अगर 'शाहीन बाग' न होता क्या बीजेपी को इतनी भी सीटें मिल पातीं, सवालों के इतने जवाब

दिल्ली की जनता ने एक बार फिर केजरीवाल सरकार में भरोसा जताया है। ऐसे में सवाल है अगर शाहीन बाग का मुद्दा नहीं उठाया गया होता तो बीजेपी के खाते में कितनी सीटें जातीं।

अगर 'शाहीन बाग' न होता क्या बीजेपी को इतनी भी सीटें मिल पातीं, सवालों के इतने जवाब
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप को प्रचंड बहुमत 

नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा की सभी 70 सीटों के रुझानों से साफ है कि आम आदमी पार्टी एक बार फिर सरकार बनाने जा रही इन रुझानों को देखें तो एक बात साफ है कि आप की सीटों में कमी आई है। लेकिन प्रचंड जीत के कारवां बढ़ता जा रहा है। इस चुनाव में शाहीन बाग का मुद्दा जमकर उछला। बीजेपी के नेता सभी नेता चुनाव प्रचार में कहा करते थे कि ईवीएम को बटन ऐसे दबाओ कि उसका करेंट शाहीन बाग में लगे। लेकिन सवाल ये है कि करेंट किसे लगा। 
अगर ओखला और मुस्तफाबाद सीटों को देखें तो मुस्लिम बाहुल्य इस सीट से आप के अमानतुल्ला खान रिकॉर्ड वोटों से आगे हैं तो मुस्तफाबाद सीट से जहां बीजेपी के उम्मीदवार अच्छी खासी बढ़त बनाए हुए थे उसमें कमी आई है। आखिर इसका अर्थ क्या है। जानकार कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल के फ्री रणनीति का बीजेपी के पास काट नहीं था। संसद ने नागरिकता संशोधन एक्ट को जब पारित कर दिया तो उसके विरोध में शाहीन बाग में विरोध शुरू हुआ। बीजेपी को यह लगने लगा कि शाहीन बाग के जरिए वो मतों को ध्रूवीकरण किया जा सकता है। 


बीजेपी ने इस रणनीति पर अपने चुनावी प्रचार को आगे बढ़ाया। अगर चुनावी नतीजों को देखें तो बीजेपी के खाते में 10 सीटें मिलती नजर आ रही हैं। सीटों की इस संख्या पर जानकारों की राय अलग अलग है। जानकार बताते हैं कि अगर वोट प्रतिशत को देखें तो बीजेपी को फायदा हुआ है कि लेकिन मतों का बंटवारा समान रूप से नहीं हुआ और उसका असर नतीजों में देख सकते हैं। 

 

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