इन हालातों के चलते अनुष्का शंकर ने निकलवाया अपना यूट्रस, फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट से जानें सर्जरी से जुड़ी बातें

हेल्थ
Updated Sep 10, 2019 | 12:11 IST | टाइम्स नाउ डिजिटल

यदि किसी महिला का गर्भाशय रोग ग्रस्त है और दवाइयां नाकामियाब हो रही हैं, तो यूट्रस रिमूवल सर्जरी की सलाह दी जाती है। यहां जानें मायोमेक्‍टोमी या हिस्टेरेक्टॉमी से जुड़ी जानकारी...

Uterus removal surgery
Uterus removal surgery 
मुख्य बातें
  • यूट्रस को सर्जरी द्वारा हटाना आमतौर पर ट्रीटमेंट का आखिरी विकल्‍प होता है
  • यह सर्जरी अधिकतर 40 साल की उम्र की महिलाओं के गर्भाशय को निकालने के लिये की जाती है
  • इस तरह की सर्जरी के अपने अलग-अलग जोखिम होते हैं

मशहूर सितारवादक पंडित रविशंकर की बेटी अनुष्का शंकर ने सोशल मीडिया के जरिये अपनी जिंदगी का एक ऐसा सच बयां किया जिसे सुनकर उनके फैंस हैरान रह गए। 38 वर्ष की अनुष्का ने डबल हिस्टेरेक्टॉमी के जरिये अपना यूट्रस (गर्भाशय) बॉडी से अलग करवा दिया। उन्‍होंने यह कठोर कदम इसलिये उठाया क्‍योंकि उनके यूट्रस में कुल 13 ट्यूमर थे,  जिसमें से एक ट्यूमर उनकी मांसपेशियों तक जा पहुंचा था। गर्भाशय में इस बड़ी दिक्‍कत के चलते उनका पेट काफी ज्‍यादा बढ़ गया था। सर्जरी करवाने से पहले अनुष्‍का डिप्रेशन में चली गईं थी, मगर बाद में उन्‍हें लगा कि यह सर्जरी बेहद आसान थी, लेकिन फिर भी इस बारे में खुलकर बात क्‍यों नहीं की जाती। अनुष्‍का ने उन महिलाओं और लड़कियों को लेकर चिंता जताई जो बच्‍चेदानी की तमाम समस्‍याओं से जूझ रही हैं मगर शर्म या झिझक के कारण अपना दर्द बयां नहीं कर पातीं।  

बच्चेदानी यानि यूट्रस निकालने की स्थिति कब आती है, इसके लिये किस तरह की सर्जरी की जरूरत पड़ती है या फिर सर्जरी के बाद महिला को रिकवरी में कितना समय लगता है, इस बारे में जब हमने गाजियाबाद के फेथ इनफर्टिलिटी एंड IVF क्‍लीनिक के डॉ. अभिषेक सिंह परिहार (कंसलटेंट इन फर्टिलिटी एंड IVF स्पेशलिस्ट) से बात की तो जानें जवाब में उन्‍होंने क्‍या बताया...

गर्भाशय निकलवाने की सलाह कब दी जाती है? 

यूट्रस को सर्जरी द्वारा हटाना आमतौर पर ट्रीटमेंट का आखिरी विकल्‍प होता है। यूट्रस को तभी निकाला जाता है जब उसमें कैंसर होने के चान्‍सेस ज्‍यादा हों। या फिर अगर यूट्रस के अंदर फाइब्रॉएड (गांठें) , गर्भाशय आगे की ओर बढ़ा हुआ, पीरियड्स में हेवी ब्‍लीडिंग और दर्द या फिर एन्डोमीट्रीओसिस की समस्‍या हो । यह सर्जरी अधिकतर 40 साल की उम्र की महिलाओं के गर्भाशय को निकालने के लिये की जाती है, जो अपना परिवार पूरा कर चुकी हों। 

सर्जरी कितने प्रकार की होती है (Types of uterus removal surgery)

