नई दिल्ली : दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को कोरोना वैक्सीन का पहला डोज लिया। मुख्यमंत्री को यह टीका दिल्ली सरकार के अस्पताल एलएनजीपी में लगा। केजरीवाल की उम्र 52 साल की है लेकिन वह पिछले 10 वर्षों से मधुमेह का इलाज करा रहे हैं। इसलिए वह टीकाकरण के दूसरे चरण में वैक्सीन लगवाने के लिए पात्र हैं। टीकाकरण के दूसरे चरण में 60 साल से ऊपर के लोगों और गंभीर बीमारी से युक्त 45 साल से अधिक के व्यक्तियों को टीका लगाया जा रहा है। अस्पताल में केजरीवाल के माता-पिता को भी टीका लगा।
सीएम केजरीवाल ने लोगों से आगे आने की अपील की
टीका लगने के बाद मीडिया से बातचीत में अरविंद केजरीवाल ने कहा, 'मेरा और मेरे माता-पिता को एलएनजीपी अस्पताल में आज कोरोना टीके का पहला डोज लगा है। हमें कोविशील्ड का टीका लगा है। टीका लगने के बाद हमें कोई परेशानी नहीं हुई और हमारा स्वास्थ्य ठीक है। टीका लगवाने के पात्र लोगों से मेरी अपील है कि वे आगे आकर इसे लगवाएं। इसमें डरने की कोई जरूरत नहीं है। किसी के मन में कोई संदेह नहीं रहना चाहिए। हम केंद्र सरकार के संपर्क में हैं। यदि जरूरत पड़ी तो हम टीका केंद्रों की संख्या बढ़ाएंगे।'
16 जनवरी से पहले चरण की शुरुआत
बता दें कि देश में टीकाकरण के पहले चरण की शुरुआत 16 जनवरी 2021 को हुई। पहले चरण में कोरोना वॉरियर्स एवं फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीका लगा। दूसरे चरण की शुरुआत एक मार्च से हुई। इस चरण में बीमारी युक्त 45 साल के अधिक व्यक्तियों एवं 60 वर्ष के ऊपर लोगों को टीका लगाया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक अब तक देश में वैक्सीन के 1,66,16,048 डोज दिया जा चुके हैं। गत 24 घंटे में देश में कोरोना के 17,402 केस सामने आए जबकि 89 लोगों की मौत हुई।
इन राजनीतिक हस्तियों को लग चुके टीके
भारत बायोटेक का टीका 81 प्रतिशत प्रभावी
इस बीच भारत बायोटेक का स्वदेशी कोरोना टीका परीक्षण में 81 प्रतिशत प्रभावी पाया गया है। इसके बाद इसके इस्तेमाल को लेकर संभावनायें और बेहतर हो गई हैं। इससे पहले कंपनी के टीके के परीक्षण के अंतिम परिणाम आने से पहले ही इसके आपात इस्तेमाल की मंजूरी दिये जाने को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। कंपनी के टीके के अग्रिम चिकित्सीय परीक्षण के आंकड़े अब आ गये हैं। हैदराबाद की इस कंपनी ने एक बयान में कहा कि उसके तीसरे चरण के परीक्षण में 25,800 व्यक्ति शामिल हुए। भारत में इस तरह का यह अब तक का सबसे बड़ा परीक्षण है। इसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के सहयोग से पूरा किया गया।
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