मुफ्त वादों की राजनीति के खिलाफ SC में एक और अर्जी दाखिल, दिल्ली को लेकर जताई गई चिंता

दिल्ली समाचार
गौरव श्रीवास्तव
गौरव श्रीवास्तव | कॉरेस्पोंडेंट
Updated Aug 08, 2022 | 18:36 IST

सुप्रीम कोर्ट में इस वक्त ‘फ्री पॉलिटिक्स’ के खिलाफ याचिका लंबित है। पिछले बार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने नीति आयोग, वित्त आयोग, भारतीय रिजर्व बैंक, विधि आयोग और चुनाव आयोग इस बारे में आपस में विचार करके सुझाव देने को कहा था।

Another petition in SC against freebies politics, concerns raised about Delhi
मुफ्त की सुविधा वाली राजनीति पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।   |  तस्वीर साभार: PTI

दिल्ली में मुफ्त वादों की राजनीति के खिलाफ अभी भी तलवारें खींची हुई हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को कहा कि मुफ्त शिक्षा, बिजली–पानी रेवड़ी नहीं बल्कि उनका अधिकार है। वहीं आज सुप्रीम कोर्ट में जाने-माने अर्थशास्त्री और वकील विजय सरदाना ने एक हस्तक्षेप याचिका दाखिल कर फ्री पॉलिटिक्स को तर्कपूर्ण बनाए जाने की मांग की।

क्या कहा गया है याचिका में?
सुप्रीम कोर्ट में इस वक्त ‘फ्री पॉलिटिक्स’ के खिलाफ याचिका लंबित है। पिछले बार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने नीति आयोग, वित्त आयोग, भारतीय रिजर्व बैंक, विधि आयोग और चुनाव आयोग इस बारे में आपस में विचार करके सुझाव देने को कहा था। याचिका में मुफ्त वादों की राजनीति से हो रहे नुकसान पर जो दलीलें दी गई हैं, वो हैं

  1. भारत एक ऐसा देश है जहां कई लोगों को सामान्य नागरिक सुविधा भी मुश्किल से मिल पा रही है। वहीं करदाताओं की मेहनत से आए पैसे को राजनीतिक लाभ के लिए बर्बाद कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए दिल्ली की बात करें तो यहां प्रति व्यक्ति आय 4 लाख रुपए है, लेकिन सरकार बस में मुफ्त यात्रा करा रही है। जबकि दूसरी तरफ स्वास्थ्य, शिक्षा के जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर का इंतजाम सरकार नहीं कर पा रही है। यहां तक कि दिल्ली की सरकार मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए फंड नहीं दे रही है।
  2. दिल्ली में मुफ्त की राजनीति की वजह से सार्वजनिक क्षेत्र के दो उपक्रम दिल्ली परिवहन निगम, दिल्ली विद्युत निगम बर्बाद हो गए। कैग की ताजा रिपोर्ट बताती है कि इन दोनों निगमों को 37 हजार करोड़ों का नुकसान हो चुका है।
  3. सुप्रीम कोर्ट के वकील और अर्थशास्त्री विजय सरदाना ने अश्विनी उपाध्याय की याचिका में ‘फ्री पॉलिटिक्स’ पर उठाए गए मुद्दों को महत्वपूर्ण और गंभीर बताया है। सरदाना ने कहा है कि जिस सरकारी धन का उपयोग राज्य में ढांचागत सुविधाएं बनाने और लोगों को ज्यादा सुविधाएं मुहैया कराने के लिए होना चाहिए, उसका उपयोग राजनेता अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए कर रहे हैं।
  4. याचिका में ये भी कहा गया है कि फ्री में देने वाले राज्य ये दावा करते हैं कि उनके पास पर्याप्त फंड हैं लेकिन असलियत ये है कि यही राज्य अपने राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार से फंड मांगते हैं।
  5. अपने आवेदन में विजय सरदाना ने चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि मुफ्त की राजनीति से समाज का एक हिस्सा अच्छे शिक्षकों और डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है।
  6. विजय सरदाना ने अपनी एप्लिकेशन में पंजाब में मिल रही मुफ्त बिजली की वजह से उत्पन्न एक और समस्या की ओर ध्यान खींचा है। उनके मुताबिक किसानों ने मुफ्त बिजली की वजह से भूजल का जरूरत से ज्यादा दोहन किया है जिससे जल स्तर चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है।

‘फ्री पॉलिटिक्स’ पर याचिका में सुझाव

  • चुनाव आयोग एक मानदंड बनाए जिसमें ये सुनिश्चित किया जाए जिन नागरिकों फ्री सुविधा देनी है और बाकी की जनता को अपना खर्चा खुद उठाना है।
  • गरीबी रेखा से ऊपर (बीपीएल) के लोगों को फ्री में कुछ भी नहीं मिलना चाहिए वहीं गरीबी रेखा के नीचे के लोगों को संविधान में दिए मौलिक अधिकार के तहत मिलना चाहिए।
  • प्रावधान किया जाना चाहिए कि जो भी राजनीतिक पार्टी केंद्र और राज्य में चुनाव के दौरान मुफ्त का वादा करते हैं और फिर सरकार बनाने के बाद सरकारी घाटे की भरपाई के लिए फंड की मांग करें उन राजनीतिक दलों को आगे से ऐसा वादा करने से रोका जाए।
  • सभी सरकारी सब्सिडी सीधे बैंक खाते में ट्रांसफर की जाए, न की किसी वस्तु या सेवा के रूप में।
  • मुफ्त में चीजें चुनाव होने के बाद विधानसभा में कानून पारित करने के बाद ही दिया जाए साथ ही ये भी जानकारी दी जाए कि इसके लिए सरकार के पास पर्याप्त फंड है या नहीं। चुनावी घोषणापत्र में मुफ्त वादों को शामिल न किया जाए।

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