बॉलीवुड को कई आइकॉनिक गाने देने वाले म्यूजिक डायरेक्टर आरडी बर्मन यानी राहुल देव बर्मन का आज जन्मदिन है। उनका जन्म 27 जून 1939 को कलकत्ता में सिंगर व कंपोजर सचिन देव बर्मन के घर हुआ था।
आरडी बर्मन पंचम दा के नाम से भी जाने जाते हैं। उन्होंने 331 फिल्मों के लिए म्यूजिक कंपोज किया और ज्यादातर काम अपनी पत्नी आशा भोसले और किशोर कुमार संग किया। उन्होंने कई बेहतरीन गाने गाए भी जिसमें शोले फिल्म का मशहूर गाना महबूबा महबूबा भी शामिल है।
फैन से की थी शादी
आरडी बर्मन की पर्सनल लाइफ की बात करें तो उन्होंने साल 1966 में रीटा पटेल से शादी की थी। दोनों की मुलाकात दार्जिलिंग में हुई थी और वो बर्मन की फैन थीं। रीटा ने अपने दोस्तों से शर्त लगाई थी कि वो बर्मन को डेट करेंगी, दोनों ने एक दूसरे को डेट भी किया और साल 1966 में उनकी शादी भी हो गई। बर्मन की शादी लंबे समय तक नहीं चल पाई और साल 1971 में उनका तलाक हो गया।
रीटा से अलग होकर बनाई थी ये धुन
रीटा से अलग होने के बाद पंचम दा होटल में बैठे थे और यहां उन्होंने मशहूर गाने 'मुसाफिर हूं यारों' की धुन बनाई थी। ये गाना साल 1972 में रिलीज हुई फिल्म परिचय का था।
जिंदगी में आईं आशा भोसले
आरडी बर्मन अपने पिता सचिन देव बर्मन के साथ स्टूडियो जाते थे और यहां पहली बार उन्होंने आशा भोसले को देखा और उनसे इंप्रेस हो गए। इतना ही नहीं बर्मन ने आशा से ऑटोग्राफ भी मांगा। बर्मन और आशा ने कई बार साथ काम किया, दोनों को संगीत से प्यार था और यही उन्हें करीब लेकर आया। आशा उम्र में 6 साल बड़ी थीं लेकिन पंचम दा ने शादी के लिए उन्हें प्रपोज कर दिया। आशा की पहली शादी भी टूट गई थी और उनके तीन बच्चे थे।
80 के दशक में दोनों ने की शादी
आशा भोसले की पहली शादी अच्छी नहीं रही थी जिससे वो काफी परेशान रहती थीं लेकिन वो पंचम दा को मना भी नहीं करना चाहती थीं और बहुत सोचने के बाद उन्होंने शादी के लिए हां कह दिया और 80 के दशक में दोनों ने शादी कर ली। दोनों अपनी नई जिंदगी में खुश थे। उनके बीच प्यार, इज्जत और लगाव था। दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह समझते भी थे। आशा अपने लिए जैसी जिंदगी चाहती थीं उन्हें वो लाइफ मिल गई थी।
बर्मन की आदत की वजह से अलग हुए दोनों
आरडी बर्मन को शराब और सिगरेट की आदत थी जिसके चलते आशा उनसे अलग हो गईं। हालांकि इसके बाद भी दोनों अक्सर मिलते और साथ समय बिताते थे। बर्मन की खराब अदतों के चलते उन्हें हार्ट अटैक और आशा ने उनकी हर मुमकिन मदद की।
4 जनवरी 1994 को हुआ पंचम दा का निधन
आशा हर हफ्ते पंचम दा से मिलने उनके घर जाती थीं और साल 1994 में भी वो एक शाम उनसे मिलने घर पहुंचीं तो वहां उन्हें कोई नहीं मिला। उसी शाम बर्मन के घर काम करने वाले शख्स ने आशा को फोन कर बताया कि उनकी तबीयत खराब है और वो अस्पताल में भर्ती हैं। इसके बाद 4 जनवरी 1994 को उनका निधन हो गया।
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