भारतीय क्रिकेट में कई चेहरे आए और गए, लेकिन उनमें से कुछ ही ऐसे थे जो मैदान से विदाई के बाद भी हमेशा सुर्खियों में रहे। उन्हीं दिग्गजों में एक नाम है पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली का। दादा के नाम से मशहूर ये पूर्व कप्तान व दिग्गज बल्लेबाज आज अपना 48वां जन्मदिन मना रहा है। लॉर्ड्स में खेले गए करियर के पहले टेस्ट में शतक हो (फोटो) या फिर टीम इंडिया को विदेश में जीत दिलाने वाली आक्रमकता सिखाना, एक शानदार कप्तान के रूप में भविष्य की टीम बनाना हो या फिर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) का अध्यक्ष बनना। वो हमेशा शीर्ष पर रहने के लिए जाने गए। आइए आज उनके जन्मदिन पर जानते हैं उनसे जुड़ी 10 खास बातें।
सौरव गांगुली कोलकाता के एक बेहद समृद्ध परिवार में जन्मे थे। उनके पिता प्रिंटिंग व्यापार में थे और कोलकाता के सबसे अमीर लोगों में शुमार थे। उनका बचपन आरामदायक रहा। तभी क्रिकेट में आने के बाद उनको महाराजा भी कहकर पुकारा जाता था।
उनके भाई स्नेहाशीष प्रेरणा साबित हुए। वो बंगाल क्रिकेट टीम से खेला करते थे और उन्होंने ही सौरव को अकादमी में दाखिला दिलवाया और क्रिकेटर बनने का अपना सपना पूरा करने का हौसला दिया। तब सौरव दसवीं के छात्र थे।
सौरव गांगुली जब छोटे थे, तभी से उनके अंदर महाराजा वाला व्यवहार घर कर चुका था। बताया जाता है कि जूनियर टीम के साथ एक बार उन्होंने 12th मैन बनने से मना कर दिया था, पानी लाना, संदेश पहुंचाना जैसे काम जूनियर खिलाड़ी पहले भी करते थे और आज भी करते हैं लेकिन सौरव ने सीधे मना कर दिया क्योंकि ये उनका मानना था कि ये सब उनके स्तर से नीचे के काम हैं।
बेशक उनका रवैया कैसा भी हो लेकिन उनका खेल शानदार था इसलिए उनको 1989 में बंगाल की सीनियर टीम में जगह मिल गई। दिलचस्प बात ये थी कि उनको टीम में तब जगह मिली जब उनके बड़े भाई को टीम से ड्रॉप कर दिया गया। उसी साल सौरव ने अपना प्रथम श्रेणी क्रिकेट डेब्यू किया।
उन्होंने वनडे क्रिकेट में 1992 में डेब्यू किया लेकिन पहले मैच में तीन रन ही बना सके और फिर अपने महाराजा वाले रवैये की वजह से टीम से बाहर हो गए। हालांकि तकरीबन चार साल बाद 1996 में उनकी फिर से टेस्ट टीम में एंट्री हुई। वो इंग्लैंड दौरे पर गए और पहले ही मैच में प्रतिष्ठित लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड पर शतक जड़कर सबके होश उड़ा दिए। उसी मैच में राहुल द्रविड़ ने भी डेब्यू किया था।
इंग्लैंड में अच्छे दौरे के बाद सौरव गांगुली भारत लौटे और अपनी बचपन की दोस्त डोना रॉय को लेकर भाग गए। खबरों के मुताबिक दोनों के परिवारों में बनती नहीं थी इसलिए दादा ने ये कदम उठाया था। काफी हंगामा हुआ। खैर, किसी तरह मामला सुलझाया गया और फिर फरवरी 1997 में दोनों की शादी करा दी गई। उसी साल दादा ने वनडे क्रिकेट में अपना पहला शतक भी जड़ दिया (श्रीलंका के खिलाफ)।
साल 2000 में मैच फिक्सिंग विवाद ने जन्म लिया। कई खिलाड़ी इसकी चपेट में आए और सचिन तेंदुलकर ने भी कप्तान बनने से मना कर दिया, तभी सौरव गांगुली को कप्तान बनाने का फैसला लिया गया। कप्तान के रूप में उनकी शुरुआत बेहतरीन रही और टीम इंडिया ने 2000 के आईसीसी नॉकआउट ट्रॉफी के फाइनल में जगह बना ली। उसके बाद साल 2003 तक एक शानदार सफर रहा और 2003 विश्व कप में भारत उनकी कप्तानी में फाइनल तक पहुंचा जहां टीम को हार तो मिली लेकिन तारीफें भी।
2004-2005 के बीच खराब प्रदर्शन के बाद उनको टीम से बाहर का रास्ता देखना पड़ा। वो सितंबर 2005 में फिर टीम में लौटे, उसी दौरान पूर्व ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर ग्रेग चैपल को भारतीय टीम का कोच बना दिया गया। उसके बाद से सब गड़बड़ होने लगा। चैपल ने टीम में फूट डालने का काम किया, कई खिलाड़ी इसकी चपेट में आए और बांटो व राज करो वाले फॉर्मूले के तहत उन्होंने गांगुली के करियर को कप्तानी के लिए योग्य ना होने का बयान दे डाला। विवादों और 2007 क्रिकेट विश्व कप में भारतीय टीम के बंटाधार के बाद चैपल की छुट्टी हुई और दादा फिर लौटे और 2008 में उन्होंने क्रिकेट को अलविदा कहने का फैसला किया।
एक दिलचस्प नजारा तब दिखा जब गांगुली ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू सीरीज में अपना अंतिम मैच खेलने उतरे। उस समय टीम के कप्तान सौरव गांगुली थे। वही गांगुली जिन्होंने धोनी को एक बनी-बनाई टीम सौंपी थी। युवाओं से भरी जोशीली टीम जिसमें धोनी भी शामिल थे। कप्तान धोनी ने भी दादा को शुक्रिया कहने का अनोखा तरीका निकाला, जब भारत को जीत के लिए 1 विकेट की जरूरत थी तो उन्होंने कप्तानी दादा को सौंप दी। एक आखिरी बार फैंस ने दादा को मैदान पर फील्डिंग सेट करते देखा गया। भारत वो सीरीज 2-0 से जीता था।
जिस युवा खिलाड़ी ने जूनियर क्रिकेट के दिनों में अपने रुतबे व व्यवहार के कारण टीम से जगह गंवाई थी। वही सौरव गांगुली शान के साथ तमाम रिकॉर्ड्स खाते में डालते हुए रिटायर हुए। उसके बाद कमेंट्री की और कुछ समय बाद क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाले के प्रमुख बन गए। कुछ ही समय बीता और वो बीसीसीआई अध्यक्ष पद के लिए खड़े हुए और जीत भी गए। अब वो भारतीय क्रिकेट बोर्ड के किंग हैं और जलवा अब भी कायम है।
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