नई दिल्ली। जैसलमेर पुलिस ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के पूर्व अध्यक्ष प्रतीप चौधरी (Pratip Chaudhuri) को ऋण घोटाला मामले में गिरफ्तार कर लिया है। द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार जैसलमेर के होटल से जुड़े मामले में उन्हें उनके दिल्ली स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया। यह मामला गोदावन समूह (Godawan Group) के स्वामित्व वाली संपत्तियों से संबंधित है, जिसने 2008 में एक होटल बनाने के लिए एसबीआई से 24 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था।
समाचार रिपोर्ट के अनुसार, चौधरी के खिलाफ आरोप है कि जब बैंक ने संपत्तियों को ऋण के बदले जब्त कर लिया था, तब 200 करोड़ रुपये की संपत्तियों को 25 करोड़ रुपये में बेचा गया।
मामले में पुलिस ने क्या कहा?
मामले में पुलिस का कहना है कि गोदावन ग्रुप ने होटल बनाने के लिए 2008 में एसबीआई से 24 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था। इस समय, समूह का दूसरा होटल काम कर रहा था। बाद में जब समूह ऋण चुकाने में असमर्थ हो गया था, तब होटल को नॉन परफॉमिर्ंग एसेट (NPA) करार दिया गया था, और बैंक ने दोनों होटलों को जब्त कर लिया। तब प्रतीप चौधरी एसबीआई के अध्यक्ष थे। इसके बाद दोनों होटलों को एल्केमिस्ट एआरसी कंपनी (Alchemist ARC company) को 25 करोड़ रुपये में बेच दिया गया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया कि अल्केमिस्ट का आलोक धीर कल भागने में सफल रहा।
2013 में समाप्त हुआ SBI के 23वें अध्यक्ष के रूप में चौधरी का कार्यकाल
अलकेमिस्ट एआरसी ने साल 2016 में होटलों का अधिग्रहण किया और 2017 में किए गए एक आकलन से पता चला कि संपत्ति का बाजार मूल्य 160 करोड़ रुपये था और आज इसकी कीमत 200 करोड़ रुपये है। एसबीआई के 23वें अध्यक्ष के रूप में चौधरी का कार्यकाल सितंबर 2013 में समाप्त हो गया था। रिपोर्ट्स के अनुसार, एसबीआई से सेवानिवृत्त होने के बाद वे एल्केमिस्ट एआरसी में निदेशक के रूप में शामिल हुए।
जैसलमेर में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने चौधरी और सात अन्य के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। चौधरी को सोमवार को जैसलमेर लाया जाएगा।
एसबीआई ने दिया स्पष्टीकरण
इस पर सार्वजनिक क्षेत्र के ऋणदाता ने स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा कि मार्च 2014 में चौधरी के सेवानिवृत्त होने बाद संपत्ति को उचित प्रक्रिया के साथ बेचा गया था।
अपने बयान में, एसबीआई ने स्पष्ट किया कि 'गढ़ रजवाड़ा' जैसलमेर में एक होटल परियोजना थी, जिसे 2007 में बैंक द्वारा वित्तपोषित किया गया था। यह परियोजना 3 वर्षों से अधिक समय तक अधूरी रही और प्रमुख प्रमोटर का अप्रैल 2010 में निधन हो गया। खाता जून में एनपीए घोषित किया गया। एसबीआई ने आगे कहा कि, 'ऐसा प्रतीत होता है कि माननीय न्यायालय को घटनाओं के क्रम पर सही ढंग से जानकारी नहीं दी गई है। इस कार्यवाही के हिस्से के रूप में एसबीआई के विचारों को सुनने का कोई अवसर नहीं था।'
एसबीआई ने बयान दिया कि, 'एआरसी को बिक्री करते समय सभी उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था। बैंक ने पहले ही कानून प्रवर्तन और न्यायिक अधिकारियों को अपने सहयोग की पेशकश की है और आगे की जानकारी प्रदान करेगा।'
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