  • मायोमेक्‍टोमी- यूट्रस की वॉल से फाइब्रॉइड्स या ट्यूमर्स को निकालने के लिये पेट में छोटा सा चीरा लगाया जाता है। 
  • लैपरोस्कोपी- इस प्रकार की सर्जरी में पेट के निचले हिस्‍से में कट लगा कर एक छोटी सी ट्यूब डाली जाती है जिसमें एक कैमरा लगा होता है। उसके बाद पेट में दो-तीन कट और लगा कर ऑपरेशन किया जाता है। 
  • हिस्टेरेक्टॉमी- यूट्रस के अंदर की लाइनिंग के पास यदि कोई फाइब्रॉइड है तो हिस्टेरेक्‍टॉमी से बच्चेदानी निकाली जाती है। हिस्टरेक्टॉमी एबडॉमिनल, वजाइनल और लेप्रोस्कोपिक 3 तरह की होती है। पहली दो सर्जरी में पेट और वेजाइना में कट लगता है वहीं, तीसरी में एक छोटा सा कैमरा यूट्रस के अंदर डाला जाता है और उससे देखते हुए फाइब्रॉइड को निकाला जाता है।  

लैपरोस्कोपिक सर्जरी है सबसे कॉमन (Laparoscopic Surgery)

लैपरोस्कोपी में बड़ा चीरा नहीं लगता। कम ये कम कट लगाए जाने की वजह से पेंशन्‍ट को कम दर्द होता है और वह जल्‍दी डिस्‍चार्ज हो जाता है। 

कंप्‍लीट रिकवरी में लगता है कितने दिनों का समय (Surgery Recovery Time)

यदि महिला की एंडोस्‍कोपिक सर्जरी हुई है तो उसे अस्‍पताल में 24 घंटे रखने के बाद डिस्‍चार्ज कर दिया जाता है। फिर 7 से 10 दिनों के बाद महिला हल्‍के फुल्‍के काम करने लायक हो जाती है। 

सर्जरी में लगने वाला खर्च 

सर्जरी में आमतौर पर 20-30 हजार से एक लाख रुपये तक खर्च आता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि ऑपरेशन किस अस्पताल में और कौन सा ऑप्‍रेशन करा रही हैं। 

सर्जरी के बाद होने वाली कॉम्प्लीकेशन्स 

हर तरह की सर्जरी के अपने अलग-अलग जोखिम होते हैं। सर्जरी से पहले पेशंट को एनेस्थीशिया दिया जाता है, जिससे जुड़े कुछ साइड इफेक्‍ट्स हो सकते हैं। इसके अलावा सर्जिकल उपकरण से यूट्रस के आसपास की कोई रक्त वाहिका में क्षति पहुंचने के बाद ब्‍लीडिंग भी हो सकती है। घाव की जगह पर इंफेक्‍शन या हर्निया की भी समस्‍या हो सकती है। 

गर्भाशय निकलवाने के बाद कैसे रखें अपना ख्‍याल 

  • यदि पेट पर चीरा लगा कर ऑपरेशन किया गया है तो कोई भी ऐसी एक्‍सरसाइज न करें जिससे टांकों पर जोर पड़े। 
  • दिनभर आराम न करें बल्‍कि रोजमर्रा के छोटे-छोटे काम करती रहें। 
  • खान-पान सिंपल रखें। 

यूट्रस निकाले जाने पर महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजन की कमी हो जाती है जिससे मूड में बदलाव होता है। वहीं, कुछ महिलाएं इस बात को सोंच कर कि वह फिर कभी मां नहीं बन पाएंगी, डिप्रेशन में चली जाती हैं। शरीर में गर्भाशय का न होना एक खालीपन जरूर लेकर आता है मगर पति और बच्‍चों का अगर पूरा सपोर्ट हो तो इस समस्‍या से मुकाबला करने में आसानी हो जाती है। 

डिस्क्लेमर: प्रस्तुत लेख में सुझाए गए टिप्स और सलाह केवल आम जानकारी के लिए हैं और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जा सकता।

Health News in Hindi के लिए देखें Times Now Hindi का हेल्‍थ सेक्‍शन। देश और दुन‍िया की सभी खबरों की ताजा अपडेट के ल‍िए जुड़िए हमारे FACEBOOK पेज से।

अगली खबर