नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि उत्तर पूर्व दिल्ली में 24 फरवरी को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में भड़के दंगे, दंगाइयों की सुनियोजित साजिश का नतीजा थे। इस दंगे में दिल्ली पुलिस के एक हेड कांस्टेबल की जान चली गयी थी। दिल्ली के मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट पुरुषोत्तम पाठक ने उत्तर पूर्वी दिल्ली के चांद बाग इलाके में दंगों के दौरान हेड कांस्टेबल रतन लाल की हत्या में शामिल रहने के 17 आरोपियों के खिलाफ शहर पुलिस के आरोप पत्र का संज्ञान लेते हुए यह टिप्पणी की।
सुनियोजित थे दंगे
अदालत ने कहा, ‘गवाहों के बयानों और आरोप पत्र से प्रथम दृष्टया सामने आया कि 24 फरवरी को हुए दंगे आरोपियों की सुनियोजित साजिश का परिणाम थे। इसमें एक पुलिस अधिकारी की हत्या कर दी गयी, कई पुलिस अधिकारी और आम लोग घायल हो गए तथा कई संपत्तियों को आग के हवाले कर दिया गया और तबाह कर दिया गया।’ उसने कहा, ‘उन्होंने दंगों को अंजाम देने, हत्या करने तथा अन्य कथित अपराधों के तरीकों का षड्यंत्र रचा और वे चांद बाग में समान मंशा तथा गैरकानूनी मकसद के साथ एक दूसरे के साथ साजिश रचते हुए गैरकानूनी तरीके से भीड़ को जमा करने में शामिल थे।’
संज्ञान लिया एक सितंबर का आरोप पत्र
हालांकि, आरोपपत्र का संज्ञान लेते हुए विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच नफरत को बढ़ावा देने के अपराध का संज्ञान नहीं लिया गया। अदालत ने धारा 153-ए के तहत अपराध का संज्ञान नहीं लिया क्योंकि दिल्ली पुलिस विभिन्न समुदायों के बीच नफरत को बढ़ावा देने के आरोपों में आरोपियों पर मुकदमा चलाने की अनिवार्य मंजूरी नहीं प्राप्त कर सकी।
अदालत ने एक सितंबर को आरोप पत्र का संज्ञान लिया और सभी 17 आरोपियों को 10 सितंबर को उसके समक्ष पेश होने का आदेश दिया। इन 17 आरोपियों में मोहम्मद सलीम खान, सलीम मलिक, मोहम्मद जलालुद्दीन, आरिफ, मोहम्मद अयूब, मोहम्मद यूनूस, मोहम्मद दानिश, शाहनवाज, इब्राहिम, फुरकान, बदरुल हसन, मोहम्मद सादिक, शादाब अहमद, इमरान अंसारी, आदिल, नासिर और सुवलीन हैं।
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