अजमेर की दरगाह की देखभाल करने वाले खादिम एक बार फिर नफरती बयानों को लेकर चर्चा में हैं। इसलिए हमें याद आया 1992 का वो घिनौना कांड जिसने सारे देश को सन्न कर के रख दिया था।
21 अप्रैल 1992 को हुआ था केस का खुलासा
पत्रकार संतोष गुप्ता ने किया था कांड का खुलासा
फारुक चिश्ती और नफीस चिश्ती थे केस के मुख्य आरोपी
1992, देश में बहुत कुछ हो रहा था। एक तरफ राम मंदिर आंदोलन ने देश का माहौल तनावपूर्ण किया हुआ था। हर्षद मेहता का मशहूर शेयर बाजार स्कैम का खुलासा हुआ था। रुपया भी अपने ऐतिहासिक ढलान पर इसी साल आया था डॉलर के मुकाबले रुपये में 50 फीसदी की गिरावट आई थी। कई घटनाएं पहले ही देश में सुर्खियां बटोरी हुई थी कि अजमेर से एक घिनौनी और कंपा देने वाली घटना का खुलासा हुआ।
30 साल पहले हुए इस घटना को हम 1992 अजमेर सीरियल रेप और ब्लैकमेल के नाम से जानते हैं। ये एक ऐसा केस है जिसने अजमेर पर हमेशा के लिए काला धब्बा लगा दिया। इस केस में सैकड़ों लड़कियों की जिंदगियां तबाह हुई थी और आरोपियों में शामिल थे अजमेर दरगाह से जुड़े हुए रसूखदार खादिम और कांग्रेस के नेता।
1992 का रेप और ब्लैकमेल का मामला
अजमेर में हमेशा से दरगाह और इससे जुड़े खादिमों का दबदबा रहा है. पैसों से, सामाजिक ताकत से, रसूख से, राजनीतिक कनेक्शन से और कई कारणों से यही कारण था खादिमों के परिवारों से आने वाले लोग अजमेर में अच्छी खासी जिंदगी बसर करते आए हैं। इसमें भी जो चिश्ती परंपरा से हैं जिनके नाम के पीछे चिश्ती लगता है जो खुद को चिश्ती वंश का कहते हैं वो लोग खासकर।
'अजमेर रेप केस में 'बलात्कार' के अलावा 'ब्लैकमेल' करना भी एक एंगल था'
अजमेर से एक अखबार निकलता था, नाम था दैनिक नवज्योति इसमें काम करने वाले क्राइम रिपोर्टर संतोष गुप्ता ने अजमेर रेप कांड का खुलासा किया था। अखबार के क्राइम रिपोर्टर संतोष गुप्ता ने सालों तक इस केस को कवर किया और कई मौकों पर अदालत में गवाही के लिए भी पेश हुए। अजमेर रेप केस में बलात्कार के अलावा ब्लैकमेल करना भी एक एंगल था। पीड़ित लड़कियों को दोस्ती के झांसे में फंसाकर उनका शोषण करना फिर उनकी अश्लील तस्वीरें बनाकर ब्लैकमेल करना और फिर उन लड़कियों से कहना कि वो अपनी दोस्तों को भी बुलाएं और पहचान करवाएं। इन लड़कियों के साथ भी यही दरिंदगी का खेल होता था।
'आरोपी जिस फोटो लैब में अश्लील तस्वीरें बनवाते थे वहीं से तस्वीरें लीक हो गईं'
आरोपियों ने कई दिनों तक ये घिनौना खेल खेला लेकिन कहा जाता है कि जुर्म करने वाला कितना भी तेज क्यों न हों कहीं न कहीं सुराग छोड़ता जरूर है। आरोपी जिस फोटो लैब में अशलील तस्वीरें बनवाते थे वहीं से तस्वीरें लीक हो गईं। तस्वीरें विश्व हिंदू परिषद तक पहुंची और फिर वो तस्वीरें पुलिस को मिली। इसके बाद 21 अप्रैल 1992 को मामला अखबार के जरिए दुनिया के सामने आया। इन तस्वीरों के आधार पर पत्रकार संतोष गुप्ता ने अपनी छानबीन शुरू की। छानबीन के दौरान पता चला कि अजमेर दरगाह से जुड़े खादिमों के परिवारों के लोग ही ये घिनौना खेल खेल रहे हैं और फिर मामला एक एककर खुलता गया।
'मुख्य आरोपी थे फारुक चिश्ती और नफीस चिश्ती'
