत मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में निवेश को लेकर क्यों झिझक रहा हैं और उसे कौन सी चीजें रोक रही हैं। साफ है कि वित्त मंत्री जब किसी सार्वजनिक मंच से ऐसी बात कर रही हैं, तो उन्हें कोई गहरी चिंता भी सता रही होगी। तो इसका सीधा सा जवाब है कि अगर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कंपनियां निवेश नहीं करेगी तो पहले से ही नौकरियों का संकट और गहराएगा। साथ ही महंगाई की तलवार भी लटकती रहेगी। जिसका सीधा असर इकोनॉमी के पहिए पर पड़ेगा।
5 लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी का लक्ष्य
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2019 में भारतीय इकोनॉमी को, 2024-25 तक 5 लाख करोड़ डॉलर बनाने का लक्ष्य रखा था। और इस लक्ष्य को पाने में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की अहम भूमिका रहने वाली है। इसीलिए उसकी जीडीपी में हिस्सेदारी भी बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। जिसे 25 फीसदी तक पहुंचाने का लक्ष्य है। और अभी जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की 15-17 फीसदी ही हिस्सेदारी है। यही से वित्त मंत्री की चिंता भी जुड़ी हुई है। क्योंकि अगर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कंपनियां निवेश नहीं करेगी तो इकोनॉमी रफ्तार नहीं पकड़ पाएगी।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उद्योग जगत की तुलना 'हनुमान' से की, कहा-निवेश को लेकर झिझक क्यों
ये नंबर वित्त मंत्री की बढ़ा रहे हैं चिंता
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी प्राइवेट लिमिटेड (CMIE) के आंकड़ों के अनुसार जून 2022 की तिमाही में नए प्रोजेक्ट्स पर कंपनियों का कैपिटल खर्च 4.30 लाख करोड़ रहा है। जो कि मार्च 2022 की तिमाही की तुलना में 50 फीसदी के करीब कम हुआ है। इस दौरान 8.18 लाख करोड़ रुपये था। इतनी बड़ी गिरावट निश्चिचत तौर पर सरकार के लिए चिंता का सबब है। खास तौर से जब रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से ग्लोबल सप्लाई चेन प्रभावित हुई है और उसका असर महंगाई पर सीधे तौर पर दिख रहा है।
अगस्त में एक बार फिर महंगाई दर 7 फीसदी पर पहुंच गई है। इसी तरह जुलाई में IIP भी केवल 2.4 फीसदी के दर से बढ़ा है। जबकि जून में यह 12.7 फीसदी था। महंगाई और आईआईपी के आंकड़ों का साफ मतलब है कि मांग उम्मीद के अनुसार नहीं आ रही है। इसीलिए वित्त मंत्री निवेश बढ़ाने की बात कर रही है। जिससे कि नौकरियों के अवसर बढ़े और लोगों के पास पैसे आए। साथ ही भारत में उत्पादन होने से विदेश से निर्भरता कम होगी। जिससे महंगाई को काबू में लाया जा सके।
तिमाही | नए प्रोजेक्ट पर पूंजी खर्च (रुपये ) |
जून 22 | 4.3 लाख करोड़ |
मार्च 22 | 8.18 लाख करोड़ |
दिसंबर 21 | 4.02 लाख करोड़ |
सितंबर 21 | 3.39 लाख करोड़ |
स्रोत: CMIE
छोटे कारोबारियों का 10 लाख करोड़ बकाया
इकोनॉमी को बूस्ट देने में सबसे बड़ा योगदान छोटे और मझोले कारोबारियों का होता है। क्योंकि न केवल उनकी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 35-36 फीसदी के करीब हिस्सेदारी है। और 11 करोड़ लोगों को रोजगार मिल रहा है। ऐसे में अर्थव्यवस्था की रीढ़ एमएसएमई सेक्टर के लिए बड़ी परेशानी दिख रही है। डन एंड ब्रैडस्ट्रीट और ग्लोबल अलायंस फॉप मॉस आंत्रेप्रेन्योरशिप की रिपोर्ट के अनुसार एमएसएमई से उनके प्रोडक्ट खरीदने वाली कंपनियों ने करीब 10.7 करोड़ रुपये की देनदारी नहीं चुकाई है। बड़ी कंपनियां जिसमें प्राइवेट और सरकारी दोनों कंपनियां शामिल हैं, उनके पेमेंट में देरी कर रही हैं। जिसका सीधा असर उनके कारोबार और नए निवेश और रोजगार पर पड़ रहा है। और शायद यही वजह है कि वित्त मंत्री उद्योग जगत की तुलना भगवान हनुमान से कर रही हैं।
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