नई दिल्ली: भारत के लिए 24 टेस्ट, 18 वनडे और 6 टी20 मैच खेलने वाले अनुभवी स्पिनर प्रज्ञान ओझा ने पिछले सप्ताह अंतरराष्ट्रीय और प्रथम श्रेणी क्रिकेट को अलविदा कह दिया। उन्होंने तीनों फॉर्मेट में कुल 144 विकेट चटकाए। महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में उन्होंने करियर का पहला टेस्ट साल 2009 में कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में खेला था। सचिन तेंदुलकर ने प्रज्ञान को टेस्ट कैप दी थी। दिलचस्प बात यह है कि उनके पहले और आखिरी टेस्ट से सचिन का नाम हमेशा के लिए जुड़ गया। दरअसल, सचिन का विदाई टेस्ट उनके करियर का भी आखिरी अंतरराष्ट्रीय मैच साबित हुआ। ओझा ने साल 2013 में वेस्टइंडीज के खिलाफ मुंबई में सचिन तेंदुलकर के विदाई टेस्ट में आखिरी बार भारत के लिए खेला था।
'विदेशी लीगों में खेलने के इच्छुक'
प्रज्ञान ओझा विदेशी टी20 लीगों में खेलने के इच्छुक हैं। वह लीगों में खेलने के के लिए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) से इजाजत लेंगे। उन्होंने कहा कि वह विदेशी लीगों में तभी जाएंगे जब बीसीसीआई की मंजूरी मिलेगी। पीटीआई के मुताबिक, उन्होंने डीवाई पाटिल टी20 कप के इतर कहा, 'मेरे दिमाग में कई चीजें हैं। मैं अभी कमेंट्री कर रहा हूं और बीसीसीआई के साथ हूं। मैं बीसीसीआई से सलाह लूंगा कि क्या मैं भारत से बाहर कुछ लीगों में खेल सकता हूं। मैं ऐसा तभी करूंगा जब मुझे इसके लिए अनुमति मिलेगी।'
'धोनी गेंदबाजों के कप्तान'
ओझा ने ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट महेन्द्र सिंह धोनी के नेतृत्व में खेला है। उन्होंने धोनी को गेंदबाजों का कप्तान करार दिया। उन्होंने कहा, 'वह (धोनी) गेंदबाजों के कप्तान है। मैं पूरी तरह से मानता हूं कि गेंदबाज के पास ऐसा कप्तान होना चाहिए जो उसे समझता है। बहुत से गेंदबाज धोनी की तारीफ करते हैं क्योंकि वे आपको जो आयाम देते हैं वह आपकी काफी मदद करता है।' ओझा से जब पूछा गया कि क्या उन्हें अपने करियर में कोई पछतावा है तो उन्होंने कहा, 'शायद भारत के लिए और क्रिकेट खेला होता।'
'मैंने कई उतार चढ़ाव देखे'
गौरतलब है कि ओझा ने संन्यास के बाद कहा था कि भारत के लिए इस स्तर पर खेलना हमेशा से मेरा सपना था। मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता कि कितना खुशकिस्मत हूं कि मेरा सपना पूरा हुआ। मुझे देशवासियों का इतना प्यार और सम्मान मिला। उन्होंने आगे कहा कि मेरे करियर में मैंने कई उतार चढ़ाव देखे। मुझे अहसास हुआ कि एक खिलाड़ी की महानता उसके मेहनत और समर्पण का ही नहीं बल्कि टीम प्रबंधन, साथी खिलाड़ियों, कोचों, ट्रेनर और प्रशंसकों द्वारा जताए गए भरोसे और उनके मार्गदर्शन का भी फल है।
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