अब हम आपको बताते हैं कि इस कांड के मुख्य आरोपी कौन थे और वो कैसे इस पूरे खेल को अंजाम दे रहे थे। मुख्य आरोपी थे फारुक चिश्ती और नफीस चिश्ती। इन दोनों के साथ इनके कुछ दोस्त भी इस कुकर्म में उनका साथ देते थे। मामला खुलते ही अजमेर में सांप्रदायिक तनाव फैल गया। शहर बंद हो गया। पीड़ित लड़कियों में लगभग सभी हिंदू लड़कियां थी।
'दोनों मुख्य आरोपी उस वक्त राजनीतिक रसूख वाले भी थे'
साथ ही मामले में दोनों मुख्य आरोपी उस वक्त राजनीतिक रसूख वाले भी थे फारूक चिश्ती यूथ कांग्रेस का नेता था और नफीस चिश्ती अजमेर कांग्रेस का उपाध्यक्ष था, बाद के सालों में जाकर कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि पुलिस ने शुरुआती दौर में इसलिए भी केस में ढील दिया था कि एक तो आरोपी रसूखदार परिवार से थे और दूसरा ये कि इससे सांप्रदायिक तनाव फैल सकता था। हालांकि सितंबर 1992 में मुकदमा शुरू हुआ। 6 चार्जशीट दायर किए गए थे। पहले मामले में 8 लोगों को आरोपी बनाया गया था लेकिन जांच आगे बढ़ने के बाद इनकी संख्या 18 हो गई और 145 से ज्यादा गवाह भी इस मामले में थे।
आरोपियों ने लड़कियों को इस पूरे कांड में फंसाया कैसे
अब समझिए कि आरोपियों ने लड़कियों को इस पूरे कांड में फंसाया कैसे। रिपोर्ट्स के मुताबिक अजमेर के मशहूर स्कूल सोफिया स्कूल और सावित्री स्कूल की लड़कियों को ज्यादा निशाना बनाया गया. अजमेर की अच्छे और मंहगे रेस्टोरेंट में आने वाली लड़कियों को दोस्ती के जाल में फंसाकर उनके साथ जबरदस्ती की जाती थी। खादिमों के परिवार से आने वाले युवाओं के पास दिखावा करने के लिए उन दिनों सबकुछ था महंगी गाड़ियां, मोटरसाइकिलें, गले में लटकती चेनें और वो सबकुछ जो स्टाइल मारने के लिए काफी हो। फारूक और नफीस का जैसे एक गैंग सक्रिय था जो इसी काम में लगा रहता था कि लड़कियों को फंसाया जाए और फिर अपने घिनौने काम को अंजाम दिया जाए।
'लड़कियों को दोस्त बनाकर उनके लिए पार्टियां रखी जाती'
लड़कियों को दोस्त बनाकर उनके लिए पार्टियां रखी जाती इसमें काम आता था चिश्तियों का एक फार्महाउस या फिर फारूक का बंग्ला यहां पर या तो लड़कियों को बहला फुसलाकर लाया जाता था या फिर ब्लैकमेल कर लाया जाता था। पार्टियों के बहाने भी कई लड़कियों को इस गिरोह ने अपनी हवस का शिकार बनाया और फिर उनकी अश्लील तस्वीरें बनाई जिससे लड़कियां अपनी बदनामी के डर से चुप रहती। कई रिपोर्ट्स तो ये भी कहते हैं कि पीड़ित लड़कियों की संख्या हजार से ज्याद थी। कई रिपोर्ट्स में कहा गया कि लड़कियों का धर्म परिवर्तन करवाया जाता था या फिर लड़कियों का धर्म परिवर्तन करवाकर उनसे शादी कर लेते थे।
मामले में हुई शुरुआती FIR में 17 पीड़ितों ने अपने बयान दर्ज करवाए थे
दर्ज मामलों के मुताबिक 100 से ज्यादा ऐसी पीड़ित लड़कियां थीं टीनेजर्स थीं। ये बड़ा कारण बना था जिस वजह से केस में कईयों ने गवाही नहीं दी थी। मामले में हुई शुरुआती FIR में 17 पीड़ितों ने अपने बयान दर्ज करवाए थे। इनमें से भी कई बाद में पलट गए। तीन दशकों में ये मामला राजस्थान की अदालतों से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और फिलहाल ये अजमेर की पॉक्सो अदालत में चल रहा है।
