IEC 2022: नेपोटिज्म पर बोलीं यामी गौतम- 'किसे कहां पैदा होना है ये तय नहीं कर सकते',अपनी लाइलाज बीमारी पर कही ये बात

बॉलीवुड
Updated Apr 22, 2022 | 21:41 IST

IEC 2022: इंडिया इकोनॉमिक कॉन्क्लेव में इनसाइडर और आउटसाइडर के मुद्दे पर यामी गौतम ने कहा कि आप किसी व्यक्ति का कहां पैदा होना है यह तय नहीं कर सकते हैं। हम यह कर सकते हैं कि सबको साथ लेकर चलें...

मुख्य बातें
  • यामी गौतम ने IEC 2022 में कई अहम मुद्दों पर बात की
  • रिजनल सिनेमा और बॉलीवुड में यामी गौतम ने बताया अंतर
  • नेपोटिज्स को लेकर क्या सोचती हैं यामी गौतम

IEC 2022: टाइम्स नेटवर्क के कार्यक्रम 'इंडिया इकोनॉमिक कॉन्क्लेव' के दूसरे दिन (शुक्रवार) को बॉलीवुड एक्ट्रेस यामी गौतम ने शिरकत की। यामी गौतम ने इस दौरान बॉलीवुड फिल्म्स, ओटीटी कंटेंट, साउथ सिनेमा और नेपोटिज्स जैसे अहम मुद्दों पर बात की। इस दौरान यामी गौतम ने बताया कि कोविड ने काफी कुछ बदल दिया है। पहले बिग स्क्रीन का क्रेज था लेकिन अब ओटीटी ने काफी कुछ बदला है। 2 साल काफी लंबा समय होता है ऐसे में अब हमें ऑडियंस को वापस थिएटर तक लाना मुश्किल हो चुका है। ऐसे में आखिर क्या चलेगा..। मेरा खुद का भी परिवार घर में बैठकर ओटीटी एंजॉय करता है। 

कोरोना के 2 साल फिल्म इंडस्ट्री के लिए रहे मुश्किल 
कोरोना और लॉकडाउन के बारे में बात करते हुए यामी गौतम ने कहा कि 2 साल इंडस्ट्री और एक्टर्स के लिए कठिन रहे हैं। वैसे हम एक्टर के तौर पर पहले से मुश्किल वक्त के लिए तैयार रहते हैं। हमारे पास सेविंग्स होती है लेकिन टेक्निशियन को काफी झेलना  पड़ा, क्योंकि उनकी रोजाना के काम से कमाई होती है। हर किसी के साथ कोरोना में परिस्थितियां अलग रहीं और कई लोगों को काफी कुछ सहना पड़ा। एक अच्छी बात ये रही कि कोरोना में अच्छी राइटिंग हुईं। क्रिएटिव माइंड्स ने काफी कुछ लिखा और स्क्रिप्ट्स पर पहले की तुलना में अच्छा काम हुआ। 

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रिजनल सिनेमा और बॉलीवुड में सिर्फ इतना अंतर है
रिजनल सिनेमा और बॉलीवुड के अंतर को लेकर बात करते हुए यामी गौतम का कहना है कि यहां सिर्फ भाषा का अंतर है और कुछ नहीं। जैसे मैंने शुरुआत में साउथ में काम किया है मलयालम भाषा बहुत फास्ट होती है। यहां तक कि मुझे एक मोनोलोग शूट के दौरान बुखार आ गया था। दूसरा थोड़ा बहुत अंतर टाइम पंक्चुअलिटी का है। अगर वहां सुबह 7 बजे शूटिंग है तो ऑन टाइम ही होगी। वहां बहुत ज्यादा प्रोफेशनलिज्म है। बाकी आज रीजनल सिनेमा ज्यादा छाया हुआ है क्योंकि सिंपल है जो कुछ भी नया होता है हमें उसके लिए एक्साइटमेंट होती है। जैसे मैंने हमेशा हिंदी फिल्में देखीं हैं अब मुझे किसी ने साउथ लैंग्वेज की एक अच्छी फिल्म रिकमेंड की, मुझे अगर अच्छी लगी तो मैंने वहां की और फिल्म देखीं, ऐसे ही आगे इंटरेस्ट बढ़ता गया। पहले भी लोग साउथ की  फिल्में देखते थे लेकिन अब सोशल मीडिया की वजह से ये ग्लोबल हो गया है। सबका सार यही है कि हम अच्छा सिनेमा देखें। ये दायरे क्यों भले ही कोई भी भाषा हो अगर वो हमारी ऑडियंस से कनेक्ट करेगी तो लोग उसे देखेंगे।

