मनोज बाजपेयी के सितारा बनने की कहानी है उनकी बायोग्राफी

Manoj Bajpayee's biography : अभिनेता मनोज बाजपेयी की यह पहली बायोग्राफी है, और यह बायोग्राफी बेहद सहज सरल शब्दों में लिखी गई है, जो इसकी खूबसूरती है। इसका अर्थ यह है कि यह आम पाठकों को आसानी से समझ आएगी और लेखक ने एक अहम किताब लिखते वक्त अपना साहित्यिक ज्ञान झाड़ने की कोशिश नहीं की है।

Manoj Bajpayee's biography Kuchh paane ki zid is story of making him star book review
अभिनेता मनोज बाजपेयी की बायोग्राफी। 

देव तिवारी। क्या मेहनत की अति कर दी जाए तो मंज़िल को झक मारकन पास आना पड़ता है? क्या कुछ पाने की ज़िद पाल ली जाए तो गांव के किसान का बेटा भी रुपहले पर्दे पर इस अंदाज में चमक सकता है कि बड़े-बड़े सितारे उसकी जगह डिगा नहीं पाएं? क्या खुदकुशी का विचार मन में आने के बावजूद धीरे-धीरे निराशा के भाव से ऐसी मुक्ति पाई जा सकती है कि व्यक्ति खुद में एक संस्थान बन जाए और लाखों-करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हो जाए?

ऐसे तमाम सवालों के जवाब अभिनेता मनोज बाजपेयी की जीवनी कुछ पाने की ज़िद पढ़कर पाए जा सकते हैं, जिसे लिखा है वरिष्ठ पत्रकार पीयूष पांडे ने। बिहार के एक छोटे से गांव बेलवा से निकलकर दिल्ली के रास्ते मुंबई पहुंचने का मनोज बाजपेयी का सफर या कहें संघर्ष यात्रा बहुत दिलचस्प और फिल्मी है, जिसे पीयूष पांडे ने भी बहुत रोचक अंदाज में लिखा है। लिहाजा बायोग्राफी एक उपन्यास में तब्दील हो गई है। मनोज खुद अपनी बायोग्राफी के बारे में कहते हैं, “मैंने जब इसे पढ़ा तो मुझे पहली बार अहसास हुआ कि मेरी कहानी भी कम नाटकीय नहीं है। इसमें बहुत उतार चढ़ाव हैं, लिहाजा कहानी फिल्मी है।”

मनोज बाजपेयी की इस बायोग्राफी की सबसे खास बात ये है कि इसमें फिल्मों का इतिहास नहीं बल्कि मनोज बाजपेयी की संघर्ष य़ात्रा पर फोकस किया गया है। लेकिन, कुछ ऐतिहासिक संदर्भ किताब का कैनवास बड़ा कर देते हैं। जैसे, जब पीयूष यह बताते हैं कि मनोज बाजपेयी के गांव में उनका परिवार जिस कोठी में रहता था, वहां कभी गांधी जी आए थे।

इसी तरह, पीयूष जब बताते हैं कि मनोज के किसान पिता ने भी कभी पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट के लिए ऑडिशन दिया था तो पाठक चौंकते हैं। किताब में किस्सों की भरमार है। जैसे, सत्या के हिट होने के बाद मनोज बाजपेयी के घर पर एक पार्टी हुई, और इस पार्टी में तमाम युवा लड़कों ने जोश में एक दूसरे के कपड़े उतार दिए थे और बाद में सौरभ शुक्ला ने मनोज बाजपेयी को बहुत डांटा था।

Manoj Bajpayee's biography

अभिनेता मनोज बाजपेयी की यह पहली बायोग्राफी है, और यह बायोग्राफी बेहद सहज सरल शब्दों में लिखी गई है, जो इसकी खूबसूरती है। इसका अर्थ यह है कि यह आम पाठकों को आसानी से समझ आएगी और लेखक ने एक अहम किताब लिखते वक्त अपना साहित्यिक ज्ञान झाड़ने की कोशिश नहीं की है। पीयूष अरसे से तमाम समाचार पत्रों के संपादकीय पेज पर लिखते रहे हैं, लेकिन यहां उन्होंने संपादकीय लेख का ज्ञान नहीं देते हुए सरल शब्दों में किस्सों को इस अंदाज में पिरोया है कि पाठक एक बार किताब पढ़ना शुरु करता है तो आखिरी तक बंधा रहता है।

इस किताब में 21 अध्याय हैं, जिसके शुरुआती अध्याय मनोज की पारिवारिक पृष्ठभूमि और मनोज के फिल्मी लत लगने के किस्सों से पटी पड़ी है। मनोज बाजपेयी कैसे बेतिया में फिल्म देखते हुए एक थिएटर में ऐसी लड़ाई में उलझ गए कि चाकू चल गए, उनके खिलाफ एफआईआर हो गई और उन्हें गोरखपुर भागना पड़ा-ऐसे तमाम किस्से किताब के शुरुआत में है।

पीयूष ने मनोज बाजपेयी, उनके माता-पिता, भाई-बहन, दोस्त-यार और समीक्षकों से बात, उनके अलग अलग इंटरव्यू, ब्लॉग आदि के आधार पर किताब को गढ़ा है। बायोग्राफी मनोज से जुड़े कई भ्रम भी दूर करती है। मसलन, इंटरनेट पर कई जगह पढ़ने को मिलता है कि मनोज बाजपेयी ने पहली शादी बिहार की एक लड़की से की और सफल होने के बाद छोड़ दिया। मनोज और राम गोपाल वर्मा के बीच मतभेद की वजह की सैकड़ों कहानियां इंटरनेट पर हैं। ये जीवनी तमाम भ्रांतियों को दूर करती है। वो भी पुख्ता तथ्य और सबूत के साथ।

इस किताब का मराठी और अंग्रेजी संस्करण जल्द आ रहा है। मायानगरी पहुंचने के इच्छुक युवाओं के लिए यह जरूरी बायोग्राफी है ताकि उन्हें रुपहले पर्दे पर छाने से पहले का संघर्ष सही मायने में समझ आ सके।

किताब का नाम- मनोज बाजपेयी : कुछ पाने की ज़िद
लेखक- पीयूष पांडे
पेज- 218
मूल्य-299
पब्लिशर- पेंगुइन इंडिया

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