मामले में 18 लोग नामजद हुए थे
जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि मामले में 18 लोग नामजद हुए थे। इसमें एक पुरुषोत्तम नाम के शख्स ने आत्महत्या कर ली। पुरुषोत्तम वही है जो बलात्कार की तस्वीरों को डेवेलप करने का काम करता था। केस के पहले 8 आरोपियों को साल 1998 में जिला सेशन कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, लेकिन साल 2001 में राजस्थान हाईकोर्ट ने उनमें से चार को बरी भी कर दिया। फिर सुप्रीम कोर्ट ने साल 2003 में बाकी आरोपियों की सजा को घटाकर 10 साल कर दी थी. बाकी के आरोपी आगे के सालों में गिरफ्तार होते रहे या सरेंडर करते रहे।
फारूक को हुआ आजीवन कारावास
मामले का मुख्य आरोपी फारूक चिश्ती, उसने कोर्ट में ये दावा कर दिया कि वो मानसिक रूप से बीमार है। हालांकि साल 2007 में एक फास्ट-ट्रैक कोर्ट ने फारूक को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। फिलहाल वो बेल पर बाहर है क्योंकि कोर्ट के मुताबिक वो सजा के तौर पर काफी वक्त जेल में बिता चुका था, दूसरा मुख्य आरोपी नफीस चिश्ती जो कि पहले से कई मामलों में कानून की निगाह में जुर्म करने वाला था उस साल 2003 में दिल्ली पुलिस ने पकड़ा। नफीस फरार चल रहा था और पुलिस ने उसे बुर्का पहनकर भागते हुए पकड़ा था। हाल ही में साल 2018 में मामले से जुड़े एक और बड़े आरोपी सुहैल गनी चिश्ती ने सरेंडर किया था जिसके बाद मामला फिर सुर्खियों में आया था।
इस वक्त छह आरोपियों नफीस चिश्ती, इकबाल भट, सलीम चिश्ती, सैयद जमीर हुसैन, नसीम उर्फ टार्जन और सुहैल गनी पर अजमेर की पॉक्सो अदालत में केस चल रहा है, हालांकि सभी जमानत पर बाहर हैं। एक और आरोपी है जिसका नाम अलमास महाराज बताया जाता है वो कभी भी पुलिस की पकड़ में ही नहीं आया उसे लेकर कहा जाता है कि वो अमेरिका में कहीं छिपा बैठा है। उसके खिलाफ गिरफ्तारी के वॉरंट रेड कॉर्नर नोटिस सब जारी किए जा चुके हैं।
'अजमेर का ये 1992 का रेप और ब्लैकमेल का मामला आज भी अजमेर पर स्याह धब्बे की तरह'
खैर मामला अभी भी चल रहा है अजमेर का ये 1992 का रेप और ब्लैकमेल का मामला आज भी अजमेर पर स्याह धब्बे की तरह है। नफीस और फारूक जो इस पूरे मामले के मुख्य आरोपी हैं। अजमेर दरगाह के खादिमों के परिवार से आते हैं। वो आज भी अजमेर में शान ओ शौकत से जी रहे हैं।
'नफीस जो कि नशे के कारोबार में भी लिप्त था कई बार पकड़ा भी गया, आज भी वो दरगाह पर आता है'
नफीस जो कि नशे के कारोबार में भी लिप्त था कई बार पकड़ा भी गया, आज भी वो दरगाह पर आता है। लोग उसके हाथ चूमते हैं इज्जत करते हैं। जिन लड़कियों की जिंदगी तबाह हुईं वो या तो अजमेर छोड़कर परिवार के साथ चली गईं, कई आज भी कोर्ट का बुलावा आने पर बयान देने के लिए पेश होती हैं। कई तो अब नानी-दादी बन गई हैं फिर भी केस को लेकर समन आता है। कहा जाता है कि जब अजमेर का ये मामला खुला था तो अजमेर पूरे इलाके में बदनाम हो गया था। कोई भी अजमेर की लड़कियों से शादी नहीं करना चाहता था. अजमेर के माथे पर आज भी वो धब्बा लगा है जिसमें दरगाह से जुड़े खादिमों के परिवार के लोग शामिल थे।