नेपोटिज्स को लेकर क्या सोचती हैं यामी गौतम
बॉलीवुड में हमेशा इनसाइडर और आउटसाइडर को लेकर बहस होती रही है। इस पर यामी कहती हैं कि आप किसी व्यक्ति का कहां पैदा होना है यह तय नहीं कर सकते हैं। हम यह कर सकते हैं कि सबको साथ लेकर चलें। जो भी टैलेंट है उसे काम मिलना चाहिए। हमें सबको साथ और कंफर्टेबल होकर रहना है। इंडस्ट्री वालों को ज्यादा ऑफर मिलते हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं है उनके बारे में हमेशा सोचते रहने से मुझे काम मिल जाएगा। हमें एक इंडस्ट्री और सिमेना के तौर पर साथ में काम करना है। टैलेंट को बढ़ावा देना है न कि ये कि कौन किस बैकग्राउंड से आया है इस सोच को। भले ही आपको कई ऑफर मिल जाएं लेकिन आपको खुद को साबित तो करना होगा। क्योंकि आज के इस ओटीटी वाले कंटेट दौर में यह बहुत जरूरी हो गया है।

अपनी बीमारी को लेकर भी की यामी गौतम ने बात 
यामी कहती हैं आज अब आप सिर्फ एक एक्टर नहीं है लोगें के मन में एक छवि है। मुझसे लोगों को कई तरह की एक्सपेक्टेशन होती हैं जिन ब्रैंड से जुड़ी हूं उनकी वजह से, या जो मैंने फिल्मी कैरेक्टर किए हैं उस वजह से...। लेकिन मैं अपने आप को जैसी हूं वैसी स्वीकार करती हूं मुझे 'केराटोसिस पिलारिस' बीमारी है तो है। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। डॉक्टर्स ने भी मुझे बताया है कि इसके साथ ही रहना होगा। इंडस्ट्री में आने के बाद मुझे  स्क्रीन परअच्छा दिखना होता है। लेकिन असल में, मैं जो हूं वो इस बीमारी कंडीशन के साथ आती हूं। 

ब्रैंड सिलेक्शन को लेकर क्या सोचती हैं यामी
सेलेब्स ब्रैंड सिलेक्शन में इमेज और आइडियोलॉजी बीच में आती है या फिर ये सिर्फ पैसा कमाने का जरिया है? इस सवाल पर यामी ने का कहना है कि आखिर ये हमारा प्रोफेशन है। समय के साथ चीजें और अनुभव बदलते हैं। अब मेरा अपना अनुभव अलग है। जैसे मैंने 5 साल पहले जो कहा हो अब हो सकता है मैं उसे नहीं मानती हूं। अब आप कहें नहीं आपने तो पहले ये कहा था और अब आप ये कह रही हैं.... तो ये मेरे अनुभव के साथ मेरी समझ में आया बदलाव है। जिसकी वजह से मैं आज कुछ अलग सोच रखती हूं। हालांकि मैं किसी अन्य व्यक्ति के ब्रैंड सिलेक्शन को लेकर कुछ नहीं कह सकती हूं। 

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