मुंह खोल कर सोने की आदत सबसे ज्यादा नवजात शिशुओं और 10 साल तक के बच्चों में देखने को मिलती है। हालांकि यह आदत बनी रहे तो बड़े होने पर भी मुंह खोलकर सोने की समस्या देखने को मिलती है। मुंह खोल कर सोना बच्चों में बीमारी का कारण हो सकता है। जो शिशु या बच्चे मुंह खोल कर सोते हैं उन्हें मुंह से जुड़ी समस्याओं के साथ ही पेट की भी समस्या हो सकती है। इसलिए पेरेंट्स को अपने बच्चे के सोने की आदत पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि शिशु हमेशा मुंह खोलकर सांस लेता है तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए। साथ ही जब वो सोते समय मुंह सो रहा है तो उसका मुंह बंद करें या तकिया लगाकर या हटाकर उसके सिर को ऐसे पोजिशन में रखें कि उसका मुंह बंद हो जाए।
मुंह खोल कर सोने से बैक्टीरियल, दांतों में कैविटी, मुंह से बदबू आना, पेट में गैस की समस्या, दांतो का टेढ़ा मेढ़ा होने या सांस संबंधी दिक्कत हो सकती है। इसके अलावा मुंह खोलकर सोने से मुंह में ड्राइनेस हो जाती है। इससे मुंह में लार यानी सलाइवा नहीं बन पाता है। मुंह से सांस लेने से हवा मुंह से गुजरती हुई अपने साथ नामी भी अंदर लाती है और सलाइवा की कमी से नमी के साथ बैक्टीरिया दांतों और पेट तक पहुंच जाते हैं।
मुंह से जुड़ी कई समस्याओं का डर
सलाइवा की कमी की से दांतों में कैविटीज, दांतों का इंफेक्शन, मुंह से बदबू आना, नींद में खांसी या खराश बनने की दिक्कत आती है।
दांतों का बिगड़ सकता है शेप
हमेशा मुंह खोला के सोने की आदत न केवल दांतों या मुह की बदबू का कारण बनता है बल्कि इससे बच्चें के चेहरे और दांतों का शेप भी बिगड़ सकता है। इससे बच्चे का चेहरा पतला और लंबा हो सकता है, दांत आड़े-टेढ़े और बाहर को निकले हो सकते हैं। इतना ही नहीं हंसते समय मसूड़े दिखाई देने की समस्या भी इसी से जुड़ी होती है।
हाई बीपी और हार्ट की बीमारियां
जी हां, मुंह खोल के सोने से बच्चे का बीपी भी हाई हो सकता है और उसे दिल से जुड़ी बीमारियां हो सकती है। जबकि बड़ों में ये हार्ट अटैक तक के खतरे पैदा कर सकता है। मुंह से सांस लेने कारण सही मात्रा में शरीर को ऑक्सीजन नहीं मिल पाता और इससे धमनियों में ब्लड का फ्लो प्रभावित होने लगता है। ऑक्सीजन की कमी से ही हाई ब्लड प्रेशर और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ता है। वहीं शिशुओं में नींद की कमी या अनिद्रा की समस्या का सामना करना पड़ता है।
ऑक्सीजन की कमी होने का खतरा
मुंह से सांस लेने से श्वांस की नली हमेशा सूखी रहती है। इससे एक तो खांसी आने या अचानक से थूक का श्वांस नली में चले जाने पर सांस चढ़ने की समस्या हो सकती है। वहीं मुंह से सांस लेने से ऑक्सीजन अलविओली में खप जाती है। अलविओली श्वसनतंत्र का एक ऐसा हिस्सा है, जो ऑक्सीजन को कार्बन डाई ऑक्साइड के मॉलिक्यूल्स में बदलता है। इस कारण शरीर के बाकी अंगों तक वो सभी ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता है।
नींद में पड़ता है खलल
मुंह से सांस लेने वाले बच्चों को कभी अच्छी नींद नहीं आ पाती, इसकारण वह हमेशा चिड़चिड़े रहते हैं। क्योंकि बॉडी को जब सही तरीके से सांस नहीं मिल पाती तो सोने के बाद भी नींद पूरी नहीं होती और शरीर में थकान बनी रहती है। कम नींद से दिमाग भी कमजोर होने लगता है और कई अन्य शारीरिक दिक्कते सामने आने लगती हैं।
तो कोशिश करें कि जब भी बच्चा मुंह खोल कर सो रहा हो तो उसका मुंह बंद कर दें या उसकी पोजिशन चेंज कर करवट सुला दें।