Faridabad News: लोगों को मिलेगी बड़ी राहत, पुलिस अधिकारी अब जांच के नाम पर नहीं कर सकेंगे मनमानी

Faridabad News: केस जांच के नाम पर विभाग और एफआईआर दर्ज कराने वाले पीड़ित से होने वाले फर्जीवाड़ा पर रोक लगेगी। पुलिस विभाग अब जांच अधिकारियों के लिए एकमुश्‍त राशि तय करने जा रही है। जांच अधिकारी अब फर्जी बिल नहीं लगा सकेंगे।

Faridabad Police Investigation
Faridabad police  |  तस्वीर साभार: Twitter
मुख्य बातें
  • अभी जांच अधिकारियों को अपनी जेब से करना पड़ता है खर्च
  • एफआईआर दर्ज कराने वाले पीड़ितों को भी उठानी पड़ती थी परेशानी
  • जांच अधिकारी अब नहीं कर सकेंगे फर्जीवाड़ा, मिलेगी एकमुश्‍त राशि

Faridabad Police: पुलिस जांच अधिकारी अब किसी जांच के नाम पर खर्च में मनमानी नहीं कर सकेंगे। थाने में एफआईआर दर्ज होने से लेकर अदालत में चालान जमा करने तक अब सरकार एक तयशुदा रकम अदा करेगी। इससे जहां जांच अधिकारियों के खर्च पर अंकुश लगेगा, वहीं एफआईआर कराने वाले पीड़ितों को भी राहत मिलेगी।

बता दें कि, पुलिस विभाग में अभी तक मुकदमों की जांच के लिए कोई तय फंड देने की नीति नहीं है। इस वजह से अधिकांश जांच अधिकारियों को अपने स्तर पर ही मुकदमे पर खर्च होने वाली राशि खर्च करनी पड़ती है। जिसे वे बाद में विभाग से क्‍लेम कर सकते हैं। खर्च क्‍लेम के नाम पर कई जांच अधिकारी जहां फर्जी बिल लगाकर विभाग को चपत लगाते थे, वहीं कई ऐसे भी होते हैं जो एफआईआर दर्ज कराने वालों से भी फाइल खर्च के नाम पर वसूली करते थे। इस तरह के फर्जीवाड़े पर लगाम लगाने के लिए पुलिस विभाग अब जांच अधिकारियों को मुकदमा खर्च के लिए एक तय राशि देने की नीति बनाने जा रहा है। इस संबंध में हरियाणा डीजीपी ने सभी पुलिस आयुक्तों और पुलिस अधीक्षकों को पत्र लिखकर उनकी राय मांगी है। यह पत्र फरीदाबाद पुलिस कमिश्‍नर को भी मिला है।

जांच अधिकारियों को यहां करना पड़ता था खर्च

बता दें कि, थाने में एफआईआर दर्ज होने के बाद उस केस की जांच के लिए कए जांच अधिकारी नियुक्ति होता है। इस जांच अधिकारी को अदालत में चालान रिपोर्ट जमा करने तक काफी खर्च करना पड़ता है। इसमें फोटो स्टेट, कार्बन कॉपी, छापेमारी के लिए निजी वाहन, फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी, शव उठाने के लिए गाड़ी या नहर से शव निकालने में निजी लोगों की सहायता, अस्‍पताल पहुंचाने, दुर्घटनाग्रस्त वाहनों को सड़क से हटाने, आरोपियों को हिरासत में रखने के दौरान उनका भोजन खर्च, बस, ट्रेन आदि का खर्च उठाने जैसे कार्य करने पड़ते हैं।

किसी मामले में जितने अधिक आरोपी जांच अधिकारी का उतना ही ज्यादा खर्चा होता है। इन मामलों को सुलझाने के लिए कई बार मुखबिर को भी राशि देनी पड़ जाती है। इसे शुरूआत में जांच अधिकारी को खुद अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है, जिसे वे बाद में बिल के साथ विभाग में क्‍लेम करके ले सकते हैं। जांच अधिकारी कई बार इन खर्चों से बचने के लिए केस दर्ज कराने वाले पीडि़त से ही पैसे ले लेते थे। अब इस तरह के मामलों पर रोक लगेगी।

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