नई दिल्लीः सचिन तेंदुलकर ने अपने 24 साल लंबे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर में मुकाम हासिल किया जिसके बारे में सोचकर भी अन्य खिलाड़ियों के पसीने छूट जाते हैं। सचिन ने क्रिकेट जगत में वो रिकॉर्ड बनाए जिनको तोड़ पाना किसी भी खिलाड़ी के लिए आसान नहीं होगा। सचिन तेंदुलकर ने बेशक मैदान पर वो सम्मान हासिल किया जो आज तक किसी अन्य क्रिकेटर को नहीं मिला। इन्हीं सम्मान में से एक था राष्ट्रीय टीम की कप्तानी करने का मौका। बेशक बल्ले से सचिन के आंकड़े बेमिसाल रहे लेकिन कप्तानी में ये ठीक उल्टा साबित हुआ।
मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने 1989 में जब अपने क्रिकेट करियर की शुरुआथ की थी तब उन्होंने सोचा भी नहीं था कि वो कभी भारत के लिए भी खेलेंगे। सिर्फ खेलना तो दूर वो डेब्यू के तकरीबन एक दशक बाद टीम इंडिया के कप्तान भी चुने गए। ये एक बड़ी जिम्मेदारी के साथ-साथ उनकी सफलताओं के लिए सम्मान था। सचिन ने 1996 से 2000 के बीच कप्तानी की और लीडरशिप के दबाव में खुद ही कप्तानी छोड़ने का फैसला भी कर लिया क्योंकि वो वो अपनी बल्लेबाजी पर ध्यान देना चाहते थे और कप्तान रहते हुए वो ऐसा कर नहीं पा रहे थे।
जब सचिन ने कहा- मुझे नहीं करनी कप्तानी
हाल ही में भारत के पूर्व चयनकर्ता चंदू बोर्डे ने एक खुलासा किया और पुराने किस्से बताते हुए सचिन की कप्तानी छोड़ने का वाकया भी याद किया। भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया दौरे से घर लौटी थी और वापस आते ही सचिन ने साफ कह दिया कि वो कप्तानी नहीं करेंगे क्योंकि इससे उनकी बल्लेबाजी पर असर पड़ रहा है। चंदू बोर्डे ने सचिन को मनाने का प्रयास भी किया लेकिन वो इसमें सफल नहीं हुए।
चंदू बोर्ड ने स्पोर्ट्सकीड़ा से ऑनलाइन बातचीत के दौरान कहा, 'देखिए, अगर आपको याद हो, हमने उन्हें कप्तान बनाकर ऑस्ट्रेलिया भेजा था। वहां उन्होंने कप्तानी भी की लेकिन जैसे ही वो वापस लौटे, वो आगे कप्तानी जारी रखना नहीं चाहते थे।' चंदू बोर्डे के मुताबिक उस समय सचिन कहा- नहीं, मैं अपनी बल्लेबाजी पर ध्यान लगाना चाहता हूं।
नाराज हो गए थे साथी
चंदू बोर्डे ने ये भी खुलासा किया कि चयन समिति में उनके कुछ साथी नाराज हुआ करते थे जब बोर्डे सचिन को मनाने का प्रयास करते थे। बोर्डे ने बताया, 'आप क्यों हर समय उससे कप्तान बनने की गुजारिश करते रहते हैं।' तब मैं कहता था कि मैं भविष्य के बारे में सोच रहा हूं। उसके बाद फैसला लिया गया कि सौरव गांगुली को कप्तान बनाएंगे।'
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